भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद अनिल बलूनी ने उत्तराखंड के प्रमुख लोगों से अपील की है कि वह लोकपर्व ‘इगास’ यानी बूढ़ी दिवाली अपने-अपने पैतृक गांवों में ही मनाएं. साथ ही मतदान भी अपने गांवों में ही करें ताकि अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे उत्तराखंड के सुदूर गांव भी इस सांस्कृतिक व लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकें.
ADVERTISEMENT
बलूनी ने 2018 में ‘‘अपना वोट, अपने गांव’’ नाम से एक अभियान की शुरुआत की थी और इसी के तहत उन्होंने यह अपील की है. इसके पीछे उनका उद्देश्य है कि जो लोग उत्तराखंड से बाहर हैं, वह चुनावों के समय अपने गांवों में आकर मतदान जरूर करें.
सुदूर गांवों में पलायन को एक ‘‘गंभीर समस्या’’ करार देते हुए बलूनी ने कहा,
इस लोक पर्व को पुनर्जीवित करने के लिए शुरू किया गया अभियान यह सुनिश्चित करने के लिए था कि चीन और नेपाल की सीमा से सटे हमारे गांवों में सूनापन ना रहे. इसके तहत मैं लोगों से यह आग्रह भी कर रहा हूं कि वह अपना मतदान भी अपने पैतृक गांवों में ही करें ताकि वह स्थान भी संपर्क में बना रहे.
अनिल बलूनी, बीजेपी सांसद
बीजेपी मीडिया विभाग के प्रभारी बलूनी ने कहा कि इसके पीछे उनका विचार है कि उत्तराखंड से पलायन कर चुके लोग इस लोक पर्व के माध्यम से अपनी जड़ों की ओर लौटें, जुड़ें और पलायन पर भी लगाम लग सके.
उन्होंने कहा, ‘इस अभियान के केंद्र में पलायन से प्रभावित उत्तरखंड के दूर-सुदूर गांव व स्थान हैं. लोग अगर इगास मनाने और मतदान करने के लिए साल में कम से कम दो बार भी अपने गांवों में जाए तो इससे इन सीमाई क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को बल मिलेगा और राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से अहम इन गांवों का सूनापन भी खत्म होगा.’ ज्ञात हो कि उत्तराखंड सरकार ने इगास पर्व पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की है.
क्या है इगास पर्व?
इगास का यह पर्व दिवाली के 11 दिनों बाद मनाया जाता है. मान्यता है कि 14 साल का वनवास पूरा करने के बाद भगवान राम जब अयोध्या लौटे थे तो इसकी खबर उत्तराखंड की सुदूर पहाड़ियों में 11 दिनों के बाद पहुंची थी. इस त्योहार के दिन घरों में पारंपरिक पकवान और मिठाइयां बनती हैं और शाम को भैलो जलाकर देवी-देवताओं की पूजा की जाती है.
ADVERTISEMENT