Meerut news: कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 (Commonwealth Games 2022) में मेरठ की एक और बेटी अन्नू रानी ने जैवलिन थ्रो में कांस्य पदक (ब्रॉन्ज मेडल) भारत की झोली में डाल कर इतिहास रच दिया है. अन्नू रानी ने कांस्य पदक हासिल कर देश का नाम रोशन किया है. इसके बाद से ही अन्नू के गांव में खुशी का माहौल है. गांव में मिठाइयां बांटी जा रही हैं.
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आपको बता दें कि अन्नू मेरठ के बहादुरपुर की रहने वाली हैं. कॉमनवेल्थ गेम्स में कांस्य पदक जीतने वाली अनु रानी पहली भारतीय महिला जैवलिम थ्रोअर बन गई हैं. इससे पहले भी अन्नू रानी ने विश्व पटल पर कई बड़ी प्रतियोगिताओं में अपना दम दिखाया है. अन्नू ने इससे पहले 2014 के इंडियन एशियन गेम्स में भी ब्रोंज मेडल जीता था, तो वहीं टोक्यो ओलंपिक में भी अन्नू की परफॉर्मेंस शानदार रही.
अन्नू रानी को जीत से उनके गांव बहादुरपुर में परिजनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. आठ बार की राष्ट्रीय रिकॉर्ड होल्डर एथलीट किसान अमरपाल सिंह के घर जन्मीं अन्नू रानी पांच बहन-भाइयों में सबसे छोटी हैं.
अमरपाल सिंह के भतीजा लाल बहादुर और बेटा उपेंद्र अच्छे धावक रहे हैं. जिसकी प्रेरणा से अन्नू रानी ने खेल के मैदान पर कदम रखा. वह गांव की चकरोड और दबथुआ कॉलेज में अभ्यास करती थीं. शुरुआत में भाला फेंक के साथ गोला फेंक और चक्का फेंक में अभ्यास करती थीं. लेकिन आखिरकार उन्होंने भाला फेंक को अपना भविष्य चुना.
कॉमनवेल्थ खेलों में मेरठ की ओलंपियन अन्नू रानी ने देश की झोली में एक और पदक डाल दिया है. रविवार को उन्होंने भाला फेंक स्पर्धा में कांस्य पदक जीता अन्नू ने टोक्यो ओलंपिक और विश्व एथलेटिक्स चैंपियन के प्रदर्शन में सुधार करते हुए 60 मीटर की दूरी पर भला फेंका. हालांकि, अन्नू ओलंपिक में पदक पाने से चूक गई हैं.
अन्नू रानी के पिता अमरपाल ने बताया कि उनकी कामना है कि बेटी देश के लिए और अच्छा करें. उन्होंने बताया, “अन्नू ने काफी कठिन संघर्षों से अपना मुकाम हासिल किया है. उसकी संघर्ष की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. शुरू-शुरू में सभी घर वाले खेल में भाग लेने के लिए अनु का साथ नहीं देते थे. आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत ना होने के कारण वह गांव की ही चकरोड पर बांस के बने भाले और गन्ने फेंकने से अपनी प्रैक्टिस करती थीं.”
पिता अमरपाल ने बताया कि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी और आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उनको अपनी बेटी के लिए कर्ज भी लेना पड़ा और डेढ़ लाख रुपए कर्ज लेकर उन्होंने पहले बेटी के लिए समान खरीदा और कर्ज भी लिया, जो बढ़ते-बढ़ते 3-4 लाख रुपए तक हो गया.
अन्नू के भाई उपेंद्र बताते हैं कि वे पांच बहन-भाई हैं और पिताजी कमाने वाले एक थे, इसलिए पैसों की परेशानी आती थी. चंदा करके उसके (अन्नू) कभी जूते, तो कभी उसका सामान लाया जाता था, लेकिन अब आज सब खुश हैं.
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