UP News: एसटी-एससी आरक्षण में क्रीमी लेयर के प्रावधान को लेकर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अपना रुख साफ कर दिया है. सरकार ने साफ कह दिया है कि बीआर अंबेडकर द्वारा तैयार किए गए संविधान में एससी-एसटी आरक्षण क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है. सरकार का कहना है कि अंबेडकर के संविधान के अनुसार ही आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए. दरअसल केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस मुद्दे को लेकर काफी गंभीर चर्चा की गई, जिसके बाद सरकार की तरफ से ये बयान सामने आया है. इसी बीच हमारे सहयोगी News Tak ने इस पूरे मामले को लेकर प्रोफेसर लक्ष्मण यादव से बात की. इस दौरान उन्होंने कई अहम बात इस मामले पर रखी..
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पहले आपको बताते हैं ये पूरा मामला
आपको बता दें कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का एससी-एसटी आरक्षण के उप-वर्गीकरण को लेकर फैसला आया है. सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण में आरक्षण यानी कोटे में कोटा दिए जाने की बात कही थी और इसकी मंजूरी भी दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि एससी-एसटी के अंदर ही सब कैटेगरी बनाई जा सकती हैं, जिसके तहत अति पिछड़े वर्ग को अलग से आरक्षण दिया जा सके. तभी से क्रीमी लेयर को लेकर चर्चा की जा रही थी. मगर अब मोदी सरकार ने इसपर अपना रुख साफ कर दिया है.
सरकार ने क्या कहा?
सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा है कि कैबिनेट बैठक में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए सुझाव पर गंभीरता से बात की गई. एनडीए सरकार संविधान के प्रति पूरी तरह से कटिबद्ध है. संविधान में एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है. ये कैबिनेट का सुविचारित विचार है.
डॉ लक्ष्मण यादव का क्या कहना है?
इस पूरे मामले पर हमने प्रोफेसर लक्ष्मण यादव से बात की. उन्होंने कहा, इस बात से कोई इनकार नहीं करता है कि गैर बराबरी है. मगर सवाल ये है कि गैर बराबरी के कितने आंकड़े उपलब्ध हैं. एससी-एसटी में कितनी जातियां ऐसी हैं, जिनकी हिस्सेदारी उनकी संख्या से ज्यादा है? इसके ठोस आंकड़े नहीं हैं.
लक्ष्मण यादव ने आगे कहा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आंकड़े राज्य जुटाएगा. राज्य को सिर्फ हम एक रास्ता दिखा रहे हैं. दरअसल ये मामला पंजाब से शुरू हुआ था. काफी पुराना मामला है. कई राज्यों में इसकी कोशिश की गई है.
‘इस मामले में सिर्फ सांसद या राष्ट्रपति को ही फैसला लेने का अधिकार’
प्रोफेसर लक्ष्मण यादव ने आगे कहा, भारत का संविधान कहता है कि वर्गीकरण के फैसले का अधिकार सांसद या राष्ट्रपति को है. इस फैसले ने न्यायपालिका को इनसे ऊपर कर दिया है. उन्होंने आगे कहा, क्रीमी लेयर का कोई सवाल था ही नहीं. मगर कोर्ट ने इसमें क्रीमी लेयर को भी डाल दिया. मुख्य बात ये है कि आपके पास इसके आंकड़े नहीं है. सवाल ये है कि मंशा क्या है? वर्गीकरण के नाम पर समाज को लाभ देने की कोशिश है या कम करने की कोशिश है?
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