हिंदू धर्म में आषाढ़ माह की एकादशी तिथि सबसे महत्वपूर्ण मानी गई है. क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु सभी देवी-देवताओं समेत चार माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं. इस साल हरिशयनी एकादशी का व्रत बुधवार 17 जुलाई को रखा जाएगा. हरिशयनी एकादशी के शुभ मुहूर्त और पूजा विधि को लेकर श्रीकैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के प्रधान महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने कुछ खास बाते बताई हैं.
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आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को हरिशयनी एकादशी कहते है. जब हरिशयनी एकादशी की शुरूआत होती है उस समय से पृथ्वी का संचालन भगवान शिव करते हैं. ऐसी मान्यता है कि हरिशयनी एकादशी में भगवान विष्णु चार महीनें के विश्राम के लिए शयन करने चले जाते हैं. इस दौरान कोई भी मांगलिक या शुभ कार्य नहीं किया जाता है. इस चातुमार्स का समापन देवउठनी (हरिप्रबोधिनी) एकादशी पर होता है. इस एकादशी की तिथि को भगवान विष्णु योग निद्रा से बाहर आते हैं.
जानें शुभ मुहूर्त
आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष एकादशी 16 जुलाई मंगलवार रात 8.34 मिनट पर शुरू होगी और बुधवार 17 जुलाई रात 9.3 मिनट पर खत्म होगी. सूर्योदय व्यापिनी एकादशी तिथि 17 जुलाई बुधवार को होगी. इसलिए हरिशयनी एकादशी व्रत 17 जुलाई बुधवार को होगा और हरिशयनी एकादशी का व्रत का पारण 18 जुलाई गुरुवार द्वादशी तिथि के दिन सुबह 5.41 मिनट से सुबह 8.22 मिनट तक किया जा सकता है. हरिशयनी एकादशी के दिन शुभ और शुक्ल योग बन रहा है. ज्योतिष शास्त्र में इस योग को शुभ योगों में गिना जाता है. इस दौरान किए गए कार्यों में सफलता प्राप्त होती है.
ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो व्यक्ति दान करता है वह सभी पापों का नाश करते हुए परमपद प्राप्त करता है. इस दिन ब्राह्माणों एवं जरूरतमंद लोगों को मिष्ठानादि, दक्षिणा अपनी क्षमता के अनुसार दान करें.
एकादशी के दिन "ॐ नमो वासुदेवाय" मंत्र का जाप करना चाहिए. हिन्दू धर्म में ना केवल एकादशी व्रत का मात्र धार्मिक के साथ-साथ मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के नज़रिए से भी बहुत महत्त्व है. एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित होता है. यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है.
एकादशी व्रत पूजन विधि
इस व्रत में शारीरिक शुद्धता के साथ ही मन की पवित्रता का भी ध्यान रखना चाहिए. एकादशी के व्रत को विवाहित अथवा अविवाहित दोनों कर सकते हैं. एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही शुरु हो जाता है. दशमी तिथि को सात्विक भोजन ग्रहण कर अगले दिन एकादशी पर सुबह जल्दी उठें और शुद्ध जल से स्नान के बाद सूर्यदेव को जल का अर्घ्य देकर व्रत का संकल्प लें. पति-पत्नी संयुक्त रूप से लक्ष्मीनारायण जी की उपासना करें. पूजा के कमरे या घर में किसी शुद्ध स्थान पर एक साफ चौकी पर श्रीगणेश, भगवान लक्ष्मीनारायण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें. इसके बाद पूरे कमरे में एवं चौकी पर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें. चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के कलश (घड़े ) में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें. उसमें उपस्थित देवी-देवता, नवग्रहों,तीर्थों, योगिनियों और नगर देवता की पूजा आराधना करनी चाहिए.
एकादशी के दिनों में इन बातों का रखें ख्याल
एकादशी के दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए और ब्रहम्चार्य का पालन करना चाहिए. इन दिनों में शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए, व्रत रखने वालों को इस व्रत के दौरान दाढ़ी-मूंछ और बाल नाखून नहीं काटने चाहिए. व्रत करने वालों को पूजा के दौरान बेल्ट, चप्पल-जूते या फिर चमड़े की बनी चीजें नहीं पहननी चाहिए,काले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए,किसी का दिल दुखाना सबसे बड़ी हिंसा मानी जाती है. गलत काम करने से आपके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम होते हैं.
(इस खबर को हमारे साथ इंटर्न कर रहीं निवेदिता गुप्ता ने एडिट किया है.)
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