उत्तर प्रदेश सरकार भी हिंदी में एमबीबीएस पाठ्यक्रम शुरू करने पर विचार कर रही है, जहां इसकी व्यवहार्यता का अध्ययन करने के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है. वहीं कुछ दिन पहले केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने मध्य प्रदेश में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्रों के लिए हिंदी पाठ्य पुस्तकों का विमोचन किया था. योगी सरकार राज्य के मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस पाठ्यक्रमों के लिए हिंदी भाषा की पाठ्य पुस्तक पेश करने के लिए तैयारी कर रही है.
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चिकित्सा शिक्षा विभाग के सूत्रों के मुताबिक, राज्य सरकार ने एक तीन सदस्यीय पैनल का गठन किया है. जो तीन विषयों पर एमबीबीएस हिंदी पाठ्यपुस्तकों की समीक्षा कर रहा है. इनमें जैव रसायन, शरीर रचना और चिकित्सा शरीर विज्ञान शामिल हैं. इसके अलावा अन्य एमबीबीएस पाठ्यपुस्तकों का हिंदी में अनुवाद किया जा रहा है और उक्त समिति इस अनुवाद की जांच करेगी जिसके बाद इसे छात्रों के लिए शुरू कर दिया जाएगा.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस पर ट्वीट करते हुए एमबीबीएस और इंजीनियरिंग की छाती किताबों का हिंदी में अनुवाद और इसे अगले सत्र में लागू किए जाने की बात कही है थी. उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने भी बयान जारी करते हुए कहा कि, “उत्तर प्रदेश सरकार मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए हिंदी पर गंभीरता से काम कर रही है. इस संबंध में मेडिकल की कुछ पुस्तकें प्रकाशित हो गई हैं. इसपर समिति गठित कर आगे का काम जारी है.”
वहीं दूसरी तरफ इस मामले पर राजनीतिक दलों से प्रतिक्रिया सामने आ रही है. कांग्रेस नेता सुरेंद्र राजपूत ने कहा कि मेडिकल और इंजीनियर पाठ्यक्रम के हिंदी अनुवाद पर कहा कि हिंदी भाषा को समृद्ध करें उसको मेडिकल और इंजीनियरिंग के लिए मजबूत बनाएं लेकिन बीजेपी बिना मतलब के इन्हें राजनीतिक मुद्दा बनाती है, यह मुद्दा भाषाविध पर छोड़ देना चाहिए ना कि इस पर चर्चा हो.
हिंदी पाठ्यक्रम के इस मामले पर मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने कहा कि इंजीनियर और मेडिकल की किताबों को हिंदी अनुवाद पर कहा कि जो डॉक्टर पढ़ाई के बाद विदेशों में अपनी सेवाएं देते हैं क्या वह हिंदी में अपना काम कर पाएंगे, इस बात को एक्सपर्ट को एक बार देखने की जरूरत बाकी हिंदी के प्रसार पर कोई सवाल नहीं है, अगर सरकार कदम उठाती है तो वह ठीक है.
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