भारत में चारों पीठों के शंकराचार्यों का कैसे होता है चयन? जानिए इस पद की अहमियत और इसके नियम

दीक्षा सिंह

16 Jan 2024 (अपडेटेड: 16 Jan 2024, 02:28 PM)

शंकराचार्य बनने के लिए कुछ योग्यताएं जरूरी होती है. जैसे कि वह त्यागी ब्राम्हण हो, ब्रह्मचारी हो, दंडी सन्यासी हो, संस्कृत, चतुर्वेद, वेदांत और पुराणों का ज्ञाता हो और राजनीतिक न हो. ऐसे गुण वाले शिष्य को ही शंकराचार्य बनाया जाता है.

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अयोध्या में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी. इसे लेकर जोर-शोर से तैयारी की जा रही है. कार्यक्रम को भव्य बनाने के लिए देश के कई धार्मिक गुरुओं के साथ-साथ राजनीतिक, क्रिकेट और बॉलीवुड हस्तियों को भी न्योता भेजा गया है. इसी बीच देश के चारों शंकराचार्य के नाम भी काफी चर्चाओं में हैं. ऐसी चर्चा है कि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में कोई भी शंकराचार्य शामिल नहीं होंगे. ऐसे में लोगों के मन में शंकराचार्य को लेकर तरह-तरह के सवाल आ रहे हैं कि आखिरकार शंकराचार्य कौन होता है और इनका चयन कैसे होता है. इसकी जानकारी खुद ज्योतिष पीठ बद्रीनाथ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने दी है.

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हमारे सहयोगी चैनल न्यूज तक से बात करते हुए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने बताया कि किसी भी शंकराचार्य की नियुक्ति गुरु-शिष्य परंपरा के अनुसार होती है. ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि आदि शंकराचार्य ने अपने चार शिष्यों को हर पीठ पर शंकराचार्य बनाया था. इसी के अनुसार हर पीठ के शंकराचार्य अपने-अपने मठ के योग्य शिष्य को शंकराचार्य घोषित करते हैं. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि एक शंकराचार्य के अंत के बाद ही नए शंकराचार्य की नियुक्ति होती है.

शंकराचार्य बनने के लिए क्या हैं नियम?

अविमुक्तेश्वरानंद ने बताया कि देश की चारों पीठों पर शंकराचार्य बनने के लिए कुछ योग्यताएं भी जरूरी हैं जैसे कि वह त्यागी ब्राम्हण हो, ब्रह्मचारी हो, दंडी सन्यासी हो, संस्कृत, चतुर्वेद, वेदांत और पुराणों का ज्ञाता हो और राजनीतिक न हो. ऐसे गुण वाले शिष्य को ही शंकराचार्य बनाया जाता है. उन्होंने बताया कि शंकराचार्य अपना भोजन खुद नहीं बना सकते हैं. इन्हें केवल बना हुआ खाना होता है वो भी भिक्षा लेकर. आगे उन्होंने बताया कि दिनभर में केवल एक बार अन्न ग्रहण करना ही सन्यासी का नियम होता है. शंकराचार्य से अपेक्षा की जाती है कि जहां धर्म की बात हो वहां बिना किसी लोभ और दबाव में आए वह सच कह सके.

सनातन में शंकराचार्य की क्या है अहमियत?

मान्यताओं के अनुसार, इस पद की शुरुआत आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी. आदि शंकराचार्य हिंदू दार्शनिक और धर्मगुरू थे, जिन्हें हिंदुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में से एक माना जाता है. सनातन धर्म को मजबूत करने के लिए आदि शंकराचार्य ने भारत में 4 मठों की स्थापना भी की. ये चार ये चार मठ देश के चार कोनों में हैं. इन चारों मठों में उत्तर के बद्रिकाश्रम का ज्योर्तिमठ, दक्षिण का शृंगेरी मठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी का गोवर्धन मठ और पश्चिम में द्वारका का शारदा मठ शामिल हैं.

बता दें कि श्रृंगेरी मठ दक्षिण भारत में चिकमंगलूर में स्थित है. अभी इस मठ के शंकराचार्य जगद्गुरु भारती तीर्थ हैं. गोवर्धन मठ ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में स्थित है. फिलहाल निश्चाचलानंद सरस्वती इस मठ के शंकराचार्य हैं. शारदा (कालिका) मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है. शारदा (कालिका) मठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती हैं. ज्योतिर्मठ उत्तराखंड के बद्रीनाथ में स्थित है. ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद हैं. वहीं, गुजरात के द्वारका शहर में द्वारका शारदापीठ स्थित है. इस मठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती महाराज हैं.

(अविचल दुबे के इनपुट्स के साथ)

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