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उत्तर प्रदेश समेत देशभर में घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना और तलाक के मामले अक्सर देखे जाते हैं.
इन सब में अधिकांश महिलाएं ऐसी होती हैं जो ये सब चुपचाप सहती रहती हैं.
दरअसल हमारी न्याय व्यवस्था महिलाओं को शादी के तुंरत बाद कुछ अधिकार देती है.
इसके लिए कोई सर्टिफिकेट जारी नहीं होता है बल्कि शादी का सर्टिफिकेट ही इन अधिकारों का सबूत होता है.
सुप्रीम कोर्ट में वकील विष्णु शंकर जैन बता रहे हैं महिलाओं के वे अधिकार जो पत्नी बनने के बाद मिलते हैं.
पत्नी और बच्चों के जीवन यापन यानी भोजन, सुरक्षा शिक्षा, चिकित्सा सहित सभी जिम्मेदारी पति पर होती है.
स्त्रीधन को महिला किसी भी सूरत में अपने पास सुरक्षित या संरक्षित रख सकती है. महिला के मर्जी के बगैर उसे कोई नहीं ले सकता.
सगाई से लेकर शादी तक महिला को मिलने वाला शगुन, तोहफे, मुंह दिखाई, रस्मो-रिवाज के दौरान मिलने वाला धन या नकद स्त्रीधन होता है.
पुश्तैनी घर या अचल संपत्ति में भी उसका हक कानूनी तौर पर बन जाता है.
हालांकि संपत्ति पर हक तभी संभव है जब वे बहू के रूप में बुजुर्ग सास-ससुर या अन्य बुजुर्गों की सेवा करें.
यदि वो अपना ये दायित्व निभाने में अक्षम रहती हैं तो सास-ससुर उसे घर से बाहर भी कर सकते हैं.
तलाक लेने वाली पत्नी अगर नहीं कमाती तो वो पति को कमाई में से भरण-पोषण के लिए धन राशि पाने की हकदार होती है.
घरेलू हिंसा निवारण अधिनियम की धारा 18 से 23 के बीच पत्नी के अधिकारों का विस्तार से वर्णन किया गया है.
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