Uttar Pradesh News: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में शनिवार को माफिया डॉन अतीक अहमद (Atiq Ahmed Murder Case) और उसके भाई अशरफ की पुलिस कस्टडी में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. इससे पहले अतीक के बेटे असद को एसटीएफ ने एनकाउंटर में ढेर कर दिया था. अतीक अहमद को सबसे पहले गिरफ्तार करने वाले उत्तर प्रदेश पुलिस से डीएसपी के पद से 2015 में रिटायर हुए धीरेंद्र राय ने यूपी तक से खास बात चीत की. उन्होंने अतीक के उस दौर की कहानी बताई जब अपराध की दुनिया में उसकी तूती बोलती थी.
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अभी खत्म नहीं हुआ है अतीक का साम्राज्य!
पुलिस की मौजूदगी में अतीक की हत्या को लेकर पूर्व डीएसपी ने कहा कि, ‘इस तरह की घटना हमेशा सभ्य समाज के लिए निंदनीय रही है और इसकी निंदा भी की जानी चाहिए. हांलाकी जिस तरीके से यह आकस्मिक घटना घटी और बाद में पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया. यह पूरी तरीके से प्लांड मर्डर था और इस पूरी घटना का स्विच कहीं और है. हत्या में जिन इम्पोर्टेड हथियारों के इस्तेमाल किया गया है, उसे सामान्य आदमी नहीं पा सकता है.’ धीरेंद्र राय ने कहा कि अतीक और अशरफ की मौत के बाद यह नहीं कहा जा सकता है कि उनका पूरा आपराधिक साम्राज्य खत्म हो गया है क्योंकि उसके चार बेटे हैं और दो बेटे क्रिमिनल मामले में जेल में बंद है. साथ ही उमेश पाल हत्या में षड्यंत्र रचने के मामले में उसकी बीवी भी अभी फरार है, जिसको पुलिस पकड़ नहीं सकी है.
उन्होंने बताया कि, ‘अतीक और अशरफ ने अपने जीवन काल में इस तरह के जघन्य अपराध कराए हैं और किए हैं. बहुत से लोग उनके इस तरह के दुश्मन होंगे जो उनको मारना चाह रहे होंगे. यह तो जांच ही तय कर पाएगा की यह किस कारण से हुआ है. लेकिन मैं इससे सहमत नहीं हूं कि अतीक की हत्या करने वाले शूटर जो कह रहे हैं वह सही है. तीनों आदमी अलग-अलग जिलों के रहने वाले हैं.’
ऐसे किया था अतीक को गिरफ्तार
धीरेंद्र राय ने बताया, “साल 1986 में प्रयागराज के सिविल लाइन इलाके में अशोक साहू नामक युवक की अतीक अहमद के भाई ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. इस हत्याकांड की जांच मुझे मिली. इस मामले में मैंने अतीक अहमद और उसके पिता को गिरफ्तार किया था और दोनों लोग जेल गए थे. बाद में मेरा तबादला सीबीआई में हो गया. जब मैं इस केस की जांच कर रहा था, तो एक बार अतीक अहमद की तरफ से हमारे घर पर एक फोन आया और कहा गया कि मैं आपका शुभचिंतक हूं और अतीक अहमद के बारे में मैं आपको कुछ बताना चाहता हूं. उस समय रात के 1:30 बज रहे थे. लोगों द्वारा जिस दुकान से हमारा सामान आता था उस दुकान पर जाकर भी मेरे बेटे के बारे में पूछा गया था. मुझे मालूम हो गया था किन लोगों के द्वारा यह कार्य किया जा रहा है.”
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