जब रामलला की मूर्ति हो रही थी तैयार तो रोज हनुमान जी करते थे प्रभु के दर्शन! योगीराज ने बताई गजब की कहानी

संजय शर्मा

• 04:34 PM • 25 Jan 2024

राम लाला की मूर्ति बनाने वाले अरुण योगीराज की हर कोई तारीफ कर रहा है. वहीं यूपीतक से बात करते हुए योगीराज ने राम लाल की मूर्ति को लेकर एक बड़ा खुलासा किया है. 

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Ayodhya Ram Mandir  : अयोध्‍या के राम मंदिर में राम लाला विराजमान हो गए हैं. जिसके बाद मंदिर के अंदर स्थापित की भगवान राम की मूर्ति की बहुत चर्चा हो रही है. 22 जनवरी को राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरान, जिस मूर्ति ने लोगों को भक्ति की गहरी भावना से मंत्रमुग्ध कर दिया, उसे मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बनाया था. राम लाला की मूर्ति बनाने वाले अरुण योगीराज की हर कोई तारीफ कर रहा है. वहीं यूपीतक से बात करते हुए योगीराज (Arun Yogiraj) ने राम लाल की मूर्ति को लेकर एक बड़ा खुलासा किया है. 

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हनुमान जी करते थे प्रभु के दर्शन!


अरुण योगीराज (Arun Yogiraj) ने बताा कि बताया कि अरुण योगीराज कहते हैं कि मुझे बहुत बड़ी जिम्मेदारी दी गई थी. 7 महीने से मूर्ति को तराशने के काम में लगे थे. दिन-रात सिर्फ यही सोचते थे कि देश को भगवान के दर्शन कैसे करवाएंगे. सबसे पहले हमने पांच साल के बच्चों की जानकारी जुटाई. पांच साल के बच्चे के अंदर राम भी ढूंढने की चुनौती थी. अरुण योगी राज कहते हैं कि जब वो मूर्ति तराशने का काम करते थे, तब हर दिन शाम 5 बजे एक बंदर आ जाता था. फिर कुछ ठंड के कारण हमने कार्यशाला के तिरपाल को ढक दिया तो वो बंदर बाहर आया और जोर-जोर से खटखटाने लगता था. ये बंदर हर रोज शाम 4-5 बजे के बीच आ जाता था. मैंने ये बात चंपत राय जी को भी बताई थी. शायद उनका (हनुमान जी) भी देखने को मन हो. नक्काशी के दौरान वो किस्सों और आश्चर्य से गुजरे.

 

योगीराज ने बताई गजब की कहानी 

उन्होंने आगे बताया कि, ये कार्य उन्होंने खुद नहीं किया भगवान ने उनसे करवाया है. योगीराज की मानें तो जब मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा हुई तो उन्हें लगा ही नहीं कि वो मूर्ति उनके द्वारा बनाई गई है. उसके हाव-भाव बदल चुके थे. इस बारे में उन्होंने लोगों से कहा भी कि उन्हें नहीं विश्वास हो रहा मूर्ति उनके द्वारा बनाई गई है. उन्होंने माना कि अगर वो कोशिश भी करें तो दोबारा इस तरह का विग्रह कभी नहीं बना सकते.

बदल गई मूर्ती


योगीराज ने कहा कि, 'जब मैंने मूर्ति बनाई तब वो अलग थी. गर्भगृह में जाने के बाद और प्राण-प्रतिष्ठा के बाद वो अलग हो गई. मैंने 10 दिन गर्भगृह में बिताए. एक दिन जब मैं बैठा था मुझे अंदर से लगा ये तो मेरा काम है ही नहीं. मैं उन्हें पहचान नहीं पाया. अंदर जाते ही उनकी आभा बदल गई. मैं उसे अब दोबारा नहीं बना सकता, जहाँ तक छोटे-छोटे विग्रह बनाने की बात है वो बाद में सोचूँगा.' 

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