KGMU के डॉक्टरों ने किया कमाल! इस तकनीक से मरीज के लगा दिया कृत्रिम का कान

सत्यम मिश्रा

30 Aug 2023 (अपडेटेड: 30 Aug 2023, 04:45 AM)

Lucknow News: लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) के दंत संकाय विभाग के डॉक्टरों ने 32 वर्षीय व्यक्ति जिसके पास दाहिना कान नहीं था…

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Lucknow News: लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) के दंत संकाय विभाग के डॉक्टरों ने 32 वर्षीय व्यक्ति जिसके पास दाहिना कान नहीं था उसमें असली कान जैसा कृत्रिम कान बनाकर प्रत्यारोपित किया है. मिली जानकारी के मुताबिक, सिलिकॉन से तैयार कृत्रिम कान को प्रत्यारोपित करने के लिए पहले बांए कान का 3D इमेज बनाई गई, ताकि दोनो कान एक जैसे लगें और इस प्रत्यारोपण में डॉक्टरों ने सफलता भी हासिल कर ली. खास बात ये है कि कान को बार-बार चिपकाने के लिए एडहेसिव लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, सिर की हड्डी में पेंच लगाकर इसे चुंबक से फिट कर दिया गया है, ताकि कान में स्थिरता और जड़ता बनी रहे. केजीएमयू के डॉक्टरों का दावा है कि मैग्नेट के जरिए चिपकने वाले कृत्रिम कान को असली कान जैसा रूप देना का प्रत्यारोपण पहली बार केजीएमयू और नॉर्थ इंडिया के किसी अस्पताल में किया गया है.

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वहीं, प्रोस्थोडॉन्टिस्ट डॉ. सौम्येंद्र विक्रम सिंह ने बताया, “जो पेशेंट आए थे उनको यह समस्या जन्म से थी. इसमें यह होता है कि जो नॉर्मल चेहरा होता है, उसकी अपेक्षा में यह चेहरा कम ग्रोथ वाला होता है. इसी के चलते विकृतियों पाई जाती हैं. खासकर के कान में कभी-कभी ऐसा देखा जाता है कि कान ही नहीं होता है. या फिर होता है तो बहुत छोटा सा और ऐसे मरीजों को समाज में आने में बहुत दिक्कत होती है. वह जल्द ही किसी को फेस नहीं कर पाते हैं. हालांकि उनको सुनने में दिक्कत नहीं होती, लेकिन अगर कान ना हो तो विकृति पैदा होती है.”

डॉ. सौम्येंद्र ने आगे बताया, “जिस तरीके से हम लोग चश्मा कान के सहारे लगा लेते हैं, लेकिन ऐसे लोग चश्मा भी नहीं लगा पाते हैं क्योंकि इनके पास कान ही नहीं होता है. ऐसा ही एक मरीज हमारे पास आया था, जिसका हम लोगों ने इलाज शुरू किया. अमूमन कान के पास वाली हड्डी में सिलिकॉन का प्रयोग करके ऐडहेसिव की मदद से पेंच को चिपकाया जाता है. लेकिन यह ऐडहेसिव प्रक्रिया मरीजों में दिक्कत पैदा करती है. क्योंकि उन्हें रोज इसे नहाते वक्त निकालना पड़ता है, जिसके चलते असली कान की नेचुरल फीलिंग नहीं आ पाती है और ऐसे में मरीज को यह हमेशा एहसाह होता रहता है कि उसका कान उसके शरीर का हिस्सा नहीं है. इसीलिए हम लोगों ने इंप्लांट करके कान को फिक्स कर दिया और इस कान को फिक्स करने के लिए हम लोगों ने मैग्नेट का इस्तेमाल किया.”

कैसे बनाया गया कृत्रिम कान?

डॉ. सौम्येंद्र के अनुसार, “हमने एक और विधि अपनाई, जिसमें जो मरीज का दूसरा कान था जोकि नॉर्मल था उसकी एक डिजिटल इमेज बनाई और उसे हमने फ्लिप कर दिया जिसे हम मिरर इमेज भी कहते हैं. इसी मिरर इमेज को फ्लिप करके उसका 3D प्रिंट निकाल लिया और इस 3D प्रिंट को कृतिम कान बनाने में इस्तेमाल किया गया, क्योंकि कान के आकार को इसकी रूप रेखा को बनाना बहुत ही कठिन कार्य है. इसलिए 3D प्रिंट करके इस कार्य को कर लिया गया और इसी नाते जो यह कान बनकर तैयार हुआ वह मरीज के नॉर्मल कान जैसा ही था.”

डॉ. सौम्येंद्र ने आगे जानकारी दी कि यह सर्जरी केजीएमयू के लिए बहुत ही अचीवमेंट वाली सर्जरी थी क्योंकि मैग्नेट और 3D इमेज का इस्तेमाल करके जो यह कान बनाया गया है, यह पहली बार केजीएमयू में और नॉर्थ इंडिया के किसी अस्पताल में बनाया गया है, जोकि गर्व की बात है.

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