अखाड़ों का अनूठा ‘लोकतंत्र’! जानें साधु कैसे चलाते हैं धर्म के अखाड़े

संजय शर्मा

• 02:49 PM • 22 Sep 2021

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद अखाड़ों की व्यवस्था प्रक्रिया को लेकर भी बातें हो रही…

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अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद अखाड़ों की व्यवस्था प्रक्रिया को लेकर भी बातें हो रही हैं. ऐसे में हम आज आपको अखाड़ों में लोकतंत्र की अनूठी परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं.

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आदि जगद्गुरु शंकराचार्य से शुरू हुई शैव संन्यासियों और वैष्णव वैरागियों के अखाड़ों की व्यवस्था अब भी सनातनी और लोकतांत्रिक परंपरा के मुताबिक ही चलती है. प्रयाग, हरिद्वार और उज्जैन कुंभ मेले में अखाड़ों के पदाधिकारियों का चुनाव होता है, लेकिन अलग-अलग अखाड़ों के चुनाव की प्रक्रिया और कुंभ स्थल अलग-अलग हैं.

अखाड़ों के अध्यक्ष, सचिव, उपाध्यक्ष और कोषाध्यक्ष पदों के लिए चुनाव होते हैं, लेकिन ये चुनाव अप्रत्यक्ष होते हैं यानी आठ श्रीमंहत, थानापति और रमता पंच के प्रतिनिधियों के द्वारा होते हैं. हालांकि चुनाव के लिए आहूत सभा में सभी संन्यासी मौजूद होते हैं यानी सबकी हाजिर नाजिर में चुनाव की प्रक्रिया पूरी होती है.

मसलन महानिर्वाण अखाड़े के चुनाव हर छह साल बाद होते हैं, तो उनके यहां सिर्फ प्रयाग के अर्धकुंभ और कुंभ में होते हैं. कुछ अखाड़े हरिद्वार कुंभ में करते हैं. कुछ अखाड़ों में बारी-बारी से एक कार्यकारिणी छह साल तो दूसरी तीन साल तक अखाड़ों का कामकाज और व्यवस्था संभालती है.

कुछ अखाड़ों में परंपरा ये भी है कि कुंभ नगरी में पेशवाई के साथ ही कुंभ मेले के दौरान अखाड़े में सारी व्यवस्था की पूरी कमान अखाड़ा कार्यकारिणी के हाथों से रमता पंच के हाथों में आ जाती है. अंतिम शाही स्नान होने के बाद नई कार्यकारिणी चुनी जाती है फिर वो सारी व्यवस्था अपने हाथों में ले लेती है. यानी अखाड़े के बैंक खातों और चेक पर दस्तखत करने का प्राधिकार भी बदल दिया जाता है.

वैसे अखाड़ों की जागीर जायदाद और अन्य संपत्तियां अखाड़े के अधिष्ठाता देवता के नाम पर ही होती है. व्यवस्थापन समिति उनकी सिर्फ कस्टोडियन यानी संरक्षक ही होती है.

सभी अखाड़ों के अपने पैन कार्ड और बैंक खाते हैं. अखाड़ों से जुड़े महंतों के भी आधार कार्ड और पैन कार्ड हैं. कई बड़े मंदिरों के महंत तो बाकायदा आयकर भी अदा करते हैं क्योंकि उनको चेक से मिले रुपयों का हिसाब आयकर विभाग को देना होता है.

अब चूंकि युद्धों का जमाना तो गया. धर्मयुद्ध भी अब राजनीतिक तौर पर ही लड़े जाते हैं, लिहाजा अखाड़े मंदिरों-मठों की सेवा के साथ-साथ वेद विद्यालय, कॉलेज, अस्पताल और गोशाला आदि संचालित भी करते हैं.

इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि कुंभ के दौरान शाही स्नान को लेकर अखाड़ों में विवाद होते थे, लेकिन करीब डेढ़ सौ साल पहले जब अखाड़ों का रजिस्ट्रेशन हुआ तो फिरंगियों ने अखाड़ा प्रमुखों के साथ बातचीत कर सबका स्नान क्रम निर्धारित कर दिया. अब तक वही क्रम चला आ रहा है.

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