आशा करते हैं केंद्र सरकार गोवध प्रतिबंधित करने का निर्णय लेगी: इलाहाबाद HC

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• 02:46 AM • 05 Mar 2023

Allahabad HC News: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने आशा जतायी है कि केन्द्र सरकार गोवध को प्रतिबंधित करने और गायों को ‘संरक्षित राष्ट्रीय…

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Allahabad HC News: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने आशा जतायी है कि केन्द्र सरकार गोवध को प्रतिबंधित करने और गायों को ‘संरक्षित राष्ट्रीय पशु’ घोषित करने के लिए उचित निर्णय लेगी. न्यायमूर्ति शमीम अहमद की एकल पीठ ने कहा, ‘‘हम एक धर्मनिरपेक्ष देश में रह रहे हैं और सभी धर्मों के लिए सम्मान होना चाहिए. हिंदू धर्म में यह विश्वास है कि गाय दैवीय है और प्राकृतिक रूप से लाभकारी है. इसलिए इसकी रक्षा और पूजा की जानी चाहिए.” पीठ ने यह फैसला बाराबंकी निवासी मोहम्मद अब्दुल खालिक की एक याचिका को 14 फरवरी 2023 को खारिज करते हुए पारित किया, जिसमें याचिकाकर्ता के खिलाफ उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम, 1955 के संबंध में दर्ज आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने का अनुरोध किया गया था.

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याचिकाकर्ता अब्दुल ने दी थी ये दलील

याचिकाकर्ता अब्दुल खालिक ने दलील दी थी कि पुलिस ने बिना किसी सबूत के उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया और इसलिए उसके खिलाफ अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत संख्या -16, बाराबंकी की अदालत में लंबित कार्यवाही को रद्द किया जाना चाहिए. आदेश पारित करते हुए न्यायमूर्ति अहमद ने कहा, “गाय विभिन्न देवी-देवताओं से भी जुड़ी हुई है… खास तौर से भगवान शिव (जिनकी सवारी है, नंदी), भगवान इन्द्र (कामधेनु गाय से जुड़े हैं) भगवान कृष्ण (जो बाल काल में गाय चराते थे) और सामान्य देवी-देवता.” उन्होंने कहा, ‘‘किंवदंतियों के अनुसार, वह (गाय) समुन्द्रमंथन के दौरान दूध के सागर से प्रकट हुई थी. उसे सप्त ऋषियों को दिया गया और बाद में वह महर्षि वशिष्ठ के पाय पहुंचीं.’’

न्यायमूर्ति ने आगे कहा, ‘‘उसके (गाय) पैर चार वेदों के प्रतीक हैं, उसके दूध का स्रोत चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) है, उसके सींग देवताओं का प्रतीक हैं, उसका चेहरा सूर्य और चंद्रमा और उसके कंधे अग्नि या अग्नि के देवता हैं. गाय को अन्य रूपों में भी वर्णित किया गया है, जैसे नंदा, सुनंदा, सुरभि, सुशीला और सुमना। गाय की पूजा की उत्पत्ति वैदिक काल (दूसरी सहस्राब्दी 7 वीं शताब्दी ईसा पूर्व) में देखी जा सकती है.’’

पीठ ने कहा, ‘‘हिंद-यूरोपीय लोग जो ईसा पूर्व दूसरी सहस्राब्दी में भारत आए वे सभी चरवाहे थे. मवेशियों का बहुत आर्थिक महत्व था जो उनके धर्म में भी परिलक्षित होता है. दूधारू गायों का वध पूरी तरह प्रतिबंधित था. यह महाभारत और मनुस्मृति में भी प्रतिबंधित है.’’ अदालत ने कहा कि दुधारू गायों को ऋगवेद में ‘सर्वोत्तम’ बताया गया है. उसने कहा कि गाय से मिलने वाले पदार्थों से पंचगव्य तक बनता इसलिए पुराणों में गोदान को सर्वोत्तम कहा गया है. पीठ ने कहा कि भगवान राम के विवाह में भी गायों को उपहार में देने का वर्णन है.

अपने आदेश में अदालत ने कहा, “जो लोग गाय का वध करते हैं वे नर्क में जाते हैं और नर्क में उन्हें उतने सालों तक रहना पड़ता है जितने उनके शरीर में बाल होते हैं.” याचिका खारिज करने से पहले पीठ ने कहा कि 19वीं और 20वीं शताब्दी के अंत में भारत में गायों की रक्षा के लिए एक आंदोलन शुरू हुआ, जिसने भारत सरकार से देश में तत्काल प्रभाव से गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए नागरिकों को एकजुट करने का प्रयास किया.

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