14 साल का संघर्ष और तारीख पे तारीख, बेटे की मौत बाद इंसाफ के लिए मां की इस लड़ाई को आप भी करेंगे सलाम

प्रशांत पाठक

• 08:56 AM • 17 Nov 2023

Uttar Pradesh News: कहते हैं मां भगवान का दूसरा रूप होता है. ‘मां’ एक ऐसा शब्द जिसे सुनते ही ममता, संवेदना, हिम्मत, हौसला और भी…

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Uttar Pradesh News: कहते हैं मां भगवान का दूसरा रूप होता है. ‘मां’ एक ऐसा शब्द जिसे सुनते ही ममता, संवेदना, हिम्मत, हौसला और भी न जाने भावनाओं के कितने रंग एक साथ आंखों के सामने तैर जाते हैं. वहीं अपने बच्चों के ऊपर आए तो एक मां उनके लिए कुछ भी कर सकती है. आज हम आपको एक ऐसी ही मां के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने अपने बेटे के मौत के बाद भी 14 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी.

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मिली तारीख पे तारीख

उत्तर प्रदेश के हरदोई से एक ऐसी कहानी सामने आई है, जिसे सुनकर आप भी मां के हिम्मत को सलाम करेंगे. ये मां 1-2 नहीं बल्कि पूरे 14 साल अपने बेटे के लिए कानूनी लड़ाई लड़ती रही. उस बेटे के लिए जिसका निधन सड़क हादसे में हो गया था. इस मां ने 14 वर्षों तक थके हुए पैरों से कई किलोमीटर की दूरी नापी, हर तारीख पर चल कर लड़ाई लड़ी और अंत मे यह लड़ाई वह जीत गई.

2009 से शुरु हुई कानूनी लड़ाई

ग्रामीण इलाके में और बिना पढ़ी-लिखी मां के कानूनी संघर्ष की यह दास्तां सदर तहसील क्षेत्र के जिगनिया खुर्द गांव के मजरे कोटरा की है. दरअसल, मूल रूप से हरदोई शहर के लक्ष्मी पुरवा के रहने वाले विपिन कुमार ट्रक चलाने का काम करते थे. 3 जुलाई 2009 को विपिन घर से फर्रुखाबाद गए जहां से वह फर्रुखाबाद से आलू से भरा ट्रक लेकर बनारस की तरफ जा रहे थे. रास्ते में भदोही के औराई थाना क्षेत्र के कटरा के पास ट्रक का टायर अचानक फट गया और ट्रक अनियंत्रित होकर सड़क पर ही पलट गया. इस सड़क हादसे में विपिन की मौत हो गई. घर के कमाऊ शख्स की मौत के बाद घर चलाने की जिम्मेदारी विपिन के बूढ़े पिता पर आ गई.

 पति के मौत के बाद भी नहीं मानी हार

इस बीच पुत्र की मौत के बाद पिता रामकुमार बीमार हो गए तो ऑपरेशन के लिए उनको शहर में अपना मकान बेचना पड़ा और उसके बाद रामकुमार अपनी ससुराल जिगनिया खुर्द गांव आ गए. जहां उनके ससुर ने उनको अपना मकान और ज़रा से खेत दे दिए. रामकुमार और उनका एक पुत्र सुरेश मजदूरी करके किसी तरह बसर करने लगे. इसके बाद रामकुमार ने अधिवक्ता छोटेलाल गौतम के जरिये बीमा कंपनी से मुआवजे की मांग की. लेकिन बीमा कंपनी ने मुआवजा देने में जब कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई तो उन्होंने कानूनी प्रक्रिया अपनाते हुए कर्मकार प्रतिकार अधिनियम के तहत डीएम के न्यायालय में बीमा कंपनी के खिलाफ एक मुकदमा दायर किया. जिसके लिए रामकुमार लगातार डीएम की अदालत में चक्कर काटते रहे.

रमा देवी ने नहीं हारी हिम्मत

वृद्ध पति के साथ पत्नी रामदेवी भी डीएम की अदालत में तारीख पर सुनवाई के लिए पहुंचती थी. लेकिन सुनवाई पर सुनवाई के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला. करीब तीन वर्ष पहले रामकुमार की मौत हो गई. इसके बाद मुकदमा लड़ने की जिम्मेदारी रामदेवी पर आ गई. लेकिन राम देवी ने हिम्मत नहीं हारी और वह लगातार केस की सुनवाई पर नियमित रूप से अदालत में आती रही. कभी-कभी तो कुछ किलोमीटर पैदल चलने के बाद बस मिलने पर हरदोई पहुंचती थी. इस बीच सरकार की तरफ से मुकदमों को प्राथमिकता पर निपटाए जाने का आदेश हुआ.

14 साल बाद मां ने जीती कानूनी लड़ाई

इसके बाद डीएम एमपी सिंह ने इस पूरे प्रकरण में मुकदमे में मौजूद साक्ष्य और राम देवी के अधिवक्ता छोटे लाल गौतम और बीमा कंपनी के अधिवक्ता की दलीलों को सुनने के बाद नेशनल इंश्योरेंस कंपनी को क्षतिपूर्ति राशि मृतक की मां को छह प्रतिशत ब्याज सहित भुगतान करने के आदेश पारित किये. जिसके बाद बीमा कंपनी ने करीब चौदह साल बाद विपिन की मां रामदेवी को 4 लाख 16 हजार 167 रुपए का भुगतान किया.

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