2014 की शुरुआत में पंजाब के अजनाला कस्बे एक पुराने कुंए से 282 मानव कंकालों के अवशेष निकले थे. कुछ इतिहासकारों का मत है कि ये कंकाल भारत पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान दंगों में मारे गए लोगों के हैं, जबकि विभिन्न स्रोतों के आधार पर प्रचलित धारणा है कि ये कंकाल उन भारतीय सैनिकों के हैं, जिनकी हत्या 1857 स्वतंत्रता संग्राम के विद्रोह के दौरान अंग्रेजों ने कर दी थी.
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हालांकि, वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी के कारण इन सैनिकों की पहचान और भौगोलिक उत्पत्ति पर गहन बहस चल रही है. इस विषय की वास्तविकता पता करने के लिए पंजाब विश्वविद्यालय के एन्थ्रोपोलाजिस्ट डॉ जे. सेहरावत ने इन कंकालों का डीएनए और आइसोटोप अध्ययन, सीसीएमबी हैदराबाद, बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट लखनऊ और काशी हिंदू विश्विद्यालय के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर किया.
वैज्ञानिकों की दो अलग-अलग टीम ने डीएनए और आइसोटोप एनालिसिस किया और निष्कर्ष निकाला कि मृतक गंगा घाटी क्षेत्र के रहने वाले थे. यह अध्ययन 28 अप्रैल, 2022 को फ्रंटियर्स इन जेनेटिक्स पत्रिका में प्रकाशित हुआ.
इस शोध में 50 सैंपल डीएनए एनालिसिस और 85 सैंपल आइसोटोप एनालिसिस के लिए इस्तेमाल किये गए. आपको बता दें कि डीएनए विश्लेषण लोगों के अनुवांशिक संबंध को समझने में मदद करता है, जबकि आइसोटोप विश्लेषण भोजन की आदतों पर प्रकाश डालता है.
दोनों शोध विधियों ने इस बात का समर्थन किया कि कुएं में मिले मानव कंकाल पंजाब या पाकिस्तान में रहने वाले लोगों के नहीं थे, बल्कि डीएनए सीक्वेंस यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल के लोगों के साथ मेल खाते हैं. इस टीम के एक वरिष्ठ सदस्य सीसीएमबी के मुख्य वैज्ञानिक और सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स, हैदराबाद के निदेशक डॉ. के थंगराज ने यह जानकारी दी.
बीएचयू जंतु विज्ञान के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे, जिन्होंने डीएनए अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जोर देकर कहा की इस अध्ययन के निष्कर्ष भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों के इतिहास में एक प्रमुख अध्याय जोड़ देंगे. इस टीम के प्रमुख शोधकर्ता और प्राचीन डीएनए के एक्सपर्ट डॉ. नीरज राय ने कहा, “इस इस टीम द्वारा किया गया वैज्ञानिक शोध इतिहास को साक्ष्य-आधारित तरीके स्थापित करने में मदद करता है.”
इस शोध से मिले परिणाम ऐतिहासिक साक्ष्य के अनुरूप हैं. इसमें कहा गया है कि 26वीं मूल बंगाल इन्फैंट्री बटालियन के सैनिक पाकिस्तान के मियां-मीर में तैनात थे और विद्रोह के बाद उन्हें अजनाला के पास ब्रिटिश सेना ने पकड़ लिया और मार डाला. इस बात इस शोध के पहले लेखक डॉ. जगमेंदर सिंह सेहरावत ने कहा. काशी हिंदू विश्विद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस के निदेशक प्रो. एके त्रिपाठी ने कहा, “यह अध्ययन ऐतिहासिक मिथकों की जांच में प्राचीन डीएनए आधारित तकनीक की उपयोगिता को दर्शाता है.”
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