ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी परिसर का वीडियोग्राफी सर्वे के अंतिम दिन हिंदू पक्ष ने दावा किया कि मस्जिद के वजूखाने में एक शिवलिंग मिला है. वहीं, दूसरी ओर हिंदू पक्ष के दावे को नकारते हुए मुस्लिम पक्ष ने कहा कि मुगल काल की तमाम मस्जिदों में वजूखाने के ताल में पानी भरने के लिए नीचे एक फव्वारा लगाया जाता था और जिस पत्थर को शिवलिंग बताया जा रहा है, वह फव्वारे का ही एक हिस्सा है. दोनों तरफ की ओर से किए जा रहे दावों के बीच जानिए वजूखाने में मिली वह आकृति आखिर है क्या?
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अगर मस्जिद प्रसार में मिली आकृति फव्वारा है, तो फिर पहले तल्ले पर स्थित इस वजूखाने में पानी का स्रोत क्या है, पानी कहां से आता है और इस कुंड में जमा पानी आखिर कैसे निकलता है? इस पर जिला प्रशासन के एक अधिकारी ने बताया कि मस्जिद तल पर बने इस वजूखाने में कई नल लगे हैं, जिनमें से वाराणसी नगर निगम का पानी आता है और वजू करने के लिए नमाजी इसमें अपने हाथ-पैर धोते रहें हैं. दरअसल नल से आने वाले पानी से जब वजू होता है तो वही पानी इस कुंड में जमा हो जाता है.
बता दें कि इस कुंड के बीचों-बीच एक कुआं नुमा घेरा है जिसके भीतर शिवलिंग है, ऐसा दावा हिंदू पक्ष की ओर से किया गया है. पानी से भरे हुए इस वजूखाने में न तो वह गोल घेरा दिखता है और न ही उसके भीतर कथित शिवलिंग, इसलिए ज्यादातर नमाजियों को यह मालूम ही नहीं कि इस घेरे में क्या है? सिर्फ मस्जिद कमिटी के लोग जो इसकी सफाई कराते हैं, वही जानते हैं कि इसके भीतर शिवलिंग जैसा एक पत्थर है, जिसे वो पुराना फव्वारा कहते हैं.
मिली जानकारी के अनुसार, इस वजू कुंड में करीब डेढ़ से 2 महीने में पानी भर जाता है, जिसे पाइप के जरिए बाहर टैंकर तक लाया जाता है. सफाई के दिनों के अलावा वजूखाने से कभी पूरा पानी नहीं निकाला जाता, 1-2 टैंकर पानी कम किया जाता है फिर जब उतना भर दिया जाता है. चूंकि इसमें मछलियां भी होती है, इसलिए पूरा पानी सिर्फ साल 2 साल में 1 बार सफाई के लिए निकाला जाता है.
कोर्ट कमिश्नर की टीम ने जब मुआयना किया तो हिंदू पक्ष ने दावा किया कि यहां भी मंदिर के प्रमाण हो सकते हैं. इसके बाद तल पर करीब 1 फिट छोड़कर बाकी पानी कम कराया गया. बाहर से लगाई गई सीढ़ियों के जरिए गोल घेरे तक पहुंचे हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने सबसे पहले वहां जाकर उस आकृति को देखा.
विष्णु जी ने यूपी तक को बताया, “घेरे के भीतर कोई पानी का स्रोत नहीं था, न ही कोई पाइप लगाया गया था. नीचे तहखाने से भी ऊपर जाती कोई पाइप नहीं दिखाई दी.” वहीं, अंजुमन इंतजामियां मसाजिद के वकील मेराजुद्दीन इस कुंड के भीतर फव्वारा होने का दावा कर रहे हैं, लेकिन वह ये नहीं जानते कि ये काम कैसे करता है.
इंतजामियां कमेटी से जुड़े रईस बताते हैं कि उन्होंने इस फव्वारे को चलते देखा है लेकिन वह ये नहीं जानते कि किस तकनीक पर यह काम करता है.
दूसरी तरफ हिंदू पक्ष का दावा है कि मुसलमानों के द्वारा जिसे फव्वारा बताया जा रहा है, वहां फव्वारे का कोई सिस्टम है ही नहीं. ना तो कोई पाइप से वो जुड़ा है और न ही पुराने स्थापत्यकला के किसी फव्वारे का कोई चिह्न है.
हिंदू पक्षकार सोहनलाल आर्य के मुताबिक, “यह एक सम्पूर्ण शिवलिंग है. बिना किसी जोड़ का एक सम्पूर्ण पत्थर, जिससे कुछ और नहीं जुड़ता. इससे छेड़छाड़ की कोशिश हुई है.”
बहरहाल इस कुंड को जानने और देखने वाले ये तो मानते हैं कि नगर निगम के नल इस कुंड के किनारे किनारे लगे है, जो वजू के लिए हैं. मगर कुंड के बीचों-बीच मौजूद उस गोल घेरे में स्वतः पानी का कोई स्रोत नहीं हैं, ना तो मस्जिद कमिटी की तरफ से वहां कोई पाइप मिला है और न ही कोई प्राकृतिक स्रोत.
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