काशी विश्वनाथ के महंत का दावा, असल शिवलिंग मंदिर में सुरक्षित, तब ज्ञानवापी में क्या मिला?

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18 May 2022 (अपडेटेड: 14 Feb 2023, 09:15 AM)

ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी परिसर की वीडियोग्राफी सर्वे के दौरान हिंदू पक्ष की तरफ से शिवलिंग मिलने के दावे के बाद से ही बवाल मचा हुआ है.…

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ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी परिसर की वीडियोग्राफी सर्वे के दौरान हिंदू पक्ष की तरफ से शिवलिंग मिलने के दावे के बाद से ही बवाल मचा हुआ है. मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है, जहां दो सदस्यीय बेंच ने कथित शिवलिंग की सुरक्षा के साथ ही साथ ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज जारी रखने के निर्देश जारी किए हैं. हिंदू पक्ष जिसे शिवलिंग बता रहा है, मुस्लिम पक्ष उसे वजुखाने का फव्वारा कह रहा है. अब सबकी निगाहें कोर्ट कमिश्नर की सर्वे रिपोर्ट पर टिकी हैं. इस बीच सोशल मीडिया पर काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत का भी एक दावा काफी वायरल हो रहा है.

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असल में इस विवाद के दौरान ‘आज तक’ से बात-चीत करते हुए काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत राजेंद्र तिवारी ने दावा किया है कि प्राचीन शिवलिंग को उनके पुरखे औरंगजेब का कालखंड में बचाने में कामयाब हुए थे और वह आज भी काशी विश्वनाथ मंदिर में सुरक्षित है और उसी की पूजा होती है. ज्ञानवापी में क्या मिला के सवाल पर महंत कहते हैं कि पहले तो हर पत्थर को शिवलिंग नहीं कहा जाना चाहिए, जबतक मैं इसे देख न लूं इसके बारे में कुछ कह नहीं सकता.

महंत प्राचीन कहानी बताते हुए कहते हैं,

“दो चीजे हैं, ज्ञानवापी कुंड और मस्जिद का तालाब अलग-अलग है. ज्ञानवापी कुंड अब अस्तित्व में नहीं रह गया है. अब ज्ञानवापी कूप केवल रह गया है, जिसका उद्धरण काशी खंड, शिव पुराण में है. जो ज्ञानवापी में कुआं है उसे भगवान शिव ने अपने हाथ से खोदा है. ऐसा उद्धरण मिलता है. ज्ञानवापी तालाब पटकर समतल हो गया है. मस्जिद के अंदर का तालाब काफी पुराना है. हम बचपन में वहां खेलने जाया करते थे.”

राजेंद्र तिवारी

महंत से जब ज्ञानवापी मस्जिद से शिवलिंग मिलने के दावे के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘उसे आप शिवलिंग मत कहिए. मेरी समझ से किसी भी पत्थर के स्तंभ को शिवलिंग कहना उचित नहीं है. जबतक मैं उसे देखूं नहीं तबतक मैं उसके बारे में कैसे कहूं. व्यास से शिवलिंग का निर्धारण नहीं होगा. जहां तक काशी विश्वनाथ के शिवलिंग का सवाल है, ज्ञानवापी के ऐतिहासिक मंदिर का तम्लीक-नामा (संपत्ति का कानूनी कागजात) दाराशिकोह द्वारा दिया गया हमारे पूर्वजों के नाम से है, जो आज भी मेरे पास मौजूद है.’

महंत आगे कहते हैं, ‘जब वह मंदिर अपने अस्तित्व को खो रहा था, तब शिवलिंग हमारे पूर्वजों ने हटाकर वर्तमान में जहां शिवलिंग है, वहां ले जाकर स्थापित किया. वह शिवलिंग आज भी पूजित है. 40 वर्ष तक जबतक औरंगजेब का शासन था, तबतक आम जनता को इस बारे में सूचित नहीं किया गया. लेकिन जब औरंगजेब का शासन खत्म हुआ तो शिवलिंग को आम दर्शन के लिए खोला गया. बाद में अहिल्याबाई को स्वप्न हुआ तो वह आईं और उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया. विश्वानाथ मंदिर का शिवलिंग पहले जैसा है, ये कहां से ला रहे हैं?’

महंत के साथ इस पूरी बातचीत को नीचे शेयर किए गए वीडियो में 7 मिनट 6 सेकंड से लेकर 10 मिनट 23 सेकंड तक सुना और देखा जा सकता है.

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