UP के बाद BJP ने बंसल को सौंपा इन 3 राज्यों का जिम्मा, जानिए क्या है पार्टी की नई प्लानिंग

कुमार अभिषेक

• 03:00 AM • 11 Aug 2022

8 सालों तक उत्तर प्रदेश के संगठन महामंत्री का दायित्व सफलतापूर्वक निभाने और यूपी की सियासत में असंभव को संभव कर दिखाने वाले सुनील बंसल…

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8 सालों तक उत्तर प्रदेश के संगठन महामंत्री का दायित्व सफलतापूर्वक निभाने और यूपी की सियासत में असंभव को संभव कर दिखाने वाले सुनील बंसल को अब बड़ी जिम्मेदारी दी गई है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उन्हें उत्तर प्रदेश के दायित्व से मुक्त कर राष्ट्रीय महामंत्री संगठन का दायित्व दिया है.

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दरअसल, पिछले कुछ समय से इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि सुनील बंसल को अब बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी. ऐसा कहा जा रहा है कि 8 सालों तक उत्तर प्रदेश में संगठन का काम देखने के बाद बंसल खुद भी अब यूपी से बाहर जाना चाहते थे. ऐसे में बीजेपी ने संगठन के अपने सबसे मजबूत रणनीतिकार को देश के उन सबसे कमजोर राज्यों में प्रभारी के तौर पर भी लगा दिया है, जहां बीजेपी कभी सत्ता में नहीं आ पाई है.

बंसल अब इन राज्यों का मिला प्रभार

बंगाल जहां 40 सीटें पार्लियामेंट की हैं और जहां ममता बनर्जी की बड़ी चुनौती बीजेपी के सामने है, अब वहां का प्रभार सुनील बंसल को दिया गया है. इसके अलावा तेलंगाना जहां बीजेपी को लगता है कि वह केसीआर की सत्ता हिला सकती है, वहां का प्रभार भी सुनील बंसल को दिया गया है और साथ-साथ उड़ीसा जहां बीजेपी मजबूत तो है लेकिन कभी नवीन पटनायक के सामने नहीं टिक पाई, वहां के प्रभारी भी सुनील बंसल बनाए गए हैं.

सुनील बंसल को पूरब से लेकर दक्षिण तक का तटीय राज्य देने के पीछे एक बड़ी वजह देखी जा रही है. दरअसल कुछ वक्त पहले राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने 2024 में प्रधानमंत्री मोदी के अश्वमेघ रथ को रोकने के लिए जिस रणनीति का खाका सामने रखा, उसमें बीजेपी के लिहाज से वह तमाम कमजोर राज्य जहां पार्टी कभी सत्ता में नहीं आई है, उन राज्यों को जीतने का फार्मूला था.

ऐसा कहा गया कि अगर पूर्व से लेकर दक्षिण पश्चिम यानि केरल तक के तटीय राज्य एक साथ मिल जाएं और एक सियासी ब्लॉक बनाएं तो पीएम मोदी के 24 के रथ को रोका जा सकता है. प्रशांत किशोर के मुताबिक, बंगाल, उड़ीसा, तेलंगाना, बिहार और झारखंड के अलावा आंध्र प्रदेश और दक्षिण के तमिलनाडु और केरल जैसे राज्य ऐसे बड़े सियासी ब्लॉक हैं, जहां पार्लियामेंट की 200 से ज्यादा सीटें है. अगर 200 सीटों पर बीजेपी को रोक लिया जाता है तो 2024 में मोदी के लिए सत्ता का रास्ता रोका जा सकता है.

वहीं, अब बीजेपी ने विपक्ष के इस फार्मूले को भांपते हुए अपने सबसे तेज तर्रार संगठन के रणनीतिकार सुनील बंसल को उन 3 राज्यों का जिम्मा दे दिया है जो बीजेपी को लगता है कि आने वाले वक्त में उसकी झोली में आ सकते हैं.

दक्षिण और पूर्व के इन तीन राज्यों में बीजेपी को प्रभावी बनाने ओर 2024 में यहां से सीटें बढ़ाने की जिम्मेदारी अब सुनील बंसल के कंधे पर होगी. ये बंगाल, तेलंगाना और उड़ीसा ऐसे राज्य हैं, जहां बीजेपी जमीन पर तो है लेकिन जीतने की स्थिति में नहीं आ पाई है और यहीं सुनील बंसल का टेस्ट भी होगा.

यूपी में कैसे हुआ प्रयोग सफल?

अमित शाह के फार्मूले को आगे बढ़ाते हुए यूपी में सुनील बंसल ने जमीन पर जातीय आधार बड़ा किया, जिसमें ओबीसी और दलित जातियों को जोड़ा गया. इन वर्गों से नेता और कार्यकर्ता सामने लाए गए और उन्हें बड़ी तादात में संगठन और सदन में जगह दिलाई गई, जिसने बीजेपी को यूपी में इतना बड़ा बना दिया कि आज दूसरे सभी दल बौने हो गए हैं.

सिर्फ संगठन कौशल ही नहीं दूसरे दलों के मजबूत आधार वाले नेताओं को तोड़ने उन्हें बीजेपी से जोड़ने और दूसरे दलों से लाए नेताओं को उचित सम्मान और प्रतिनिधित्व देने की रणनीति ने बीजेपी को लगभग अजेय बना दिया. 2017 में स्वामी प्रसाद मौर्य, ओमप्रकाश राजभर, अनुप्रिया पटेल, दारा सिंह चौहान, धर्म सिंह सैनी सरीखे नेताओं को लाने में बंसल ने बड़ी भूमिका निभाई थी. हालांकि 2022 चुनाव के पहले इसमें से कइयों ने बीजेपी का दामन छोड़ा, लेकिन किसी ने सुनील बंसल को इसके लिए जिम्मेदार नहीं माना.

सुनील बंसल दूसरी पार्टी के दमदार नेताओं खासकर जनाधार वाले नेताओं को बीजेपी में लाने में महारथी माने जाते हैं. पार्टी के बड़े नेताओं के विरोध के बावजूद सुनील बंसल हर उस शख्स को बीजेपी से जोड़ते रहे जो सीटें निकाल सकता था. 2022 चुनावी नतीजों के बाद यूपी तक से अनौपचारिक बातचीत में सुनील बंसल ने कहा था कि इस चुनाव में कुल 29 विपक्ष के नेता उनकी उस लिस्ट में थे जिन्हें दूसरी विपक्षी पार्टियों से बीजेपी में लाना था और चुनाव आते-आते वो 22 नेताओं को लाने में सफल रहे.

सुनील बंसल की पहचान संगठन के महारथी के तौर पर इसलिए बनी क्योंकि उन्होंने संगठन को आंकड़ों के साथ जोड़ दिया. लाखों की तादात में नए कार्यकर्ता को बनाने, जमीनी कार्यकर्ताओं की सुनने, उनके फीडबैक को चुनावी रणनीति से जोड़ने की उनकी कार्यशैली कार्यकर्ताओं के बीच खासी सफल रही.

यूपी में सुनील बंसल की एंट्री 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले हुई, तब अमित शाह ने आरएसएस से यूपी में अपने लिए एक सहयोगी की मांग की थी, क्योंकि उस वक्त शाह यूपी के प्रभारी बनाए गए थे. यूपी में भाजपा की चुनावी सफलता के लिए रणनीति के जमीनी अमल में सुनील बंसल की भूमिका भी अहम मानी गई.

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में जब भाजपा को 73 सीटों पर जीत मिली तो इनाम के तौर पर उन्हें यूपी भाजपा का संगठन महामंत्री बना दिया गया. बंसल ने आते ही शहरी पार्टी के तौर पर चर्चित भाजपा संगठन की संरचना में नीचे तक बदलाव किए. बूथ से लेकर पन्ना प्रमुखों की संरचना कागजों से निकलकर धरातल पर उतारी. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 325 सीटों की शानदार विजय के लिए तय रणनीतियों की सफलता में भी सुनील बंसल का रोल सबसे अहम माना गया.

इसके बाद वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनावों और वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भी भाजपा की जीत में उनकी अहम भूमिका रही. वर्ष 2014, 2017, 2019 और 2022 के चुनावों के साथ वह पंचायत और नगर निकाय चुनाव में भी भाजपा की जीत के रणनीतिकारों में रहे हैं.

भाजपा में आने से पहले राजस्थान के रहने वाले सुनील बंसल ने छात्रों के बीच काम करने वाली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद(एबीवीपी) से काम शुरू किया था. वह एबीवीपी के सह संगठन मंत्री रहे. भाजपा में आने के बाद उन्होंने पार्टी में नए चेहरों को तैयार करने व जिम्मेदारी देने की कार्य संस्कृति को भी बढ़ावा दिया. लिहाजा भाजपा के विस्तार व प्रभाव के साथ ही यूपी में सुनील बंसल का भी प्रभाव और विस्तार बढ़ता गया.

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