विधान परिषद में लाल बिहारी यादव को नेता बनाकर अखिलेश ने यादव वोट बैंक को दिया संदेश? जानिए

शिल्पी सेन

• 02:35 AM • 28 May 2022

समाजवादी पार्टी ने यूपी विधान परिषद में लाल बिहारी यादव को नेता विरोधी दल बनाया है. यह फैसला ठीक उस समय किया गया है, जब…

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समाजवादी पार्टी ने यूपी विधान परिषद में लाल बिहारी यादव को नेता विरोधी दल बनाया है. यह फैसला ठीक उस समय किया गया है, जब यूपी विधानमंडल का सत्र चल रहा है. हालांकि, इसकी वजह यह भी है कि विधान परिषद में समाजवादी पार्टी दल के नेता संजय लाठर का कार्यकाल 26 मई को समाप्त हो गया था. मगर अब देखा जाए तो जहां विधान परिषद में लाल बिहारी यादव नेता होंगे, वहीं विधानसभा में खुद अखिलेश यादव विरोधी दल नेता हैं. मतलब एक ही जाति के नेता दोनों सदनों में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. राजनीति में हर बात के मायने होते हैं, तो इस बात को लेकर चर्चा शुरू हो गई है.

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कौन हैं लाल बिहारी यादव?

लाल बिहारी यादव का नाम यूं तो बहुत ज्यादा चर्चा में कभी नहीं आया, लेकिन समाजवादी पार्टी ने लाल बिहारी यादव को यूपी विधानमंडल के उच्च सदन का नेता तय कर दिया है. इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य रहे लाल बिहारी यादव शिक्षक नेता हैं और उन्होंने माध्यमिक शिक्षक संघ का वित्त विहीन गुट बनाया था. बलिया से मथुरा तक की पदयात्रा करके उन्होंने शिक्षकों के हितों को लेकर संदेश दिया था. लाल बिहारी यादव वाराणसी से शिक्षक क्षेत्र से एमएलसी हैं.

‘बिहारी’ के जरिए आजमगढ़ पर नजर?

इसके साथ ही एक खास बात यह है भी कि लाल बिहारी यादव आजमगढ़ के रहने वाले हैं. आजमगढ़ समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है और खुद अखिलेश यादव ने विधायक चुने जाने के बाद आजमगढ़ लोकसभा सीट की सदस्यता छोड़ी है. ऐसे में ये भी चर्चा चल रही है कि यहां होने वाले उपचुनाव में समाजवादी पार्टी डिंपल यादव को उतार सकती है. इसीलिए समाजवादी पार्टी इसको अपना मजबूत गढ़ बने रहने देना चाहती है. चर्चा यह भी है कि इसीलिए आजमगढ़ के ही नेता को विधान परिषद में नेता विरोधी दल बनाया गया है.

दूसरी बात ये कि आजमगढ़ में यादव वोटरों की संख्या ज्यादा है. पहले से ही ये चर्चा भी चल रही है कि बीजेपी भी आजमगढ़ चुनाव में यादव चेहरे के तौर पर दिनेश लाल यादव यानी भोजपुरी स्टार निरहुआ को दोबारा चुनाव लड़ा सकती है. ऐसे में अखिलेश यादव के लिए यहां के यादव वोटरों को संदेश देना जरूरी था.

हालांकि, लाल बिहारी यादव को विधान परिषद में नेता विरोधी दल बनाने की उम्मीद किसी को नहीं थी. इसलिए ये सवाल भी उठ रहा है कि क्या अखिलेश इस यादव वोट बैंक को एक संदेश देना चाहते हैं, जिन्होंने इस विधानसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी का साथ दिया?

इससे पहले विधान परिषद में समाजवादी पार्टी के नेता का पद अहमद हसन के पास रहा है. अहमद हसन के निधन के बाद ही संजय लाठर को नेता विरोधी दल बनाया गया था. लोगों को इस बात की उम्मीद थी कि विधान परिषद में नेता विरोधी दल का पद अखिलेश के विश्वस्त और खांटी समाजवादी नेता राजेंद्र चौधरी को बनाया जा सकता है, या एसपी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल को इसकी जिम्मेदारी दी जा सकती है. दोनों ही नेता वरिष्ठता और एसपी के मूल नेता होने के मामले में इस पद के लिए फिट बैठते हैं. मगर लाल बिहारी यादव को नेता विरोधी दल बनाने के साथ ही ये सम्भावना खत्म हो गई.

इस बात की चर्चा थी कि अखिलेश दूसरे ओबीसी जातियों को ये जिम्मेदारी देकर ये संदेश दे सकते थे कि वो गैर यादव ओबीसी को भी आगे बढ़ा रहे हैं. यादवों के साथ गैर यादव ओबीसी जातियों को सहेजने का संदेश अखिलेश यादव ने चुनाव से पहले दिया था. हालांकि नतीजों ने ये बता दिया कि फिलहाल इस प्रयास में एसपी को कोई सफलता नहीं मिली.

अखिलेश नहीं चाहते कि कोई और पावर सेंटर बने?

जानकार एक दूसरी बात की ओर इशारा करते हैं. राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि अखिलेश यादव अब कोई और पावर सेंटर नहीं बनाना चाहते. वो किसी ऐसे नेता का चुनना चाहते थे जो अखिलेश के प्रति ही निष्ठावान हो. वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल इसे इस नजरिए से देखते हैं कि अखिलेश अपने अलावा कोई और पॉवर सेंटर नहीं बनने देना चाहते. वो इस बात की ओर ध्यान दिलाते हैं कि अखिलेश ने अपनी पार्टी में जो पावर सेंटर कहे जाते थे उनको एक-एक करके हटा दिया.

रतन मणि लाल कहते हैं, “इससे दो बातें स्पष्ट हैं. एक तो अखिलेश किसी महत्वाकांक्षी और पॉलिटिकली महत्वपूर्ण व्यक्ति को कोई महत्वपूर्ण पद नहीं देंगे, जिससे वो आगे चलकर पावर सेंटर न बन पाए. दूसरा वो सिर्फ उन्हीं लोगों को आगे बढ़ाएंगे जिनकी निष्ठा अखिलेश यादव में होगी.”

आपको बता दें कि अभी विधान परिषद में समाजवादी पार्टी के सदस्यों की संख्या 11 है जो 6 जुलाई के बाद घट कर 6 रह जाएगी.

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