‘न योगी न संगठन की, ये टीम है 2024 की’, नए मंत्रिमंडल को लेकर क्या है बीजेपी की प्लानिंग?

शिल्पी सेन

• 03:10 AM • 27 Mar 2022

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ ने दोबारा शपथ ले ली है. उनके साथ ही 52 मंत्रियों ने भी शपथ ली है.…

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ ने दोबारा शपथ ले ली है. उनके साथ ही 52 मंत्रियों ने भी शपथ ली है. मंत्रिमंडल को एक नजर में देखें तो इसके गठन में ‘सबका साथ..’ के नारे पर अमल किया गया है और हर जाति और क्षेत्र को साधने की कोशिश की गई है. मगर सिर्फ जातीय समीकरण, अनुभवी और युवा चेहरों का संतुलन ही नहीं साधा गया है, बल्कि इसका आधार बनाया गया है ‘परफॉर्मेंस’ को. यानी इसमें उन्हीं चेहरों को शामिल किया गया है, जिनसे आगे 2024 की राह आसान बनती हो. यानी सही मायनों में ये ‘ये टीम 2024 की है.’

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परफॉर्मेंस है योगी 2.0 मंत्रिमंडल का की-वर्ड

मंत्रिमंडल में मंत्रियों के चयन के बारे में चुनाव के दौरान ही ये जानकारी मिल रही थी कि परफॉर्मेंस ही इसका आधार होगा. इसके लिए पार्टी की चुनाव के समय में टिकट वितरण के लिए जुटाई गई जानकारियां और फीड बैक काम आया. पार्टी ने ये फीड बैक योगी आदित्यनाथ के पहले कार्यकाल में मंत्री रहे मंत्रियों के बारे में जुटाया, तो जो विधायक मंत्री नहीं थे उनके क्षेत्र में रिकॉर्ड का भी फीड बैक लिया गया. उन प्रत्याशियों के बारे में भी ये होमवर्क था जो पार्टी के टिकट से पहली बार चुनाव लड़ रहे थे. बाहर से लिए गए प्रत्याशियों के बारे में ये होम वर्क सिर्फ टिकट देने में ही काम नहीं आया बल्कि जीत के बाद मंत्री पद देने में भी काम आया.

मंत्रियों के चयन में जातीय संतुलन के बावजूद इस बात का ध्यान रखा गया कि परफॉर्मेंस को ही आधार मान कर चला जाए. पहला उदाहरण योगी सरकार के पहले कार्यकाल के मंत्रियों का है. पहले कार्यकाल के 22 मंत्रियों को बाहर कर दिया गया. योगी आदित्यनाथ के दूसरे कार्यकाल के जिन मंत्रियों को बाहर किया गया उनमें श्रीकांत शर्मा, सिद्धार्थनाथ सिंह जैसे मंत्री हैं, तो महेंद्र सिंह और मोहसिन रजा, आशुतोष टंडन जैसे चेहरे भी हैं. ये वो चेहरे हैं, जिनको बहुत ज्यादा कद्दावर माना जाता है और इन्हें मंत्रिमंडल से बाहर करने की बात शायद ही किसी ने सोची हो. पर दूसरे कार्यकाल के लिए इन पर भरोसा नहीं किया गया है. इन सबके पीछे अलग-अलग फैक्टर रहे. पर नजर में सिर्फ एक ही लक्ष्य रहा ‘2024’ .

यूपी चुनाव शुरू होने से ठीक पहले 3 मंत्रियों- स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी ने पार्टी छोड़ दी थी. इसके बाद टिकट घोषणा में स्वाति सिंह और चौधरी उदयभान को टिकट नहीं मिला. पुराने मंत्रिमंडल से 11 मंत्री चुनाव हार गए. अब बारी थी जीत कर आए मंत्रियों को बदलने की. 22 मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया गया. इनमें श्रीकांत शर्मा, सिद्धार्थनाथ सिंह जैसे मंत्री भी हैं जो केंद्रीय नेतृत्व के विश्वास पात्र होने पर योगी के पहले कार्यकाल में शामिल हुए थे. वहीं इस लिस्ट में महेंद्र सिंह, आशुतोष टंडन जैसे मंत्री भी शामिल हैं, जिनकी पहले कार्यकाल में अहम भूमिका रही थी. डॉ दिनेश शर्मा और अशोक कटारिया जैसे चेहरे भी रहे जो संगठन के चेहरे माने जाते हैं.

दरअसल, गहन मंथन और कई दौर मीटिंग के बाद जो किसी भी लिहाज से 2024 के लक्ष्य की कसौटी पर दूसरों के मुकाबले उन्नीस रहे, उनको हटा दिया गया. इसके पीछे किसी का प्रदर्शन है तो किसी का अपेक्षा के अनुरूप सक्रिय न होना. वहीं किसी की उपयोगिता कम होना है, तो किसी का अपनी जाति के वोटबैंक पर पकड़ न होना. ऐसे मंत्रियों में नीलकंठ तिवारी एक नाम हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र से विधायक और मंत्री होने के बावजूद जिस तरह से उनको लेकर नाराजगी थी उसे देखते हुए जीतने के बाद भी उनको बाहर कर दिया गया.

यहां उन नामों की चर्चा भी जरूरी है, जिनको 2024 लक्ष्य को देखते हुए जगह दी गई है. इसमें सबसे बड़ा उदाहरण डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का है. सिराथु सीट से चुनाव लड़ने वाले केशव मौर्य को एसपी गठबंधन की पल्लवी पटेल से शिकस्त मिली, पर पार्टी ने उनपर दोबारा भरोसा जताया. इसके पीछे अपनी जाति का नेता होने के साथ ही ओबीसी वोट बैंक को जोड़ने के लिए उनके काम हैं. पिछड़ा वर्ग सम्मेलनों की पूरी शृंखला पार्टी ने की थी, जिसमें केशव मौर्य का अहम रोल था.

साफ है कि केशव की 2024 में भूमिका से शीर्ष नेतृत्व भी परिचित है. ब्रजेश पाठक को ब्राह्मण चेहरे के तौर पर तो देखा ही गया, तो उनका व्यवहार, उपलब्धता और सर्वसुलभ होना भी उनका कद बढ़ाने में काम आया. वहीं योगी के पहले कार्यकाल स्वतंत्र देव सिंह मंत्री से प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए थे क्योंकि उनकी जमीनी पकड़ और कार्यकर्ताओं के बीच काम करने का अनुभव पार्टी के लिए ज्यादा काम आने वाला था. सीएम योगी से उनकी ट्यूनिंग भी अच्छी है. ऐसे में उनको दोबारा सरकार में शामिल किया गया है.

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र से दयाशंकर मिश्र ‘दयालु’ को मंत्री बनाया गया है, जबकि वो किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं. 2014 में पार्टी में शामिल हुए दयालु सर्वसुलभ और व्यवहारकुशल बताए जाते हैं. वह शहर दक्षिणी से टिकट के दावेदार थे, पर उनको टिकट नहीं मिला. एक और नाम जो 2024 के लक्ष्य की ओर सीधे संकेत देता है, वो नाम दानिश आजाद अंसारी का है. युवा दानिश अंसारी विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता रहे हैं और किसी सदन के सदस्य नहीं हैं. अंसारी के सहारे बीजेपी ने मुस्लिम समाज को न सिर्फ संदेश दिया है बल्कि 2024 से पहले पार्टी ने मुस्लिम वोटों को जोड़ने की एक कोशिश भी की है. दानिश जैसे कुछ चेहरे संगठन और खास तौर पर संगठन महामंत्री के भी पसंद बताए जा रहे थे, लेकिन उन्होंने भी चयन में 2024 के लक्ष्य को देखते हुए उपयोगिता का ध्यान रखा.

योगी मंत्रिमंडल में 2024 के लक्ष्य को देखते हुए पूर्व ब्युरोक्रेट अरविंद कुमार शर्मा और पूर्व IPS को शामिल करना भी है. अरविंद कुमार शर्मा के बारे में तो पहले से चर्चा थी पर असीम अरुण के भी मंत्री बनने की चर्चा नतीजों के बाद होने लगी. प्रोफेशनल्स को सरकार में शामिल करना गुड गवर्नेंस की तैयारी का एक हिस्सा है. साफ है कि वजह कुछ भी हो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और संगठन की नजर में सिर्फ 2024 है, उसी लक्ष्य के लिए टीम का चयन किया गया है.

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