मंच पर नेता और सड़क पर जनता जुटा लाए चंद्रशेखर आज़ाद, क्या वोट बटोर पाएंगे?

रजत सिंह

• 05:10 PM • 21 Jul 2023

साल 2007 में बीएसपी चीफ मायावती 206 विधायकों के साथ उत्तर प्रदेश की सरकार में लौटकर आई थीं. मायावती के जन्मदिन पर पूर्वांचल के गांवों…

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साल 2007 में बीएसपी चीफ मायावती 206 विधायकों के साथ उत्तर प्रदेश की सरकार में लौटकर आई थीं. मायावती के जन्मदिन पर पूर्वांचल के गांवों से जीप भरकर के लोग लखनऊ के रामाबाई मैदान में जा रहे थे. कई ऐसे लोग भी जो थे, जो अपने दिन की दिहाड़ी छोड़कर जा रहे थे. पार्टी कार्यकार्ताओं ने उस दिहाड़ी की भरपाई के साथ खाने की भी व्यवस्था की थी.

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साल 2023 में दिल्ली के जंतर-मंतर में भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद ने अपने ऊपर हुए जानलेवा हमले के बाद शुक्रवार को रैली बुलाई थी. रैली में पीने के लिए पानी नहीं था. कई कार्यकर्ता अपने पैसों से 20 रुपए की पानी बोतल खरीद रहे थे. पार्क में जमीन पर बैठकर नीले झंडे के नीचे टिफिन से निकाल कर पराठा सब्ज़ी खा रहे थे. कुछ लोग खरमेटाव के लिए चबेना (मुरमुरा-चना) चबा रहे थे और लेटे हुए बीड़ी की बंडल खोल रहे थे.

बुंलदशहर से आए ज्वाला प्रसाद ने ये भी बताया कि वो अपने नेता चंद्रशेखर आजाद के लिए 3800 रुपए चंदा लगाकर गाड़ी से आए हैं. इन दोनों कहानी का समानता है. दोनों रैलियों में नीला निशान. तस्वीरों में अंबेडरकर, पेरियार, कांशीराम और तमाम दलित चेतना के नेताओं की तस्वीर. और दोनों रैलियों की भीड़ में दलितों की भागीदारी. यही उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति है. जिसकी अब की आँखों देखी सीधे दिल्ली के जंतर- मंतर से.

चंद्रशेखर की रैली में उमड़ी भीड़

जब हम सुबह 10 बजे चंद्रशेखर आज़ाद की दिल्ली वाली रैली में जंतर-मंतर पहुंचे तो बस, कार और ऑटो से लोग आ रहे थे. उससे ज़्यादा भी व्यस्त था उसके पास का जनपथ मेट्रो. जहां नीले गमछे वाले लोग झुंड में निकल रहे थे. ये वो समय है, जिसे मौसम के हिसाब से दिल्ली का सबसे घटिया समय कहा जा सकता है.

बरसात की धूप और दिल्ली की उमस, लेकिन इसमें भी लोग खड़े थे. हाथों में मूँछों पर ताव देते हुए आजाद की फोटो थी. अलग-अलग प्रदेश से आए लोग अपनी बात रख रहे थे. लेकिन जनता को इंतज़ार था अपने नेता चंद्रशेखर का, जो अभी पीठ में लगी गोली का इलाज कराके लौट रहे थे.

11 बजे मंच से कहा गया कि बस चंद्रशेखर आने वाले हैं, लोग पेड़ों पर, रेलिंग पर और तो खंबों पर चढ़ गए. कुछ के हाथों के मोबाइल से तस्वीर दिखा रहे थे कि चंद्रशेखर से वो मिल चुके हैं. हर कोई स्टेज के पास जाना चाह रहे थे. तभी स्टेज की ठीक पीछे चंद्रशेखर आज़ाद सुरक्षा घेरे में एंट्री करते हैं. नारा लगने लगाता है- येरों की ना गैरों की, भीम आर्मी शेरों की…तमाम मोबाइल चमक रहे थे फोटो के लिए. मंच पर पहुंचते ही चंद्रशेखर आज़ाद ने कहा- ‘अगर आप मुझे मानते हैं, तो बैठ जाइए.. इधर वाले लोग आप मेरा सम्मान कीजिए.’ धीरे-धीरे ही जनता थोड़ी-थोड़ी शांत हो गई.

इंडिया के आज़ाद!

मंच पर धीरे विपक्षी एकता यानी INDIA की जुटान शुरू हो गई. वाम दल से सीता राम येचुरी, सपा से स्वामी प्रसाद मौर्या, आरएलडी से जयंत चौधरी, कांग्रेस से दीपेंद्र हुड्डा और आम आदमी पार्टी के नेता. इनके साथ मंच पर चंद्रशेखर आज़ाद भी थे. आज़ाद की पार्टी के पास एक विधायक भी नहीं है, लेकिन उनके मंच पर पूरा विपक्ष एक था. अब इस INDIA में चंद्रशेखर होंगे या नहीं, इसका जवाब शायद संकेतों में दिया गया.

इंडिया को चुनना है

जितनी दिलचस्प मंच पर जुटे नेताओं की क़तार लग रही थी, उससे ज़्यादा नीचे खड़ी जनता थी. ज़्यादातर नीले गमछे वाले थे. बीच बीच में जयंत चौधरी की हैंडपम्प धारी भी मिल जा रहे थे. ये कुछ ऐसा था, जैसे गेहूं के खेत में कुछ सरसों के पौधे उग आए हों.

हालांकि, सपा के लाल धारी बिल्कुल गायब थे. संसद मार्ग से निकल कर जनपथ जाने वाली सड़क पर बुलेट और मूंछ वाले लड़के घूम रहे थे. दो तो ऐसे भी थे, जिन्होंने छाती पर जाटव का टैटू बनावा रखा था और शायद इंस्टाग्राम पर इनफ्लुएंसर बन रहे थे.

हालाँकि, ये ऐसा भी हैं कि जाति नाम से निकलकर कार, गाड़ी से होते हैं 56 इंच के सीने तक पहुंच है. इनके अंदर के ग़ुस्सा है. एक ऐसे ही नीले पट्टी वाले युवक ने ग़ुस्से में कहा- ‘लोग कहते हैं कि चंद्रशेखर के पास फॉचूर्नर कहां से आ गई. हमने चंदा लगाकर दिया और दिल्ली जाने के लिए हेलिकॉप्टर भी देंगे. वो बुल्डोज़र चलाएंगे. हम भैया के लिए नीचे लेट जाएंगे. लीजिए कितनी जान लेंगे.’ एक और नीला गमाछा धारी बोला- ‘इस बार इंडिया हारएगा एनडीए को.’

मायावती हमारी नेता हैं, लेकिन…

चंद्रशेखर आज़ाद अपने गुरु में सबसे पहले मायावती का नाम लेते हैं. मायावती अपने उत्तराधिकारी के तौर पर अपने भतीजे आकाश आनंद को चुन रही हैं. लेकिन सवाल ये है कि जनता किसे चुन रही है. जनता दो क़िस्म की है, लेकिन एक राय कॉमन है. मायावती ने इस समाज के लिए बहुत काम किया और अब चंद्रशेखर आज़ाद कर रहे हैं.

सुमन देवी कहती हैं कि मायावती ने हमारे लिए बहुत कुछ किया. लेकिन अब वह उस तरीके से नहीं बोलती हैं. महिलाओं की सुरक्षा के लिए सबसे आगे खड़े रहते हैं भैया (चंद्रशेखर आजाद). जब मैंने पूछा वोट किसे देंगी, तो जवाब मिला- ‘जो बहुजन समाज के लिए काम करेगा, आगे देखेंगे.’ ये है पहले क़िस्म की जनता. दूसरी ओर युवा नीला गमछा धारी हैं, जो सीधे कह रहे हैं मायावती कल थी और चंद्रशेखर आने वाला कल है.

जाट और जाटव भाई-भाई

पश्चिमी यूपी के जातीय संघर्ष में जाट और जाटव की लड़ाई पुरानी है. ये हर जगह हैं, दलित और वहां कि डॉमनेटिंग कॉस्ट के बीच. लेकिन मंच पर जाटव के नेता चंद्रशेखर आज़ाद को जाटों के नेता जयंत चौधरी अपना भाई कह कर पुकार रहे थे. वहीं मंच के नीचे खड़े बूढ़े राष्ट्रीय लोक दल के नेता कह रहे थे, अब तो भैया जाट और जाटव भाई-भाई हैं. तुमने खतौली नहीं देखा. अब आने वाले लोकसभा में भी देखना. ये जोड़ी बदल देगी, सब चंद्रशेखर की सुन रही हैं.

अखिलेश को मिलेगा वोट, लेकिन शर्त है ये

मंच पर यूपी के नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव नहीं थे. इसको लेकर चर्चा भी थी. जनता से हमने पूछ लिया, चंद्रशेखर कहेंगे तो अखिलेश यादव को वोट देंगे? इससे पहले जाटव ने तब सपा को वोट दिया था, जब मिले मुलायम-कांशीराम हुआ था. उसके बाद गेस्ट हाउस था और दलित और सपा दो कोनों पर खड़े हो गए. जवाब मिला- ‘देंगे. इज़्ज़त मिलेगी, शर्तें मानेंगे तो अखिलेश यादव को भी वोट देंगे.’ शायद इस जवाब के पीछे वो तस्वीर भी थी, जब विधानसभा चुनाव के पहले अखिलेश यादव से मिलकर चंद्रशेखर आज़ाद ने माइक पर खूब बुरा भला कहा था.

पत्रकार की नज़र से

युवा नेता की रैली में पहुंचे युवा पत्रकार की नाकों और आंखों ने जो देखा और उससे एक नज़रिया मिला. एक भीड़ थी, जिसमें पसीनों की गंध थी. लोग सामूहिक नीले रंग ओढ़े थे. जिसमें गॉगल्स वाली ग्रामीण महिलाएं थीं, जिन्हें ख़ुद और ख़ुद के नेता से प्रेम था. कुछ उत्साही लड़के थे, जिनके लिए आर्मी सबकुछ है. लुटियन की दिल्ली में सपना था कि एक दिन मेरा नेता उस घर में बैठेगा, जहां अंबेडकर ने संविधान बनाया था. दूसरी ओर एक मंच था, जहां एक नेता था. उसके साथ और भी नेता थे, जिन्हें लगा रहा था कि एक उस घर में उनकी चलेगी, जिसे जनता संसद कहती है. गूगल पर ये संसद भवन मुश्किल से 10 मिनट की दूरी था. पर सपनों में इसके लिए अभी संघर्ष की दूरी थी, जो वहां जारी है. जिसका नारा है-‘जय भीम’

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