गाजीपुर: कौन होगा मनोज सिन्हा का उत्तराधिकारी? क्या राजभर के खाते में जाएगी सीट

विनय कुमार सिंह

13 Jul 2023 (अपडेटेड: 13 Jul 2023, 03:40 PM)

देश में लोकसभा चुनाव 2024 की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. सत्रहवीं लोकसभा के गठन के लिए आम चुनाव साल 2019 में 11 अप्रैल…

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देश में लोकसभा चुनाव 2024 की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. सत्रहवीं लोकसभा के गठन के लिए आम चुनाव साल 2019 में 11 अप्रैल से 19 मई 2019 के बीच कुल सात चरणों में कराए गए थे, जबकि चुनाव के परिणाम 23 मई 2019 को घोषित किए गए थे. जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत बनाते हुए 303 सीटों पर जीत हासिल की की थी, जबकि बीजेपी गठबंधन ने कुल 353 सीटों पर जीत हासिल की थी.

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वाराणसी लोकसभा से नरेंद्र मोदी दूसरी बार जीत कर फिर प्रधानमंत्री बने, जबकि इसी के बगल की गाजीपुर सीट से केंद्रीय मंत्री रहे और तत्कालीन सांसद रहे मनोज सिन्हा एक लाख से ज्यादा वोटों से गठबंधन के बसपा प्रत्याशी अफजाल अंसारी से लोकसभा चुनाव हार गए थे. बावजूद उसके कुछ दिनों बाद बीजेपी शीर्ष नेतृत्व में गृह मंत्री के करीबी माने जाने वाले मनोज सिन्हा को जम्मू कश्मीर का एलजी नियुक्त कर दिया गया और अभी भी वे वहां अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं.

माना जा रहा है कि शीर्ष नेतृत्व मनोज सिन्हा (Manoj Sinha) के कश्मीर मसलों पर समझदारी से किए जा रहे कार्यों से संतुष्ट है और जम्मू कश्मीर के आम चुनावों को कराकर उन्हें और बड़ी जिम्मेदारी दे सकता है. अब ऐसे में 18वीं लोकसभा का चुनाव आगामी साल 2024 में होने को है और उसकी उल्टी गिनती भी चालू हो चुकी है.

 भारतीय जनता पार्टी सूत्रों की मानें तो विपक्ष की लामबंदी को देखते हुए भाजपा शीर्ष नेतृत्व वर्तमान चुनौतियों से निपटने के लिए यूपी लोकसभा में जीती हुई सीटों के साथ हारी हुई सीटों पर कई आंतरिक सर्वे करा चुकी है, जिसमें गाजीपुर के पिछले और वर्तमान समीकरणों को देखते हुए भाजपा के लिहाज से इसे जोखिम सीट का दर्जा दिया गया है. इसका मुख्य कारण यहां का जातीय समीकरण है.

आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में गाजीपुर लोकसभा (75) में लगभग 21 लाख से ज्यादा मतदाता भाग लेंगे और यहां की सीट पर जातीय समीकरण कुछ इस प्रकार चर्चा में हैं. सर्वाधिक यादव 5 लाख से ज्यादा हैं, दलित भी लगभग 5 लाख हैं, जो यादव मतदाताओं से थोड़े ही कम हैं, जबकि मुस्लिम मतदाता साढ़े तीन लाख के आसपास हैं. कुशवाहा लगभग 2 लाख से ज्यादा है, अति पिछड़ा वर्ग के मतदाता भी लगभग 4 लाख से ज्यादा हैं, जिसमें राजभर, निषाद, बिंद, आदि के ये मतदाता कई जातियों और मतों में बंटा हुआ है.

वहीं, राजपूत मतदाता लगभग 3 लाख पचास हजार, ब्राह्मण और भूमिहार मिलाकर लगभग 3 लाख हैं, जबकि अन्य सवर्ण जिसमें कायस्थ और बनिया डेढ़ लाख से ऊपर हैं और अन्य लाख-पचास हजार हैं.

इन आंकड़ों को देखें तो पिछली बार 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 11 लाख 527 वोट पड़े थे, जिसमें सपा, बसपा और रालोद गठबंधन के बीएसपी प्रत्याशी अफजाल अंसारी 5 लाख 66 हजार 82 वोट यानी पोल वोट का 51 फीसदी वोट पाए थे. वहीं, भाजपा के मनोज सिन्हा 4 लाख 46 हजार 690 वोट पाकर 40 प्रतिशत मत ही प्राप्त कर पाए थे, जबकि ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी यहां से अकेले चुनाव लड़कर तीसरे स्थान पर थी और उनके प्रत्याशी रामजी राजभर 33 हजार 877 (3.06%) वोट पाए थे.

फिलहाल गाजीपुर में जातीय समीकरण के चलते हजारों करोड़ की परियोजनाओं के जरिए विकास की आंधी बहाने का दावा करने वाले मनोज सिन्हा को जेल में बंद माफिया मुख्तार अंसारी के बड़े भाई और बीएसपी प्रत्याशी अफजाल अंसारी ने एक लाख से ज्यादा वोटों से हरा दिया था, लेकिन वर्तमान स्थिति में अफजाल अंसारी को एक पुराने अपराधिक गैंगस्टर मामले में स्थानीय एमपी-एमएलए कोर्ट ने चार साल की सजा सुना दी है, जिसके बाद वे जेल चले गए और उनकी संसद सदस्यता भी समाप्त कर दी गई है. इसमें अंसारी इलाहाबाद हाई कोर्ट की शरण में हैं, जिसमें आगामी 24 जुलाई को फैसला आना है.

अब बीजेपी के लिए गाजीपुर की सीट को जीतना प्रतिष्ठा का विषय है. ऐसे में अगर मनोज सिन्हा जो आजकल एक संवैधानिक पद पर आसीन हैं वे गाजीपुर से तीन बार सांसद रहे हैं. उनके बाद यहां फिलहाल सेकेंड लाइन या ये कहें कि उनका उत्तराधिकारी कौन हैं, तो कोई ऐसा नाम नहीं है जो वर्तमान परिस्थिति में स्पष्ट जीत के साथ पार्टी लाइन पर एकमत रूप दावेदार दिखता हो.

हालांकि, दावेदारी में एमएलसी विशाल सिंह चंचल, वर्तमान अध्यक्ष भानुप्रताप सिंह, राम नरेश कुशवाहा, शोभनाथ यादव, सरोज कुशवाहा, डॉक्टर संगीता बिंद ‘बलवंत’ के साथ मनोज सिन्हा के पुत्र अभिनव सिन्हा, जो आजकल पूरे प्रोटोकॉल में संगठन के कार्यों में सतही स्तर पर दिख रहे हैं. ऐसे कई नामों की चर्चा हम कर सकते हैं, लेकिन इसके साथ ही कोई ठोस नाम नहीं होने की वजह से जानकर ये मानते हैं कि गाजीपुर की सीट गठबंधन को जा सकती है. ऐसे में सबकी निगाहें पूर्वांचल में सक्रिय ओमप्रकाश राजभर की सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी की ओर हैं.

आगामी पटना रैली में राजभर अपने गठबंधन का ऐलान कर सकते हैं और अगर भाजपा के साथ राजभर जाते हैं, तो माना जा रहा है कि दो सीटों पर वे अपने सिंबल छड़ी से चुनाव लड़ सकते हैं. सलेमपुर और गाजीपुर, और अगर ऐसा होता है तो उनके बेटे अरुण राजभर गाजीपुर लोकसभा सीट से आगामी लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए एक बेहतर विकल्प बन सकते हैं.

जातिगत समीकरण में गाजीपुर लोकसभा पांच विधानसभा सीटों में आती हैं उनमें राजभरों के लगभग सवा लाख वोट हैं, जबकि राजभर की मानें तो उसके समकक्ष की सारी पिछड़ी जातियां जो लगभग चार लाख हैं उसका वोट भी वो पाएंगे. फिलहाल देखना है कि भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की सीट बनी गाजीपुर लोकसभा सीट पर 18वीं लोकसभा के लिए विपक्ष को कड़ी टक्कर देने के लिए मनोज सिन्हा का उत्तराधिकारी कौन आता है. मनोज सिन्हा के बेटे अभिनव या ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरुण राजभर या फिर कोई और.

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