उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में 3 अक्टूबर को हुई हिंसा में 4 किसानों समेत 8 लोगों की मौत हो गई.
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यह घटना ऐसे वक्त में हुई है, जब बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार के 3 कृषि कानूनों के खिलाफ कई महीनों से जारी किसान आंदोलन का असर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक ही सीमित माना जा रहा था. इस बीच यूपी में भी सत्तारूढ़ बीजेपी 2022 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पिछले कुछ वक्त से किसानों को साधने की हरसंभव कोशिश करती दिखी. मगर अब लखीमपुर खीरी हिंसा के बाद न सिर्फ बीजेपी के प्रति किसानों की ‘नाराजगी’ का दायरा बढ़ सकता है, बल्कि उसे बड़ा सियासी नुकसान भी हो सकता है. ऐसा क्यों हो सकता है, उसके लिए सबसे पहले लखीमपुर खीरी जिले के बारे में कुछ बातें जान लेते हैं.
भारत-नेपाल सीमा पर स्थित लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है. यह जिला लखनऊ मंडल का हिस्सा है और इसका कुल क्षेत्रफल 7680 वर्ग किलोमीटर है. खेती-किसानी इस जिले की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी मानी जाती है.
गेहूं, चावल, मक्का, जौ और दालें यहां की प्रमुख खाद्य फसलें हैं, जबकि गन्ना और तिलहन प्रमुख गैर-खाद्य फसलें हैं. पिछले कुछ वक्त से यहां के किसान मेन्थॉल मिंट की खेती भी करने लगे हैं, क्योंकि तराई क्षेत्र होने के नाते यह इलाका मिंट की खेती के लिए अच्छा माना जाता है.
अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बताया है कि उत्तर प्रदेश डायरेक्टरेट ऑफ इकनॉमिक्स एंड स्टैटिस्टिक्स की ओर से जारी डिस्ट्रिक्ट डोमेस्टेक प्रोडेक्ट डेटा के मुताबिक, लखीमपुर खीरी जिले ने 2019-20 में 366727.16 करोड़ रुपये की राज्य की कृषि, वानिकी और मछली पालन क्षेत्र की जीडीपी में 12414.40 करोड़ रुपये (3.38 फीसदी) का योगदान दिया था.
उस साल, लखीमपुर के जिला घरेलू उत्पाद में कृषि, वानिकी और मछली पालन क्षेत्र का हिस्सा 45.30 फीसदी था, जो पूरे उत्तर प्रदेश (23.7 फीसदी) और भारत (18.4 फीसदी) की तुलना में ज्यादा था.
बात यहां की आबादी की करें 2011 की जनगणना के मुताबिक, इस जिले की कुल आबादी 4021243 थी, जिनमें 3078262 हिंदू थे. उस जनगणना के मुताबिक, यहां सिखों की 94388 आबादी दर्ज की गई.
अब उत्तर प्रदेश के सेंट्रल रीजन में आने वाले इस जिले की सियासत सूरत पर भी एक नजर दौड़ा लेते हैं. लखीमपुर खीरी जिले में 8 विधानसभा क्षेत्र हैं- पलिया, निघासन, गोला, श्रीनगर, धौरहरा, लखीमपुर, कसता और मोहम्मदी. 2017 में बीजेपी को इन सभी सीटों पर जीत हासिल हुई थी. बीजेपी के लिए यह प्रदर्शन इसलिए खास था क्योंकि 2012 के विधानसभा चुनाव में उसे इस जिले की महज एक सीट पर जीत हासिल हुई थी, जब निघासन सीट मौजूदा केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के खाते में गई थी.
लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में प्रदर्शनकारी किसानों ने मंत्री टेनी के बेटे आशीष मिश्रा के ही काफिले पर किसानों को रौंदने के आरोप लगाए हैं. हालांकि, आशीष मिश्रा का दावा है कि वह घटनास्थल पर मौजूद ही नहीं थे.
मगर इस हिंसक घटना के बाद विपक्ष न सिर्फ बीजेपी की सरकार पर आशीष मिश्रा को बचाने के आरोप लगा रहा है, बल्कि वो बीजेपी को किसान विरोधी भी बता रहा है. ऐसे में अगर विपक्ष अपने इन दावों से किसानों के बीच सेंध लगाने में कामयाब रहा तो इसका असर लखीमपुर खीरी के साथ-साथ उसके पड़ोसी जिलों पर भी पड़ सकता है.
यहां यह जान लेना बेहद अहम है कि बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में लखीमपुर खीरी और उसके 5 पड़ोसी जिलों (पीलीभीत, हरदोई, सीतापुर, शाहजहांपुर, बहराइच) में दमदार प्रदर्शन किया.
पीलीभीत में कुल 4 विधानसभा क्षेत्र हैं, यहां 2017 में बीजेपी को सभी सीटों पर जीत मिली थी. हरदोई में 2017 के चुनाव में बीजेपी ने यहां की 8 में 7 विधानसभा सीटों पर कब्जा जमाया था. सीतापुर में यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जिले की 9 में से 7 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इस चुनाव में पार्टी के खाते में शाहजहांपुर की 6 में से 5 सीटें गई थीं. बात बहराइच की करें तो इस जिले में 7 विधानसभा क्षेत्र हैं, 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां बीजेपी को 6 सीटों पर जीत मिली थी.
इस तरह लखीमपुर खीरी समेत इन 6 जिलों की कुल 42 विधानसभा सीटों में से 2017 में बीजेपी के खाते में 37 सीटें आई थीं. जबकि 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खाते में इन 42 सीटों में से महज 5 ही आई थीं (लखीमपुर खीरी से 1, पीलीभीत से 1, हरदोई से 0, सीतापुर से 0, बहराइच से 2, शाहजहांपुर से 1). ऐसे में साफ है कि बीजेपी को अगर लखीमपुर खीरी हिंसा मामले से सियासी नुकसान हुआ तो उसके पास खोने के लिए बहुत कुछ होगा.
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