5 सितंबर को मुजफ्फनगर में हुई संयुक्त किसान मोर्चा की महापंचायत के बाद उत्तर प्रदेश की सियासत गरमा गई है. किसान आंदोलन का चेहरा बने और भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) नेता राकेश टिकैत ने महापंचायत के मंच से केंद्र और राज्य सरकार पर निशाना साधा, तो आंदोलन के राजनीतिक असर को लेकर तमाम चर्चाएं शुरू हो गईं. इस बीच एक किसान नेता गुलाम मोहम्मद जौला का नाम भी चर्चाओं का केंद्र बिंदु बना है. मुजफ्फरनगर से बीजेपी सांसद संजीव बलियान और बुढ़ाना से बीजेपी विधायक उमेश मलिक ने 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों का जिक्र करते हुए महापंचायत में गुलाम मोहम्मद जौला को मंच देने पर सवाल उठाए हैं.
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ऐसे में सबके मन में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर कौन हैं गुलाम मोहम्मद जौला? यह कहानी सीनियर टिकैत यानी महेंद्र सिंह टिकैत के जमाने से शुरू होती है. भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) का नेतृत्व जब महेंद्र सिंह टिकैत के हाथों में था तब गुलाम मोहम्मद जौला उनके आंदोलनों का मंच संभाला करते थे. बीबीसी में एक आर्टिकल में रेहान फजल लिखते हैं कि तब महेंद्र सिंह टिकैत के मंच पर कोई न कोई मुस्लिम नेता जरूर रहता था. असल में यह पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम एकता की अपनी तरह की एक कोशिश थी, जो काफी लंबे समय तक एक मजबूत गठजोड़ रही.
2013 के दंगों के बाद बीकेयू और जौला की राह हुई थी अलग, फिर दिख रही जुगलबंदी
मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए दंगों के बाद बहुत कुछ बदल गया. ऐसे ही बड़े बदलावों में से एक था गुलाम मोहम्मद जौला का बीकेयू से अलगाव. आज बीजेपी जौला और टिकैत की जुगलबंदी पर निशाना साध रही है, लेकिन 2013 में परिस्थितिया्ं बिल्कुल अलग थीं. मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जौला ने खुलकर बीकेयू चीफ नरेश टिकैत और उनके भाई राकेश टिकैत की लीडरशिप पर सवाल उठाए थे. मामला इतना आगे बढ़ा कि नवंबर 2013 में नरेश टिकैत ने संगठन विरोधी गतिविधियों के आरोप में गुलाम मोहम्मद जौला को बीकेयू से निष्कासित कर दिया. तब जौला ने भारतीय किसान मजूदर मंच के नाम से अपना अलग संगठन बना लिया.
जनवरी 2021 में बदली तस्वीर नजर आई, जब महापंचायत में जयंत ने छुए जौला के पैर
5 सितंबर की महापंचायत से पहले 29 जनवरी 2021 को भी मुजफ्फरनगर में महापंचायत हुई थी. तब एक बदली हुई तस्वीर नजर आई थी. उस वक्त बीकेयू नेता नरेश टिकैत के साथ मंच पर गुलाम मोहम्मद जौला भी मौजूद थे. तब जयंत चौधरी ने मंच पर जौला के पैर छुए थे और 2013 के बाद टूट चुकी जाट-मुस्लिम एकता के तार जुड़ने के संकेत मिले थे. उसी मंच से महापंचायत को संबोधित करते हुए जौला ने कहा था कि आपसे दो गलतियां हुईं. एक तो आपने चौधरी अजीत सिंह को हराया और दूसरा मुस्लिमों को मारा.
असल में 2013 के बाद मुजफ्फरनगर के सांप्रदायिक सौहार्द में आई दरार का सबसे ज्यादा पॉलिटिकल माइलेज बीजेपी को जाता दिखा. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में जाटों ने एकमुश्त बीजेपी को वोटिंग की. इस वजह से पश्चिमी यूपी में आरएलडी का ना सिर्फ जनाधार ध्वस्त हुए बल्कि अजीत चौधरी, जयंत चौधरी अपनी सीट तक नहीं बचा सके थे. ऐसे में किसान आंदोलनों के बहाने जब एक बार फिर मुजफ्फरनगर में जाट-मुस्लिम एकता का जिक्र शुरू हुआ तो बीजेपी की तरफ से पॉलिटिकल बयानबाजी सामने आ रही हैं.
अल्लाहु-अकबर, हर-हर महादेव से राकेश टिकैत ने दिए यही संदेश 5 सितंबर की महापंचायत को संबोधित करते हुए राकेश टिकैत ने कहा था कि अल्लाहु-अकबर के साथ हर-हर महादेव का नारा यहां लगता रहा है. उन्होंने महेंद्र टिकैत के जमाने को भी इस नारे संग याद किया. महापंचायत में जौला की मौजूदगी और सांप्रदायिक सौहार्द के पुराने प्रतीकों का जिक्र, इसी ओर इशारा कर रहा था कि किसान नेता अपना पुराना ध्वस्त हो चुका समीकरण जिंदा करने के प्रयास में हैं.
बीजेपी नेताओं ने कहा, मुजफ्फरनगर को दंगों की आग में झोंकने वाले मंच पर बैठे
मुजफ्फरनगर महापंचायत के बाद बीजेपी ने काफी आक्रामक रुख दिखाने की कोशिश की है. प्रदेश की टॉप लीडरशिप के अलावा पश्चिमी यूपी के कद्दावर बीजेपी नेताओं ने महापंचायत को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है. केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान ने साफ-साफ बयान दिया कि ये पंचायत किसानों की नहीं बल्कि राजनैतिक लोगो द्वारा आयोजित की गयी है। उन्होंने कहा कि इसका जवाब मुज़फ्फरनगर की जनता मांगेगी कि ऐसे लोग जिन्होंने मुज़फ्फरनगर को दंगों की आग में झोंका और वो पंचायत के मंच पर क्यों बैठे हैं।
इस किसान पंचायत से भारतीय जनता पार्टी के जनाधार पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है. हमारे लोग वहां नहीं आ रहे हैं दूसरे प्रदेशों के लोग ज्यादा आए हैं. दुख तो इस बात का है कि 2013 में जिन लोगों का समाज ने बहिष्कार किया था, जिन लोगों ने यहां आग लगाने का काम किया था, जिन लोगों ने यहां का वातावरण बिगाड़ने का काम किया था, जिन लोगों का समाज ने बहिष्कार किया था उन लोगों का मंच पर बुलाकर सम्मान किया जा रहा है. किसान यूनियन के नेता के द्वारा गुलाम मोहम्मद जोला को आन बान शान बताया जा रहा है.
बीजेपी के बुढ़ाना विधानसभा सीट से विधायक उमेश मलिक
क्या कहते हैं गुलाम मोहम्मद जौला?
गुलाम मोहमद जौला इसके उलट बीजेपी नेताओं पर ही निशाना साध रहे हैं. उनका कहना है कि बीजेपी के नेता संजीव बलियान उनके ऊपर गलत आरोप लगा रहे हैं. जौला कहते हैं कि बलियान अपने यहां दंगे नहीं रोक पाए और उनके जौला में दंगों से कोई नहीं मरा. जौला ने कहा कि बीजेपी नेता उनका नाम इसलिए ले रहे हैं, क्योंकि उनके पास अब दूसरा कोई मुद्दा नहीं बचा है. वह साफ कहते हैं कि इस बार चुनाव में सबको पता चल जाएगा कि कौन क्या है.
इनपुट: संदीप सैनी
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