उपचुनावों में हार के बाद SP को एक और झटका, विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष की मान्यता गई

आशीष श्रीवास्तव

• 05:20 AM • 08 Jul 2022

आजमगढ़ (Azamgarh News) और रामपुर (Rampur News) उपचुनावों में मिली हार का गम अभी खत्म हुआ था या नहीं लेकिन इस बीच समाजवादी पार्टी (SP)…

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आजमगढ़ (Azamgarh News) और रामपुर (Rampur News) उपचुनावों में मिली हार का गम अभी खत्म हुआ था या नहीं लेकिन इस बीच समाजवादी पार्टी (SP) को एक और झटका लगा है. यूपी विधान परिषद में SP की नेता प्रतिपक्ष की मान्यता खत्म हो गई है. सपा के सदस्यों की संख्या कम हो जाने की वजह से ऐसा हुआ है. आपको बता दें कि 100 सदस्यों वाली यूपी विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष का पद होने के लिए कुल संख्या के 10 फीसदी या उससे अधिक सदस्य होने चाहिए.

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फिलहाल सपा के पास विधान परिषद में सदस्यों की संख्या सिर्फ 9 रह गई है. बीती 6 जुलाई को विधान परिषद के 12 सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो गया. इनमें से छह सपा के, बसपा के तीन, भाजपा के दो और कांग्रेस के 1 सदस्य शामिल थे. पिछले दिनों विधान परिषद की 13 सीटों पर हुए चुनाव में सपा के 4 और बीजेपी के 9 उम्मीदवार निर्विरोध जीते थे.

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इसके बाद अब विधान परिषद में भाजपा के 73 सदस्य हैं, जबकि सपा के 9 और बसपा के मात्र एक सदस्य हैं. संख्याबल कम होने की वजह से समाजवादी पार्टी के MLC लाल बिहारी यादव को नेता प्रतिपक्ष पद से हटा दिया गया है.

आपको बता दें कि पिछले दिनों अपनी सरकार के 100 दिन पूरे होने पर आयोजित प्रेस वार्ता में सीएम योगी आदित्यनाथ ने तंज कसते हुए कहा था कि विधान परिषद के गठन के बाद 87 वर्ष के बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब उत्तर प्रदेश विधान मंडल का उच्च सदन कांग्रेस विहीन भी हो गया है. योगी ने समाजवादी पार्टी को लेकर भी कई तंज कसे थे.

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पहले यूपी विधानसभा चुनाव 2022, फिर लोकसभा उपचुनावों में मिली हार के बाद अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) अपने गठबंधन सहयोगियों के निशाने पर भी हैं. खासकर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर उनपर लगातार सड़क पर उतर राजनीति करने का दबाव डाल रहे हैं. चुनावी हार के बाद बीते दिनों अखिलेश यादव ने तत्काल प्रभाव से समाजवादी पार्टी प्रदेश अध्यक्ष को छोड़कर समाजवादी पार्टी के सभी युवा संगठनों, महिला सभा एवं अन्य सभी प्रकोष्ठों के राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्रदेश अध्यक्ष, सहित राष्ट्रीय, राज्य कार्यकारिणी को भंग करने का फैसला लिया था.

हालांकि अब अखिलेश यादव के सामने 2024 के लोकसभा चुनावों की चुनौती है. उन्हें अपने पार्टी का मनोबल ऊंचा रखने के साथ-साथ गठबंधन के फ्रंट पर भी काफी सोच-विचार करने की जरूरत है.

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