जिस तरीके से समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को लेकर बयान दिया. चौपाइयों को उद्धृत कर उसे बकवास करार दिया. साथ ही इसे प्रतिबंधित करने की भी मांग कर डाली. इसके बाद से पार्टी के भीतर लगातार स्वामी प्रसाद के खिलाफ आवाज उठनी शुरू हो गई है.
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समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल यादव ने इटावा में कहा कि हम लोग राम और कृष्ण को मानने वाले लोग हैं, यह बयान तो उनका निजी बयान है पार्टी का इससे कोई लेना-देना नहीं.
समाजवादी पार्टी के ज्यादातर ब्राह्मण नेता और विधायक स्वामी प्रसाद मौर्य के इस बयान से खासे नाराज हैं और उन्होंने इसकी शिकायत अखिलेश यादव से भी की है. ऊंचाहार से विधायक मनोज पांडे ने भी रामचरितमानस महत्ता और हिंदू जीवन दर्शन में उसके महत्व की बात बताई.
वहीं, पूर्व विधायक संतोष पांडे सहित कई स्वर्ण नेताओं ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव से स्वामी मौर्य के बयान की आलोचना की है, लेकिन अखिलेश यादव फिलहाल चुप हैं. जो पार्टी की लाइन है. वह सिर्फ इतनी है कि यह स्वामी मौर्य का निजी बयान है, इससे पार्टी इत्तेफाक नहीं रखती.
वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी को यह भी लगता है कि अगर स्वामी मौर्य के बयान के बाद उनके खिलाफ ज्यादा माहौल बनेगा तो इससे पिछड़ों में और अंबेडकरवादी सोच रखने वाले लोगों में मैसेज अच्छा नहीं जाएगा, इसलिए पार्टी ने फिलहाल दोनों नाव पर पैर रखा हुआ है.
अखिलेश यादव की तरफ से स्वामी प्रसाद मौर्य को यह संदेश भिजवाया गया है कि वह चुप रहें और रामचरितमानस को बकवास कहने या फिर प्रतिबंधित करने जैसी बातों से बचें.
फिलहाल अखिलेश यादव चुप हैं और इस विषय पर विमर्श को ज्यादा बढ़ाने के मूड में नहीं है. उन्हें लगता है कि चुप रहना ही उन्हें फायदा दे सकता है, क्योंकि पार्टी के भीतर दोनों विचारों को खारिज नहीं किया जा सकता.
पार्टी के भीतर एक सोच ये है कि इस तरह के बयान से बीजेपी के हिंदुत्व के छाते के नीचे से दलितों और पिछड़ों को निकालकर गोलबंद किया जा सकता है तो वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी को यह भी लगता है कि बड़ी मुश्किल से वह मुस्लिम परस्त पार्टी के टैग से बाहर निकलकर सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ बढ़ी है. ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य का यह बयान उन्हें एक बार फिर हिंदू विरोधी पार्टी के दौर में लौटा सकता है.
रामचरितमानस पर ‘विवादित’ बयान देने के मामले में स्वामी मौर्य के लखनऊ में मुकदमा दर्ज
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