21 अगस्त के भारत बंद को यूपी में इन्होंने दिया समर्थन, परेशानी से बचने के लिए कल क्या करें?

यूपी तक

• 04:10 PM • 20 Aug 2024

21 अगस्त को भारत बंद का आह्वान; बीएसपी और आजाद समाज पार्टी ने किया समर्थन. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलित और आदिवासी संगठनों का प्रदर्शन.

सांकेतिक तस्वीर.

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Bharat Bandh 2024: 21 अगस्त को अनुसूचित जातियों और जनजातियों के आरक्षण में उप-वर्गीकरण (सब-कैटेगराइजेशन) पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के खिलाफ भारत बंद का आह्वान किया गया है. विभिन्न दलित और आदिवासी संगठनों ने इस बंद की घोषणा की है, जिसे उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) का भी समर्थन मिल चुका है. इसके साथ ही, नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) ने भी इस बंद का समर्थन करते हुए भाग लेने की घोषणा की है.

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यह भारत बंद उत्तर प्रदेश सहित देश के कई हिस्सों में असर डाल सकता है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ ये संगठन अपनी नाराजगी जाहिर करना चाहते हैं, जिससे इस आंदोलन में तेजी आ सकती है. बंद के दौरान कई प्रमुख शहरों में ट्रैफिक, परिवहन, और सरकारी सेवाओं में रुकावटें हो सकती हैं. लोगों को इन परिस्थितियों से निपटने के लिए सावधान रहना चाहिए.

 

 

भारत बंद के दौरान परेशानी से बचने के सुझाव:

  • सुरक्षित रहें: भारत बंद के दौरान अपने घरों से बाहर निकलने से बचें. यदि आवश्यक हो, तो यात्रा को सुबह या शाम के समय करें, जब बंद का प्रभाव कम हो सकता है.
  • सभी आवश्यक वस्तुएं जुटा लें: खाने-पीने की वस्तुएं, दवाइयां और अन्य जरूरी चीजें पहले से ही इकट्ठा कर लें ताकि आपको बाहर न जाना पड़े.
  • सभी अद्यतन जानकारी प्राप्त करें: स्थानीय समाचार और प्रशासनिक अपडेट पर ध्यान दें, जिससे आप बंद के दौरान किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार रह सकें.
  • सुरक्षा उपाय अपनाएं: अगर बंद के दौरान बाहर निकलना जरूरी हो, तो अपने वाहन की सुरक्षा पर ध्यान दें और पार्किंग स्थानों को सुरक्षित रखें.

SC/ST आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या है?

सुप्रीम कोर्ट ने एक अप्रैल को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सात जजों की संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से यह फैसला दिया है कि राज्य सरकारों को SC/ST के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है. ऐसा इसलिए ताकि इसमें उन जातियों को आरक्षण का लाभ दिया जा सके, जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से ज्यादा पिछड़ी हैं. 

 

 

सुप्रीम कोर्ट ने ‘ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार’ मामले में अपने 2004 के फैसले को ही पलट दिया. तब पांच जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था कि अनुसूचित जातियों (एससी) के किसी उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि वे अपने आप में स्वजातीय समूह हैं. 

इस 140 पेज के जजमेंट में कहा गया है कि राज्य संविधान के अनुच्छेद 15 (धर्म, जाति, नस्ल, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव न करना) और अनुच्छेद 16 (अवसर की समानता) के तहत अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर सकता है. इसके तहत राज्य सामाजिक पिछड़ेपन की विभिन्न श्रेणियों की पहचान करने और नुकसान की स्थिति में विशेष प्रावधान (जैसे आरक्षण देने) के लिए स्वतंत्र है. हालांकि इस फैसले में चीफ जस्टिस ने यह भी कहा है कि किसी विशेष जाति को श्रेणी में अधिक आरक्षण लाभ देने के लिए अनुसूचित जाति (एससी) को उप-वर्गीकृत करने के किसी भी निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है. 

सीधे शब्दों में कहें तो SC/ST आरक्षण में कोटा के भीतर कोटा का रास्ता साफ

अब इस फैसले के बाद राज्य सरकारों के पास ताकत है कि वह अनुसूचित जाति और जनजातियों के आरक्षण में सब-क्लासिफेकशन कर सकते हैं. अनुसूचित जातियों को 15 फीसदी और अनुसूचित जनजातियों को 7.5 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है. पर अब राज्य चाहें, तो उदाहरण के लिए अनुसूचित जाति में आने वाली किसी विशेष जाति या कुछ जातियों के लिए इसी 15 फीसदी में अलग से आरक्षण की व्यवस्था कर सकते हैं. 

 

 

फिलहास इसी सब-क्लासिफिकेशन का हो रहा विरोध

अब कई दलित-आदिवासी संगठन, इस समाज के लिए काम कराने वाले अकादमिक जगत के लोग और बसपा जैसी पार्टियां इस फैसले के खिलाफ हैं. उनका तर्क है कि अनुसूचित जाति और जनजाति को यह आरक्षण उनकी तरक्की के लिए नहीं बल्कि सामाजिक रूप से उनके साथ हुई प्रताड़ना से न्याय दिलाने के लिए है. तर्क यह भी अस्पृश्यता यानी छुआछूत के भेद का शिकार हुईं इन जातियों को एक समूह ही माना जाना चाहिए. वे इसे आरक्षण खत्म करने की साजिश बता रही हैं. और अब इसी के खिलाफ 21 अगस्त को भारत बंद होने जा रहा है. 

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