उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने राज्य में जाति आधारित जनगणना कराने पर शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) का रूख जानना चाहा. नोएडा दौरे पर आए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस मुद्दे के बारे में बातचीत की.
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बता दें कि एक दिन पहले ही उनकी समाजवादी पार्टी ने बिहार की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में जाति आधारित जनगणना कराने की अपनी मांग उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा खारिज किये जाने पर विधानसभा की कार्यवाही में बाधा डाली थी. उस समय योगी आदित्यनाथ सरकार ने कहा था कि जाति आधारित जनगणना कराना केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आता है.
अखिलेश ने पीएम-सीएम से पूछा सवाल
इस पर अब सपा मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेय़ यादव ने कहा, ‘‘भारतीय जनता पार्टी बहुत स्मार्ट पार्टी है. भाजपा अपने उन नेताओं को आगे कर कर रही है, जिन्हें उसने कुछ नहीं दिया. जाति आधारित जनगणना पर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का क्या जवाब है. यह ऐसा प्रश्न नहीं है जिसका जवाब छोटे नेता दे सकते हैं. यह नीतिगत विषय है.’’
‘पूर्व में कांग्रेस से किया था संपर्क’
इस दौरान अखिलेश यादव ने कहा कि जब केंद्र में कांग्रेस नीत यूपीए सरकार थी तब मुलायम सिंह यादव, शरद यादव, लालू प्रसाद यादव जैसे नेताओं समेत दक्षिण के कई नेताओं ने जाति आधारित जनगणना के विषय पर कांग्रेस से संपर्क किया था. लेकिन पहले कांग्रेस ने इस मांग को मानने से इंकार कर दिया था, लेकिन बाद में वह भी इस मांग के लिए राजी हो गई थी. मगर कांग्रेस ने आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया.
इस दौरान सपा प्रमुख ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार जनता का ध्यान बुनियादी मुद्दों से भटकाने की लगातार कोशिश कर रही है, लेकिन हमें उनके बहकावे में नहीं आना है. वर्तमान शासन काल में महंगाई चरम पर है. बेरोजगारी की दर बढ़ती जा रही है. भ्रष्टाचार बेलगाम है. किसान, नौजवान सहित समाज का हर वर्ग परेशान है.
‘सपा सरकार बनी तो 3 महीने में होगी जाति जनगणना’
इस मौके पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश ने कहा, ‘‘जब बिहार में जाति आधारित जनगणना हो सकती है तो उत्तर प्रदेश में क्यों नहीं हो सकती. यदि सपा की सरकार बनी तो तीन महीने के अंदर जातीय जनगणना कराएंगे.’’
उन्होंने आगे कहा कि भले ही भाजपा ने दुबारा सरकार बना ली, पर न तो उसकी राजनीतिक विश्वसनीयता रह गई है और न ही वित्तीय विश्वसनीयता रह गई है, क्योंकि सरकार वादे पूरे नहीं कर पा रही है.
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