विधान परिषद-विधानसभा में हुई भर्तियों की जांच CBI ही करेगी, HC ने खारिज की रिव्यू पिटीशन

संतोष शर्मा

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इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने विधान परिषद और विधानसभा में हुई भर्तियों की सीबीआई जांच को लेकर विधान परिषद की तरफ से दाखिल की गई रिव्यू पिटीशन को खारिज कर दिया है.

हाई कोर्ट में जस्टिस एआर मसूदी और जस्टिस ओपी शुक्ला की डबल बेंच ने सीबीआई जांच के आदेश को बरकरार रखते हुए रिव्यू पिटीशन खारिज की है.

हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के आदेश पर 29 सितंबर को यूपी विधानसभा और विधान परिषद सचिवालय में हुई भर्तियों की सीबीआई जांच शुरू कर दी गई थी, लेकिन विधान परिषद की तरफ से सीबीआई जांच के आदेश को लेकर रिव्यू पिटीशन दाखिल की गई, जिसे हाई कोर्ट के डबल बेंच में जस्टिस ए आर मसूदी और ओपी शुक्ला की डबल बेंच ने खारिज कर दिया है. माना जा रहा है कि सीबीआई की एंटी करप्शन ब्रांच जल्द विधानसभा और विधान परिषद के सचिवालय में हुई भर्ती को लेकर दस्तावेज जुटाने के लिए पूछताछ का दौर शुरू करेगी.

क्या था पूरा मामला?

दरअसल, हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच मे एक याचिका दाखिल की गई, जिसमें मांग की गई है कि विधानसभा और विधान परिषद में तृतीय श्रेणी के पदों के लिए भर्ती उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के जरिए ही कराई जाए. याचिका में मांग की गई की विधान परिषद सचिवालय में समीक्षा अधिकारी, सहायक समीक्षा अधिकारी और अपर निजी सचिव सहित 11 कैडर के लिए 99 पदों पर 17 जुलाई 2020 और 27 सितंबर 2020 के विज्ञापनों के बाद भर्ती की गई उनको निरस्त किया जाए.

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आरोप लगाया गया कि भर्ती प्रक्रिया में नियमों का पालन नहीं किया गया. अफसर और नेताओं की मिली भगत से उनके ही परिवार वालों को नौकरी दी गई. परीक्षा वाले दिन गोरखपुर में पेपर लीक हुआ.

7 दिसंबर 2020 को विधानसभा सचिवालय में सहायक समीक्षा अधिकारी के 13 और समीक्षा अधिकारी के 53 पदों समेत कुल 87 पदों के लिए विज्ञापन निकालने के बाद भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई.

इस साल विधान परिषद में 73 पदों की भर्ती के लिए विज्ञापन निकाले गए, जिसमें ARO के पद की भर्ती का जिक्र नहीं था. संशोधन के बाद एआरओ के 23 पदों के लिए भी विज्ञापन मांगे गए थे. इस तरह विधान परिषद के लिए 96 पदों की भर्ती निकाली गई.

इस भर्ती प्रक्रिया में आरोप लगाया गया कि अभ्यर्थियों ने लिखित परीक्षा में ओएमआर सीट खाली छोड़ दी थी, वह भी पास कर दिए गए. भर्तियों में भाई भतीजावाद और सचिवालय के अफसर और परीक्षा कराने वाली संस्था की मिली भगत से खास लोगों पर नियुक्ति का आरोप लगा है. इसी गड़बड़ी को लेकर हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे, लेकिन विधान परिषद की तरफ से इस मामले में रिव्यू पिटीशन दाखिल की गई, जिसे हाई कोर्ट ने अब खारिज कर दिया है.

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