बाबरी विध्वंस केस: CBI अदालत के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई 31 अक्टूबर तक टली

भाषा

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इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ पीठ ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले (Babri Masjid demolition case) में पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह समेत सभी 32 अभियुक्तों को बरी किए जाने के विशेष सीबीआई अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई 31 अक्टूबर तक टाल दी है.

न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल की पीठ ने मामले के याची के अधिवक्ता ने इस याचिका की पोषणीयता के खिलाफ की गई पिछली सुनवाई पर सीबीआई द्वारा दाखिल प्रारंभिक आपत्ति पर अपना जवाब देने के लिए और समय मांगा. इस पर पीठ ने मामले की सुनवाई आगामी 31 अक्टूबर तक के लिए टाल दी.

इस मामले में अयोध्या के दो निवासियों हाजी महमूद अहमद और सैयद अखलाक अहमद ने याचिका दाखिल कर 30 सितंबर 2020 को लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत द्वारा छह दिसंबर 1992 को हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में वरिष्ठ भाजपा नेताओं-लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह समेत सभी 32 अभियुक्तों को बरी किए जाने के फैसले को चुनौती दी है.

हाजी महमूद अहमद और अखलाक अहमद ने याचिका में कहा है कि वे बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में आरोपियों के खिलाफ गवाह होने के साथ-साथ उस घटना के पीड़ित भी थे.

सीबीआई ने इस पर आपत्ति करते हुए कहा था कि दोनों याचिकाकर्ता बाबरी विध्वंस मामले में शिकायतकर्ता या पीड़ित नहीं थे, इसलिए वे सीबीआई अदालत के फैसले के खिलाफ अपील नहीं कर सकते.

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