मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह: यूपी के दो माफिया डॉन की कहानी जिनसे अपराध भी थर्राता था
Uttar Pradesh News: उत्तर प्रदेश के माफिया डॉन मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) को गैंगस्टर केस में गाजीपुर एमपी-एमएलए कोर्ट ने दोषी करार दिया है. इसको…
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Uttar Pradesh News: उत्तर प्रदेश के माफिया डॉन मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) को गैंगस्टर केस में गाजीपुर एमपी-एमएलए कोर्ट ने दोषी करार दिया है. इसको लेकर कोर्ट ने 10 साल की सजा के साथ ही 5 लाख का जुर्माना भी लगाया है. मुख्तार अंसारी पर गैंग्स्टर एक्ट के तहत दर्ज मामले में फैसला सुनाया गया है. करीब 16 साल बाद इस मामले में फैसला आया है. बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या मामले में मुख्तार अंसारी और उसके भाई अफजाल अंसारी पर गैंगस्टर एक्ट लगा था. वहीं इस मामले में सजा मिलने के साथ ही एक समय पूर्वांचल में दो बड़े माफिया डॉन मुख्तार और बृजेश सिंह की दुश्मनी की कहानी फिर से ताजा हो गई.
बॉलीवुड की फिल्मों में कैसे 12वीं की परीक्षा पास कर कॉलेज में अपने सपनों को पूरा करने के लिए जाने वाला नौजवान गैंगस्टर बनता है, ठीक ऐसी ही कहानी है अरुण सिंह उर्फ बृजेश सिंह (Brijesh Singh) की. बनारस के धौरहरा गांव के संभ्रांत किसान व स्थानीय नेता रविंद्र नाथ सिंह के बेटे अरुण सिंह ने 12वीं की परीक्षा पास की, तो वह भी अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए आगे की पढ़ाई करने लगा. उसने बीएससी में एडमिशन ले लिया. रविंद्र नाथ सिंह हर पिता की तरह चाहते थे कि उनका बेटा भी अफसर बने, परिवार और गांव का नाम रोशन करे.
वो तारीख जिसने बृजेश सिंह की जिंदगी बदल दी
27 अगस्त 1984 की तारीख ने अरुण सिंह की जिंदगी बदल दी. पिता रविंद्र नाथ सिंह की गांव के ही दबंगों ने बेरहमी से हत्या कर दी. पिता की हत्या से अरुण सिंह बौखला गया और उसने अपनी जिंदगी का रुख ही बदल दिया. उसने पिता की हत्या का बदला लेने की कसम खाई और 1 साल के अंदर ही 27 मई 1985 को पिता की हत्या के मुख्य आरोपी हरिहर सिंह की हत्या का आरोप लगा. अरुण सिंह अब बृजेश सिंह बनने की राह पर निकल चुका था और उसके ऊपर हत्या का पहला मुकदमा दर्ज हुआ था. बृजेश सिंह अभी पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा क्योंकि पिता के बाकी हत्यारों से बदला लेना बाकी था.
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जब मुख्तार अंसारी से शुरू हुई अदावत
बृजेश और त्रिभुवन की कहानी कुछ एक जैसी थी, तो दोनों में दोस्ती भी हो गई. जेल में रहकर बृजेश सिंह को समझ में आ गया था कि जरायम की दुनिया ही अब उसका सब कुछ है. यहीं उसे ताकत हासिल करनी है और पैसा कमाना है. यहां से बृजेश और त्रिभुवन सिंह ने स्क्रैप और बालू की ठेकेदारी करने वाले साहिब सिंह का साथ पकड़ा. दोनों साहिब सिंह के लिए काम करने लगे. साहिब सिंह को सरकारी ठेके दिलवाने ल. यहीं बृजेश सिंह का टकराव पूर्वांचल के दूसरे माफिया डॉन मुख्तार अंसारी से शुरू हुआ. दरअसल मुख्तार अंसारी साहिब सिंह के विरोधी मकनू सिंह के लिए काम कर रहा था.
सरकारी ठेकों में वर्चस्व को लेकर मकनू सिंह और साहिब सिंह तक चली आदावत बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी के बीच भी शुरू हो गई. हालात ऐसे बिगड़े कि मुख्तार और बृजेश ने अपने सरपरस्तों से खुद को अलग कर अपना दबदबा कायम करना शुरू किया. मुगलसराय की कोयला मंडी, आजमगढ़, बलिया, भदोही, बनारस से लेकर झारखंड तक शराब की तस्करी, स्क्रैप का कारोबार, रेलवे के ठेके बालू के पट्टे को लेकर बृजेश और मुख्तार अंसारी के बीच गोलियां चलने लगीं.
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जब किसी तरह बची मुख्तार की जान
कहते हैं कि मुंबई के सिलसिलेवार बम धमाकों ने बृजेश सिंह और दाऊद इब्राहिम के रास्ते अलग कर दिए. इस बीच उत्तर प्रदेश में विरोधी मुख्तार अंसारी का कद भी लगातार बढ़ता जा रहा था. मुख्तार अंसारी ने राजनीति का रास्ता अपनाकर अपने वजूद को बड़ा कर लिया और बृजेश सिंह पर कानूनी शिकंजा कसा जाने लगा. जुलाई 2001 में मऊ से विधायक हो चुके मुख्तार अंसारी पर गाजीपुर के मोहम्मदाबाद के उसरी चट्टी इलाके में हमला बोला गया. इसमें मुख्तार अंसारी और उसका गनर घायल हुए और बाद में गनर की मौत हो गई. इस हमले के पीछे भी बृजेश सिंह का हाथ बताया गया.
नवंबर 2005 में बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या ने मुख्तार अंसारी के वजूद को प्रदेश में सबसे बड़ा कर दिया और बृजेश सिंह को अंडर ग्राउंड होना पड़ा. बृजेश सिंह पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने 5 लाख का इनाम रख दिया. साल 2008 में दिल्ली स्पेशल सेल ने बृजेश सिंह को उड़ीसा के भुवनेश्वर से गिरफ्तार कर लिया. यूपी छोड़ने के बाद बृजेश सिंह उड़ीसा में एक कारोबारी के तौर पर रहने लगा था. बृजेश सिंह की गिरफ्तारी के बाद उनके परिवार ने भी राजनीतिक वजूद को बढ़ाना शुरू किया. उनके बड़े भाई उदयनाथ सिंह दो बार एनएलसी रहे, पत्नी अन्नपूर्णा सिंह को एमएलसी बनाया. खुद बृजेश सिंह भी एक बार बीजेपी से एमएलसी बने और अभी हाल ही में उनकी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह फिर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर एमएलसी बनी हैं.
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(संतोष शर्मा के इनपुट के साथ)
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