कौन हैं लखनऊ की डॉ. ऋतु करिधाल? जिनके कंधों पर थी चंद्रयान-3 की लैंडिंग की जिम्मेदारी

आशुतोष मिश्रा

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के ऐतिहासिक तीसरे चंद्र मिशन के तहत चंद्रयान के चंद्रमा की सतह पर उतरते ही भारत ने इतिहास रच दिया. चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के लिए भी खास है, क्योंकि भारत की ‘रॉकेट वूमन‘ के नाम से मशहूर लखनऊ की बेटी डॉ. ऋतु करिधाल के कंधों पर इसकी सफल लैंडिंग की जिम्मेदारी थी. डॉ. ऋतु करिधाल के इशारे पर चंद्रयान-3 श्रीहरिकोटा से अंतरिक्ष के लिए रवाना हुआ था.

भारत के लिए आज का दिन बेहद खास रहा, जहां चंद्रयान-3 का लैंडर मॉड्यूल (एलएम) बुधवार शाम चंद्रमा की सतह पर उतर गया. ऐसा होने पर भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया. सिर्फ भारतवर्ष ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया इस ऐतिहासिक पल का टकटकी लगाए इंतजार कर रही थी. लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) से युक्त लैंडर मॉड्यूल शाम छह बजकर चार मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर सॉफ्ट लैंडिंग किया.

चंद्रयान-2 सात सितंबर 2019 को चंद्रमा पर उतरने की प्रक्रिया के दौरान फेल हो गया था, जब उसका लैंडर ‘विक्रम’ तकनीकि गड़बड़ी की वजह से चंद्रमा की सतह से टकरा गया था. भारत के पहले चंद्र मिशन चंद्रयान-1 को 2008 में प्रक्षेपित किया गया था. भारत ने 14 जुलाई को लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (एलवीएम3) रॉकेट के जरिए 600 करोड़ रुपये की लागत वाले अपने तीसरे चंद्र मिशन चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण किया था. इसके तहत चंद्रयान 41 दिन की अपनी यात्रा में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा. यहां अभी तक कोई भी देश नहीं पहुंच पाए हैं.

14 जुलाई को प्रक्षेपण के बाद चंद्रयान-3 ने पांच अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया था. 17 अगस्त को इसके दोनों मॉड्यूल अलग हो गए थे. इससे पहले 6, 9, 14 और 16 अगस्त को मिशन को चंद्रमा के और नजदीक लाने की कवायद की गई थी.

इसरो ने जानकारी दी है कि चंद्रयान-3 की लैंडिंग की जिम्मेदारी इस बार वरिष्ठ महिला वैज्ञानिक डॉ. रितु को सौंपी गई है और वह चंद्रयान-3 की मिशन डायरेक्टर हैं. अभियान के प्रोजेक्ट डायरेक्टर पी. वीरा मुथुवेल हैं. इसके पहले डॉ. रितु मंगलयान की डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर और चंद्रयान-2 में मिशन डायरेक्टर रह चुकी हैं. इस बार चंद्रयान-3 में ऑर्बिटर नहीं, बल्कि एक प्रोपल्शन मॉड्यूल है, जो किसी संचार उपग्रह की तरह काम करेगा.

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बचपन से थी चांद-सितारों में दिलचस्पी

डॉ. ऋतु करिधाल का जन्म 1975 में लखनऊ के मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था. बचपन से उन्हें चांद-सितारों और आसमान में दिलचस्पी थी. इसरो और नासा से संबंधित समाचार पत्रों के लेख, जानकारी और तस्वीरें इकट्ठा करना उनका शौक था. उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से भौतिकी में बीएससी और एमएससी की पढ़ाई की. फिर एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री लेने के लिए आईआईएससी, बंगलूरू में दाखिला लिया. डॉ. करिधाल ने नवंबर 1997 से इंजीनियर के तौर पर इसरो में काम करना शुरू किया.

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