क्या आजकल इस बड़े नेता को पढ़ रहे हैं अखिलेश यादव? ये बात यूं ही नहीं कही गई, देखिए
Uttar Pradesh News : अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. मकर…
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Uttar Pradesh News : अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. मकर संक्रांति के दिन से ही राम की नगरी में रामोत्सव शुरू हो जाएगा. फिलहाल देश में प्राण-प्रतिष्ठा समारोह और उसके बाद लोकसभा चुनाव को लेकर काफी चर्चाएं हैं. उत्तर प्रदेश में राम मंदिर को राजनीतिक दलों के बीच सियासत की पिच तैयार की जाने लगी है. समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जा रहे हैं. इसी बीच सपा मुखिया ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट से कुछ ऐसे कोट पोस्ट किए हैं, जिसमें धर्म को लेकर काफी बातें कहीं गईं हैं.
अखिलेश ने कही ये बात
अखिलेश यादव ने गुरुवार को अपने अपने सोशल मीडिया एकाउंट X से समाजवाद को एक नई परिभाषा देने वाले राम मनोहर लोहिया की बातों को पोस्ट की हैं. अखिलेश ने पोस्ट किया कि, ‘भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाई हिन्दू धर्म में उदारवाद और कट्टरता की लड़ाई, पिछले पाँच हजार सालों से भी अधिक समय से चल रही है और उसका अन्त अभी भी दिखाई नहीं पड़ता. इस बात की कोई कोशिश नहीं की गई. जो होनी चाहिये थी, कि इस लड़ाई को नजर में रखकर हिन्दुस्तान के इतिहास को देखा जाए. लेकिन देश में जो कुछ होता है, उसका बहुत बड़ा हिस्सा इसी के कारण होता है.’
सपा मुखिया ने आगे लिखा कि, ‘सभी धर्मों में किसी न किसी समय उदार वादियों और कट्टर पंथियों की लड़ाई हुई है. लेकिन हिन्दू धर्म के अलावा वे बँट गये, अक्सर उनमें रक्तपात हुआ और थोड़े या बहुत दिनों की लड़ाई के बाद, वे झगड़े पर काबू पाने में कामयाब हो गये. हिन्दू धर्म में लगातार उदार वादियों और कट्टर पंथियों का झगड़ा चला आ रहा है. जिसमें कभी एक की जीत होती है कभी दूसरे की और खुला रक्तपात तो कभी नहीं हुआ. लेकिन झगड़ा आजतक हल नहीं हुआ और झगड़े के सवालों पर एक धुन्ध छा गया है.’
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कौन थे राम मनोहर लोहिया
1910 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में जन्मे राम मनोहर लोहिया को अपने विचारों को मुखर रुप से रखने के लिए जाना जाता है. भारतीय राजनीति में गैर कांग्रेसवाद के शिल्पी राममनोहर लोहिया, महात्मा गांधी से प्रेरित थे. उन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम में सक्रीय भूमिका निभाई. वो चाहते थे कि दुनियाभर के समाजवादी लोग एकजुट होकर एक मजबूत मंच बनायें. डॉ. राममनोहर लोहिया ने कई विषयों पर अपने विचारों को लिखा और उन्हें किताबों के रूप में प्रकाशित किया. जीवन के अंतिम वर्षों में वह राजनीति के अलावा साहित्य से लेकर राजनीति एवं कला पर युवाओं से संवाद करते रहे.
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