कांग्रेस से दूरी, केसीआर के साथ सपा प्रमुख अखिलेश यादव, थर्ड फ्रंट की सुगबुगाहट?

समर्थ श्रीवास्तव

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यूपी में कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और उसके समापन कार्यक्रम में निमंत्रण के बाद भी उससे दूरी बनाकर रखने वाले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अब तेलंगाना में होने वाली केसीआर की विशाल रैली में शामिल हो रहे हैं. इसके बाद से कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं और थर्ड फ्रंट की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है.

वहीं, सवाल भी उठ रहे हैं कि अगर कांग्रेस से विचारधारा का मतभेद तो नीतीश कुमार से दूरी क्यों? यूपी के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी अब लोकसभा चुनाव को देखते हुए अखिलेश यादव अपना कद मजबूत कर रहे हैं. वह केसीआर की रैली में जाएंगे लेकिन ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और ‘हरियाणा विपक्षी एकता रैली’ से दूरी बनाए हुए हैं तो वहीं नीतीश के साथ कच्चा पक्का रिश्ता दिख रहा है.

अखिलेश से जब इस बात को लेकर सवाल किया जाता है तो वह खुद कहते हैं कि लोकसभा के लिए एक फ्रंट बनने की आवश्यकता है जिसे लेकर ममता बनर्जी, नीतीश कुमार और केसीआर जैसे नेता प्रयास कर रहे हैं. मगर केसीआर के साथ जाना और राहुल की भारत जोड़ो यात्रा से दूरी और नीतीश के साथ कच्चा-पक्का इस फ्रंट को घेरे में डाल रहा है.

आइए जानते हैं कि आखिर अखिलेश के लिए केसीआर ही क्यों जरूरी?

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समाजवादी पार्टी के सूत्रों के मुताबिक देश में थर्ड फ्रंट तैयार हो रहा है. साउथ में कांग्रेस कमजोर है और बीजेपी का जनाधार नहीं है. समाजवादी पार्टी साउथ में भी धीरे-धीरे विस्तार कर रही है, वहां पर एक स्पेस है. सपा विचारधारा दक्षिण से निकली है, गोवा ही वह पहला राज्य था जहां पहली सपा सरकार (सोशलिस्ट पार्टी) बनी थी. गोवा को पुर्तगालियों से राम मनोहर लोहिया ने आजाद करवाया था, गोवा की आजादी की लड़ाई लोहिया ने लड़ी थी. समाजवादी पार्टी की शुरुआत भी दक्षिण से ही हुई.

सपा सूत्रों के मुताबिक, महाराष्ट्र एक समय पर सपा के आंदोलन का केंद्र रहा, जॉर्ज फर्नांडिस ने इस आंदोलन को लीड किया था वह सपा नेता थे. जिस तरह देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने और मुलायम सिंह रक्षा मंत्री बने तब कांग्रेस ने समर्थन दिया था और तभी थर्ड फ्रंट की सरकार बनी थी. सपा के कुछ नेता यह मानते हैं कि देश में अभी जो माहौल है वह एंटी बीजेपी और एंटी कांग्रेस है. बीजेपी की सरकार को हटाने के लिए जो लोग ठीक समझेंगे वह थर्ड फ्रंट के साथ आगे आएंगे. फिर चाहे अंदर से आए या बाहर से, लेकिन 2024 में सरकार बीजेपी को हटाकर जो भी सरकार बनाएगा वह सभी दलों की साझा सरकार बनेगी. उसमें राहुल गांधी नीतीश कुमार केजरीवाल ममता बनर्जी भी हो सकते हैं. प्रधानमंत्री कौन बनेगा यह तय नहीं है.

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सपा सूत्रों के अनुसार चूंकि उत्तर प्रदेश बड़ा राज्य है लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं, इसलिए अखिलेश यादव को और सपा को मुख्य विपक्षी दल के तौर पर सभी देख रहे हैं और यह जानना चाहते हैं कि अखिलेश का रुख क्या होगा. कभी कांग्रेस और बीजेपी की नजर केंद्र में सरकार बनाने से पहले मुलायम सिंह पर होती थी, उनका क्या रुख होगा. यह देश जानना चाहता था, अब वही निगाह अखिलेश पर होगी. अन्य दल यह जानना चाहते हैं कि अखिलेश का अगला कदम क्या होगा.

तो नीतीश से दूरी क्यों? सपा के मुताबिक, नीतीश कुमार से अखिलेश की कोई दूरी नहीं है. अगर दूरी होती तो अखिलेश अपना प्रतिनिधमंडल और धर्मेंद्र यादव को न भेजते. वह खुद की व्यस्तता के कारण वहां नहीं पहुंच पाए. हालांकि, मुलायम सिंह के निधन पर नीतीश अखिलेश से मिलने सैफई पहुंचे थे और वह इसी बीच यह बयान भी दे चुके हैं कि अखिलेश को आने वाले वक्त में यूपी का सीएम बनना है, तो उन दोनों का साथ जाना लाजमी है.

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भारत जोड़ो यात्रा से केवल भावनात्मक जुड़ाव!

अखिलेश यादव से जब भी भारत जोड़ो यात्रा में निमंत्रण के बाद भी शामिल ना होने पर सवाल होता है तो वह यही कहते हैं कि वह भावनात्मक तौर पर इस यात्रा से जुड़े हैं लेकिन उनके दल की और कांग्रेस की विचारधारा अलग है. कांग्रेस और बीजेपी दोनो एक हैं.

यह बात साफ है कि अखिलेश यादव आने वाले वक्त में थर्ड फ्रंट बनाने के मूड में हैं. अब देखना यह है कि क्या यह फ्रंट बिना कांग्रेस के बनता है या चुनाव नजदीक आते समीकरण एक बार फिर बदलते दिखते हैं.

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