अखिलेश और नीतीश की मुलाकात के मायने, क्या 2024 में महागठबंधन का रास्ता भी UP से गुजरेगा?

कुमार अभिषेक

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बीजेपी को छोड़कर निकले नीतीश कुमार इन दिनों मिशन 2024 पर है. जिसमें वह बीजेपी विरोधी सभी दलों को एकजुट करने में लगे हैं और इसी एकजुटता को बनाने में उन्होंने अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से मुलाकात की. हालांकि दोनों ने इस मुलाकात को एक शिष्टाचार मुलाकात बताया जो गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में हुई, जहां मुलायम सिंह यादव भर्ती हैं. वहीं अखिलेश यादव से मुलाकात सिर्फ शिष्टाचार की मुलाकात नहीं रही बल्कि उससे कहीं आगे की यह मुलाकात पूरी तरह सियासी थी.

मेदांता अस्पताल के एक अलग कमरे में एक घंटे की इस मुलाकात के बाद जब दोनों बाहर निकले तो नीतीश कुमार ऐलान किया कि अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में, देश में बनने वाले महागठबंधन को भी लीड करेंगे. वहीं अखिलेश यादव का कोई रिएक्शन नीतीश कुमार के बयान के बाद नहीं आया, लेकिन इसके कई मायने निकाले जा रहे हैं.

वैसे भी अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे और विपक्ष के सबसे दमदार नेता हैं, लेकिन नीतीश कुमार ने अपनी तरफ से यह बात कह कर फिलहाल बसपा (BSP) के रास्ते को बंद कर दिया है.

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नीतीश कुमार के करीबी और दिल्ली में राजनैतिक संपर्क में अग्रणी भूमिका निभा रहे केसी त्यागी कहते हैं कि नीतीश कुमार की राजनीति में यानि “politics of opposition unity” में पॉलीटिकल अनटचेबिलिटी नहीं यानी सबके लिए इस विपक्षी एकता में जगह है और बीजेपी के खिलाफ कोई भी दल या व्यक्ति है वह आ सकता है.

फिलहाल नीतीश कुमार के उस बयान के बाद जिसने अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश में गठबंधन का नेता कहा है उसके बाद बसपा की प्रतिक्रिया आने का भी इंतजार है. हालांकि अभी तक विपक्ष के बनने वाले इस गठबंधन को लेकर मायावती ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं.

माना जा रहा है नीतीश कुमार की पॉलिटिक्स ऑफ अपोजिशन यूनिटी में सभी के लिए जगह है, लेकिन फिलहाल मायावती की तरफ माना जा रहा है कि अखिलेश यादव को प्रदेश के महागठबंधन का नेता बनाए जाने के बाद अब मायावती का रास्ता बंद है.

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उत्तर प्रदेश में विपक्ष के दूसरे बड़े खिलाड़ी हैं जयंत चौधरी. नीतीश कुमार की बात जयंत चौधरी से फोन पर हो चुकी है और उम्मीद है कि दोनों की मुलाकात भी जल्द होगी, लेकिन विपक्ष की इस एकता में दरार दिखने लगी है. इंडियन नेशनल लोक दल यानी ओम प्रकाश चौटाला ने 25 सितंबर को चौधरी देवीलाल की जयंती पर विपक्षी एकता को प्रदर्शित करने के लिए एक बड़ी रैली रखी है.

हरियाणा के फतेहाबाद में यह रैली रखी गई है, लेकिन इसमें जयंत चौधरी को न्योता नहीं दिया गया है. जबकि नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, प्रकाश सिंह बादल सरीखे सभी नेताओं को बुलाया गया और इसकी वजह यह है कि ओमप्रकाश चौटाला और जयंत चौधरी दोनों जाट नेता हैं. दोनों की अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं. ऐसे में विपक्षी एकता बनने के पहले ही बिखरती भी दिख रही है. खासकर उत्तर प्रदेश के लिहाज से.

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दरअसल समाजवादी पार्टी 2024 के चुनाव में खुद को प्रधानमंत्री की रेस में खुले तौर पर नहीं मानती, जबकि अखिलेश यादव के करीबी नेता उदयवीर सिंह कहते हैं कि नीतीश कुमार अगर प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बनते हैं तो उन्हें कोई एतराज नहीं होगा. हालांकि विपक्षी खेमे में कई बड़े ऐसे नेता हैं जो प्रधानमंत्री बनने की काबिलियत रखते हैं.

दरअसल उत्तर प्रदेश में कुर्मी और कोइरी जातियों की तादाद काफी ज्यादा है. चाहे अनुप्रिया पटेल हों या पल्लवी पटेल दोनों ने अपनी जगह कुर्मी वोटों के आधार पर ही उत्तर प्रदेश की सियासत में बनाई है. ऐसे में नीतीश कुमार को उत्तर प्रदेश में अपने लिए उम्मीद की किरण नजर आती है.

अगर उनके नाम का ऐलान हो जाए तो एक बड़ा मतदाता वर्ग विपक्षी एकता के साथ खड़ा हो सकता है, जो फिलहाल बीजेपी का वोटर है. ऐसे में अखिलेश यादव के साथ पल्लवी पटेल और स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे दो चेहरे जिनके दम पर समाजवादी पार्टी गठबंधन गैर यादव ओबीसी में अपनी राजनीति साध रहा है और अगर नीतीश कुमार आगे आते हैं तो यूपी में पिछड़ों की राजनीति में एक नई सुगबुगाहट की शुरूआत हो सकती है.

अब देखना ये है कि क्या अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश में विपक्षी गठबंधन लीड करने के ऐलान के एवज में क्या नीतीश कुमार ने खुद के प्रधानमंत्री बनने के बारे में कोई आश्वासन मांगा है, इसपर भी नजरें बनी रहेंगी.

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