सेना से चुराई लाइट मशीन गन को मुख्तार अंसारी क्यों चाहता था खरीदना? UP STF के पूर्व DSP ने बताई पूरी कहानी
उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी को कृष्णानंद हत्याकांड से जुड़े गैंगस्टर मामले में 10 साल की सजा हुई है. मगर मुख्तार अंसारी की…
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उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी को कृष्णानंद हत्याकांड से जुड़े गैंगस्टर मामले में 10 साल की सजा हुई है. मगर मुख्तार अंसारी की वजह से अपनी नौकरी गंवाने वाले यूपी एसटीएफ के पूर्व डीएसपी शैलेंद्र सिंह चाहते हैं कि उस मामले को दोबारा खोला जाए जिसमें उन्होंने मुख्तार के खिलाफ पोटा कानून लगाया था. दरअसल, शैलेंद्र सिंह का दावा है कि सेना से चुराई लाइट मशीन गन को मुख्तार अंसारी खरीदना चाहता था.
विस्तार से जानिए पूरा मामला
साल 2005 में नवंबर महीने में कृष्णानंद राय की हत्या से पहले मुख्तार अंसारी पर सेना के एक लाइट मशीन गन को खरीदने का आरोप लगा था. आरोप है कि मुख्तार अंसारी ने साल 2004 के जनवरी महीने में ही कृष्णानंद राय को मारने के लिए सेना के एक लाइट मशीन गन को खरीदने की योजना बनाई थी. इसके लिए उसने 2004 में आर्मी के एक भगोड़े से चुराई गई लाइट मशीन गन खरीदने की डील की थी.
एसटीएफ के तत्कालीन डीएसपी शैलेंद्र सिंह, जो सीओ के तौर पर वाराणसी में तैनात थे. उन्हें मुख्तार अंसारी और कृष्णानंद राय के गैंगवार पर नजर रखने के लिए तैनात किया गया था. इसी तैनाती के दौरान शैलेंद्र सिंह ने जब मुख्तार के फोन को टेप करना शुरू किया तो एक खतरनाक कहानी सामने आई. शैलेंद्र सिंह का दावा है कि उन्होंने वह ऑडियो रिकॉर्ड किया जिसमें मुख्तार अंसारी सेना के एक भगोड़े से लाइट मशीन गन खरीदने का डील कर रहा था.
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एसटीएफ तब मुख्तार अंसारी के फोन को रिकॉर्ड कर रही थी. मुख्तार और सेना के इस भगोड़े की बातचीत का टेप आज भी अदालत की कार्यवाही में मौजूद है. यह टेप अपने आप में इतना विस्फोटक था कि उस लाइट मशीन गन की बरामदगी के बाद शैलेंद्र सिंह ने मुख्तार अंसारी पर पोटा कानून लगा दिया और यहीं से मुलायम सरकार की नजरें डीएसपी शैलेंद्र सिंह प रटेढ़ी हो गईं. अंततः शैलेंद्र को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी.
सुनिए पूरी कहानी शैलेंद्र सिंह की जुबानी…
शैलेंद्र सिंह के मुताबिक, लखनऊ में 2004 में मुख्तार और कृष्णानंद राय के बीच गैंगवार हुआ था. आपस में गोलियां चलीं और तब एसटीएफ को इन पर नजर रखने के लिए जिम्मेदारी दी गई थी. यह दोनों पूर्वांचल से आते थे. दोनों एक दूसरे के जानी दुश्मन थे. शैलेंद्र सिंह ने बताया कि वह पूर्वांचल के चंदौली के रहने वाले हैं. ऐसे में उन्हें मुख्तार अंसारी और कृष्णानंद राय दोनों पर निगरानी की जिम्मेदारी थी, ताकि कोई खूनी गैंगवार ना हो जाए.
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शैलेंद्र सिंह ने कहा, “इसी निगरानी के क्रम में जब मैं मुख्तार अंसारी का फोन सुन रहा था तब यह सेना के भगोड़े बाबूलाल यादव से लाइट मशीन गन खरीदने की बात कर रहा था. बाबूलाल कह रहा था कि मेरे पास सेना से चुराई हुई लाइट मशीन गन है जो कि राष्ट्रीय राइफल से चुराई गई थी और उससे लेकर आया हूं और यह करोड़ में सौदा लगभग तय हो गया था.”
उन्होंने कहा, “जब मुख्तार अंसारी अपने लोगों से बात कर रहा था और वह फोन भी रिकॉर्ड हो रहा था तब उसने कहा था कि उसे हर हाल में यह लाइट मशीन गन चाहिए. उसकी वजह भी वह बताता था कि कृष्णानंद राय की गाड़ी बुलेट प्रूफ है और उसपर इसके राइफल का कोई असर नहीं होगा. अगर लाइट मशीन गन उससे मिल जाए तो वह उसकी बुलेट प्रूफ गाड़ी को भेद सकती है और उसे मारा भी जा सकता है.”
खास बात यह है कि इस पूरे ऑपरेशन की जिम्मेदारी खुद आरके विश्वकर्मा जो तब बनारस में एसटीएफ के एसपी थे और आज राज्य के डीजीपी हैं. उन्होंने ही शैलेंद्र को यह जिम्मेदारी दी थी कि हर हाल में इस लाइट मशीन गन को मुख्तार के पास पहुंचने से पहले बरामद करना है, क्योंकि अगर यह मुख्तार के पास पहुंच गई तो फिर इसे बरामद करना असंभव हो जाएगा.
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शैलेंद्र सिंह ने कहा, “यह लाइट मशीनगन 24 घंटे के अंदर बरामद करना था, क्योंकि मुख्तार से बाबूराम यादव की डील हो गई थी. पुलिस को मालूम था कि अगर यह एक बार मुख्तार के घर के भीतर चला गया तो फिर किसी भी कीमत पर पुलिस उसे बरामद नहीं कर पाएगी.”
उन्होंने आगे कहा, “तत्काल हम लोगों ने ऑपरेशन लॉन्च किय. हमने बाबू लाल यादव को उठाया. पता ये चला कि उसने अपने मामा के पास इसे छुपा कर रखा है. जान पर खेलकर हम लोगों ने इसे बरामद किया.”
शैलेंद्र सिंह के मुताबिक, मुख्तार अंसारी हर हाल में कृष्णानंद राय को मार देना चाहता था. उसे लग रहा था कि कृष्णानंद राय की बुलेट प्रूफ गाड़ी सबसे बड़ी अड़चन है. उसका एके-47 या उसके राइफल अचूक नहीं थे. ऐसे में अपने लोगों से बातचीत में उसने हर हाल में इस लाइट मशीन गन को लेने की बात कही थी और वह लगभग इसे ले चुका था.
शैलेंद्र सिंह ने कहा, “फाइनली जब मैंने इसे रिकवर किया तो वादी के रूप में बनारस के चौबेपुर थाने में मैंने यह मामला दर्ज कराया. संबंधित धाराओं में यह मामला दर्ज हुआ. लेकिन मामला सेंसेटिव था. सेना से चुराया हुआ लाइट मशीन गन था. इसे कश्मीर से लाया गया था. यह मुख्तार के हाथों में पहुंचने वाला था, इसलिए हमने आर्म्स एक्ट के साथ-साथ इसमें पोटा भी लगाया और यहीं से पूरा मामला बिगड़ गया. मुख्तार अंसारी को लग चुका था कि पोटा लगने से उसकी मुसीबत काफी बढ़ जाएगी और वह इससे निकल नहीं पाएगा.”
उन्होंने कहा, “तब की सियासत इसके मुफीद थी मायावती की सरकार तोड़कर मुलायम सिंह यादव ने सरकार बनाई थी. तब मुख्तार अंसारी कई इंडिपेंडेंट विधायकों के साथ सरकार को समर्थन दे रहा था और यही से उसने मुलायम सिंह यादव पर दबाव बनाया.”
शैलेंद्र सिंह ने कहा, “मुलायम सिंह यादव कतई नहीं चाहते थे कि मुख्तार पर पोटा लगे. इस मामले में एक साथ दर्जनों ट्रांसफर मुलायम सिंह यादव ने कर दिया. यहां तक कि बनारस की एसटीएफ यूनिट को भी बंद कर दिया है. यह मैसेज साफ हो गया कि इसमें बीच का रास्ता कुछ नहीं है, मुख्तार को हर हाल में पोटा से बाहर निकालना है. दूसरी तरफ मेरे ऊपर भी दबाव था. एफआईआर बदलना चाहते थे. मैंने एफआईआर बदलने से मना कर दिया. लोगों ने कहा कि आप इन्वेस्टिगेशन में नाम मत लेना उनका, लेकिन सब कुछ जुटाया हुआ साक्ष्य मेरा ही था तो मैं अड़ा रहा और मैंने पीछे हटने से मना कर दिया जिसकी कीमत मैंने अपनी नौकरी छोड़कर चुकाई.”
उन्होंने आगे कहा, “जब सब तरफ से समझाने की कोशिश भी बेकार हो गई और मैंने भी फैसला कर लिया की कि मैं इस मुद्दे पर पीछे नहीं हटूंगा. तब मैंने भी त्याग पत्र लिखा और त्यागपत्र में मैंने साफ लिखा कि जब सरकार का फैसला मुख्तार अंसारी कर रहा है तो यहां मेरे लिए काम करना मुश्किल है.”
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