अपने जन्मदिन पर मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान क्या इस वजह से किया? पढ़ें रिपोर्ट

चार बार मुख्यमंत्री के रूप में उत्तर प्रदेश की कमान संभाल वालीं बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती की गिनती आज देश के प्रमुख सियासी…

follow google news

चार बार मुख्यमंत्री के रूप में उत्तर प्रदेश की कमान संभाल वालीं बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती की गिनती आज देश के प्रमुख सियासी नेताओं में की जाती है. 15 जनवरी 1956 को पैदा होने वालीं मायावती का आज 67वां जन्मदिन है, लेकिन आज उनकी सक्रियता को लेकर काफी सवाल किए जाते हैं. आइए इस वीडियो में हम बात करेंगे आखिर कैसे एक बड़ा चेहरा, जो कभी राजनीतिक गलियारों में अहम हुआ करता था, वो आज क्यों सवालों के घेरे में है.

यह भी पढ़ें...

मायावती का जन्म 15 जनवरी 1956 को दिल्ली में हुआ. मायावती के पिता का नाम प्रभुदयाल और मां का नाम रामरती था. मायावती का पैतृक गांव बादलपुर उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्धनगर जिले में है. मायावती 6 भाई और दो बहनें हैं. मायावती की मां ने अनपढ़ होने के बावजूद अपने बच्चों की पढ़ाई में खासी दिलचस्पी ली.

मायावती ने 1975 में दिल्ली के कालिंदी कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की. इसके बाद 1976 में उन्होंने गाजियाबाद के VMLG कॉलेज से बीएड की डिग्री हासिल की. बाद में उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलबी की डिग्री भी हासिल की.

शिक्षा पूरी करने के बाद मायावती ने शिक्षिका के रूप में भी काम किया, मगर इसी दौरान मायावती की मुलाकात कांशीराम से हुई, जिसके बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई. मायावती के पिता उन्हें आईएएस बनाना चाहते थे और वे अपनी बेटी पर कांशीराम के राजनीतिक असर को देखकर खुश नहीं थे.

मगर मायावती धीरे-धीरे कांशीराम के मिशन के साथ जुड़ती चली गईं. बाद में उन्होंने सियासी मैदान में कदम रखा. सियासी मैदान में सक्रिय होने के बाद मायावती ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

सियासी मैदान में उतरने के साथ ही मायावती ने महत्वपूर्ण भूमिका निभानी शुरू कर दी थी। मायावती ने 1989 में पहली बार लोकसभा का चुनाव जीता. इसके बाद वे 1994, 1999 और 2004 का लोकसभा चुनाव जीतने में भी कामयाब रहीं. 1994 में वे पहली बार राज्यसभा के लिए चुनी गई थीं.

उन्होंने भाजपा के सहयोग से 3 जून 1995 को पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली. इसके बाद 18 अक्टूबर 1995 तक वे प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं. 21 मार्च 1997 को वे फिर दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनीं. मायावती को 3 मई 2002 को तीसरी बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला.

2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती की अगुवाई में बसपा ने उत्तर प्रदेश में अपनी ताकत दिखाई थी. 12 मई 2007 को चौथी बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद मायावती ने मुख्यमंत्री के रूप में पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. मुख्यमंत्री के रूप में कानून व्यवस्था को लेकर मायावती ने काफी सख्त तेवर अपनाया था जिसकी आज तक मिसाल दी जाती है. इस तरह मायावती अभी तक सियासी नजरिए से काफी अहम माने जाने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की चार बार कमान संभाल चुकी हैं.

उत्तर प्रदेश में 2012 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद मायावती सियासी रूप से काफी कमजोर दिखी हैं. 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा ने 224 सीटों पर जीत हासिल करके प्रदेश में सरकार बनाई थी, जबकि बसपा 80 सीटों पर सिमट गई थी. भाजपा को 47 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि कांग्रेस 28 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी.

2017 का विधानसभा चुनाव मायावती के लिए और भी खराब रहा। 2017 के चुनाव में भाजपा गठबंधन ने 324 सीटों पर जीत हासिल करके प्रचंड बहुमत हासिल किया था. भाजपा को 311 सीटों पर जीत मिली थी जबकि सहयोगी दलों अपना दल ने 9 और सुभासपा ने 4 सीटों पर जीत हासिल की थी. सपा-कांग्रेस गठबंधन को 54 सीटों पर जीत मिली थी जबकि बसपा 19 सीटों पर सिमट गई थी.

2022 के विधानसभा चुनाव ने मायावती की कमजोर होती पकड़ पर पूरी तरह मुहर लगा दी. 2022 के चुनाव में भाजपा गठबंधन को 273 सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि सपा गठबंधन 125 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की. कांग्रेस को दो सीटों पर कामयाबी मिली जबकि बसपा सिर्फ एक सीट ही जीत सकी.

लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखा जाए तो उससे भी साबित होता है कि मायावती की पकड़ लगातार कमजोर पड़ती जा रही हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा 20 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में मोदी लहर ने ऐसा असर दिखाया कि बसपा का खाता तक नहीं खुल सका. मायावती के लिए 2014 का लोकसभा चुनाव बड़ा सियासी झटका था.

उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में बड़ी हार के बाद मायावती ने 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया. सपा से गठबंधन करने का मायावती को फायदा भी मिला और बसपा 2019 के चुनाव में 10 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही। मायावती की जीत में सपा से हाथ मिलाने का भी खासा असर रहा,लेकिन चुनाव के बाद सपा से बसपा का गठबंधन टूट गया.

अब सभी सियासी दलों ने 2024 की सियासी जंग के लिए कमर कसनी शुरू कर दी है. मायावती के सामने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में बड़ी चुनौती होगी. दलित,मुस्लिम और अति पिछड़ा गठजोड़ मायावती की बड़ी ताकत रहा है मगर यदि प्रदेश के पिछले चुनावोंको देखा जाए तो यह वोट बैंक मायावती के हाथ से छिटकता दिख रहा है.

प्रदेश के मौजूदा सियासी हालात को देखते हुए मायावती का किसी भी दूसरे राजनीतिक दल से गठबंधन होता नहीं दिख रहा है. सपा से उनका गठबंधन पहले ही टूट चुका है और भाजपा व कांग्रेस पर वे हमलावर रुख अपनाती रही हैं. ऐसे में मायावती के सामने अकेले दम पर अगले लोकसभा चुनाव में सियासी ताकत दिखाने की बड़ी चुनौती है.

दलित-मुस्लिम वोट बैंक को एक बार फिर अपने पाले में खींचने के लिए मायावती ने तैयारियां शुरू कर दी है. शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली की पार्टी में वापसी और इमरान मसूद को पार्टी से जोड़ना मायावती की इसी मुहिम का हिस्सा माना जा रहा है. हाल में अतीक अहमद की पत्नी ने भी बसपा का दामन थामा है. अपना जनाधार बढ़ाने के लिए मायावती ने 2024 के मास्टर प्लान पर काम शुरू कर दिया है. जातीय समीकरण साधने की दिशा में मजबूत कदम उठाते हुए मायावती ने पिछले दिनों विश्वनाथ पाल को बसपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है.

मायावती ने बनाया चुनावी समीकरण! बोलीं- ‘SC-ST-OBC और मुस्लिम भाईचारे के गठजोड़ के बल पर..’

    follow whatsapp