उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में स्थित इलाहाबाद विश्वविद्यालय (University of Allahabad) पिछले 136 सालों से शान से खड़ा है और हर साल लाखों छात्रों का भविष्य सवार रहा है. यहां से पढ़ने वाले छात्रों के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय सिर्फ एक विश्वविद्यालय नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी भावना है, जिसे वह छात्र जीवन में हमेशा महसूस करता है. बता दें कि 23 सितंबर 1887 के दिन इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी के तौर पर की गई थी और आज भी एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी के तौर पर ये शिक्षण सेवा में लगा हुआ है. मगर क्या आप जानते हैं कि इस विशालकाय विश्वविद्यालय की शुरुआत लोन से हुई? क्या आप जानते हैं कि इस यूनिवर्सिटी की स्थापना के साथ ही 5240 रुपए का लोन का इतिहास ही इसके साथ जुड़ गया.
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आइये आज आपको पूरब का ऑक्सफ़ोर्ड कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के बारे में कुछ रोचक जानकारी देते हैं.
देश का चौथा सबसे पुराना विश्वविद्यालय
आपको बता दें कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय देश का चौथा सबसे पुराना विश्वविद्यालय है. इससे पहले कलकत्ता, बॉम्बे और मद्रास विश्वविद्यालय का नाम आता है. इस विश्वविद्यालय की स्थापना 23 सितंबर 1887 को की गई थी. आपको बता दें कि यहां विश्वविद्यालय खोलने का सपना एक अंग्रेज अधिकारी ने देखा था और उसकी सोच का ही परिणाम था कि यहां इलाहाबाद विश्वविद्यालय का निर्माण हुआ.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय की वेबसाइट के मुताबिक, इस विश्वविद्यालय के निर्माण का पूरा श्रेय संयुक्त प्रांत के उपराज्यपाल सर विलियम मुइर को जाता है. उन्होंने इसके निर्माण में अहम योगदान निभाया. उनकी पहल के बाद ही यहां मुइर सेंट्रल कॉलेज, (जो कि उनके नाम पर रखा गया था) की आधारशिला 9 दिसंबर 1873 के दिन रखी गई. आधारशिला भी उस समय के वायसराय लॉर्ड नॉर्थब्रुक द्वारा रखी गई. इस अवसर पर सर विलियम मुइर ने कहा था कि “जब से मैंने अपना वर्तमान कार्यभार संभाला है, तब से ही इलाहाबाद में एक केंद्रीय महाविद्यालय की स्थापना करना मेरी प्रबल इच्छा रही है.” आपको बता दें कि यहीं कॉलेज आगे जाकर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के तौर पर अस्तित्व में आया.
5240 रुपए लोन का मामला क्या है?
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की वेबसाइट के मुताबिक, यूनिवर्सिटी को स्थापित करने के लिए इसे सरकार की तरफ से 5240 रुपये का लोन दिया गया था. उस समय इस रकम से यूनिवर्सिटी शुरू की गई थी. बता दें कि उस समय 5240 रुपयों की भी बहुत बड़ी कीमत होती थी.
यूनिवर्सिटी को इस लोन को जल्द से जल्द चुकाना था और सरकार को उसका पैसा वापस करना था. मिली जानकारी के मुताबिक, यूनिवर्सिटी ने 2 सालों के अंदर ही सरकार द्वारा दिए गए 5240 रुपये के लोन को चुका दिया. उस समय यूनिवर्सिटी के आय के सबसे प्रमुख स्रोतों में परीक्षा शुल्क, प्रॉस्पेक्टर और कैलेंडर की बिक्री ही थी. माना जाता है कि इस आय से ही इसने अपना लोन चुकाया.
इसके बाद विश्वविद्यालय की आय को बढ़ाने के लिए 1892 से 93 में विश्वविद्यालय ने सरकारी प्रतिभूतियों में कुछ पूंजी निवेश करना शुरू किया. इसका परिणाम ये रहा कि 1899-1900 में इसकी आरक्षित निधि उस समय के 34 हजार रुपये तक पहुंच गई. इस रकम से ये अपने भवनों के निर्माण करने की हालत में आ गया और आर्थिक तौर पर सशक्त होता चला गया. आज भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय हर साल हजारों-लाखों छात्रों को अपनी तरफ आकृषित करता है. देश के कई राष्ट्रपति और प्रधानमंत्रियों ने इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा पूरी की है.
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