शारदा सिन्हा: छठ पर ही खामोश हो गई ‘मिथिला की बेगम अख्तर’ की दैवीय आवाज!

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06 Nov 2024 (अपडेटेड: 06 Nov 2024, 01:24 PM)

Sharda Sinha death: शारदा सिन्हा का मंगलवार रात दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया. वह 72 वर्ष की थीं.

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‘बिहार कोकिला’, ‘मिथिला की बेगम अख्तर’ और भी न जाने इसी तरह के कितने नामों से प्रख्यात लोक गायिका शारदा सिन्हा के बेहद पक्के और मिट्टी की खुशबू समेटे सुरों से सजे लोकगीतों के बिना बिहार और मिथिलांचल के किसी भी पर्व की कल्पना संभव नहीं है. 

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लोक आस्था के पर्व छठ के गीतों को पूरी दुनिया तक पहुंचाने का श्रेय भी यदि शारदा सिन्हा को दिया जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. इसे विडंबना ही कहेंगे कि छठ के गीतों को घर-घर पहुंचाने वाली इस लोकगायिका के सुर छठ पर्व पर ही खामोश हो गए.

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शारदा सिन्हा का मंगलवार रात दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया. वह 72 वर्ष की थीं. शारदा सिन्हा हमेशा छठ पर्व के दौरान एक गीत जारी करती थीं और इस वर्ष भी उन्होंने खराब स्वास्थ्य के बावजूद ऐसा किया.

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शारदा सिन्हा के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर उनके द्वारा गाया गया गीत ‘‘दुखवा मिटाईं छठी मईयां’’ एक दिन पहले ही साझा किया गया था. यह गीत शायद उनकी मनःस्थिति को दर्शाता है, जब वह खराब स्वास्थ्य से जूझ रही थीं.

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बिहार की समृद्ध लोक परंपराओं को राज्य की सीमाओं से बाहर भी लोकप्रिय बनाने वालीं शारदा सिन्हा के कुछ प्रमुख गीतों में ‘‘छठी मैया आई ना दुआरिया’’, ‘‘कार्तिक मास इजोरिया’’, ‘‘द्वार छेकाई’’, ‘‘पटना से’’, और ‘‘कोयल बिन’’ शामिल हैं.

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इसके अलावा उन्होंने बॉलीवुड फिल्मों के लिए भी गीत गाए थे जिनमें ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर- टू’ के ‘तार बिजली’, ‘हम आपके हैं कौन’ के ‘बाबुल’ और ‘मैंने प्यार किया’ के ‘कहे तो से सजना’ जैसे गाने शामिल हैं. 

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शारदा सिन्हा ने भोजपुरी, मैथिली और मगही भाषाओं में लोकगीत गाए थे और उन्हें पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था. शारदा सिन्हा साल 2017 से मल्टीपल मायलोमा से जूझ रही थीं और कुछ महीने पहले ही उनके पति का निधन हुआ था.

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