Mathura Dispute: मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह मामले में गुरुवार एक बड़ा फैसला आया. दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से सटे शाही ईदगाह में सर्वे को मंजूरी दे दी है. यह सर्वे किस तरह किया जाएगा इस पर 18 दिसंबर की सुनवाई होगी. ऐसे में आइए जानते हैं क्या है श्रीकृष्ण जन्मभूमि का इतिहास?
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ऐसी मान्यता है कि 5132 साल पहले भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को राजा कंस के मथुरा कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. इस स्थान को कटरा केशव देव के नाम से जाना जाता है. भगवान श्रीकृष्ण के विश्व भर में भक्त हैं. कहा जाता है कि 1618 ईसवी में ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने जन्मभूमि मंदिर का निर्माण कराया था, जिसे मुगल शासक औरंगजेब ने ध्वस्त कर शाही मस्जिद ईदगाह का निर्माण करा दिया था.
इसके बाद गोवर्धन युद्ध के दौरान मराठा शासकों ने आगरा-मथुरा पर आधिपत्य जमा लिया. मस्जिद हटा कर श्रीकृष्ण मंदिर का निर्माण कराया गया. इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन आ गया. ब्रिटिश सरकार ने साल 1803 में 13.37 एकड़ जमीन कटरा केशव देव के नाम नजूल भूमि (जिस भूमि पर किसी का भी मालिकाना अधिकार नहीं होता है) घोषित कर दी.
इसके बाद साल 1815 में बनारस के राजा पटनीमल ने इसे अंग्रेजों से खरीद लिया. मुस्लिम पक्ष की स्वामित्व का दावा खारिज कर दिया गया और 1860 में बनारस राजा के वारिस राजा नरसिंह दास के पक्ष में डिक्री हो गया. हिन्दू-मुस्लिम पक्ष के बीच विवाद चलता रहा.
1920 के फैसले में मुस्लिम पक्ष को निराशा मिली. कोर्ट ने कहा 13.37 एकड़ जमीन पर मुस्लिम पक्ष का कोई अधिकार नहीं है. 1944 में पूरी जमीन का पं मदनमोहन मालवीय और दो अन्य के नाम बैनामा किया गया. जेके बिड़ला ने कीमत का भुगतान किया. इससे पहले 1935 में मस्जिद ईदगाह के केस को एक समझौते के आधार पर तय किया गया था. इसके बाद 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बना किंतु 1958 में वह अर्थहीन हो गया. इसी साल मुस्लिम पक्ष का एक केस खारिज कर दिया गया.
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