ADVERTISEMENT
हमीरपुर जिले में मोहर्रम की रात एक दर्जन से अधिक इमामबाड़ों पर आग पर मातम होता है. तमाम इमामबाड़ो के सामने अलाव जलाया जाता है.
मातम करते हुए लोग आग के अंगारों को उछाल कर अकीदतमंद इमाम हुसैन पर हुए जुल्म और ज्यादतियों को याद करते हैं.
यह सिलसिला पूरी रात चलता है और सुबह ताजियों का जुलूस निकलता हैस, जो मोहर्रम को देर रात कर्बला पहुंचता है.
मौदहा कसबे में आग पर मातम करने वाले अकीदतमंदों का कहना है हम आग पर मातम कर के उस तकलीफ का एहसास करने की कोशिश करते हैं जो इमाम हुसैन सहित उनके पूरे कुनबे ने सहा था.
अकीदतमंदों के अनुसार, आग पर मातम खत्म ख़त्म होते ही ताज़ियों का जुलूस उठ जाता है, जो 24 घंटे चलता हुए कर्बला तक पहुंचता है और कर्बला में ही ताजियों को सुपुर्दे खाक कर दिया जाता है.
अकीदतमंदों के मुताबिक, आज से लगभग 1400 साल पहले ज़ालिम शासक यज़ीद जिसकी जुल्म और ज़्यादतियों से लोग खौफ खाते थे.
अकीदतमंदों के अनुसार, इमाम हुसैन ने उसके खिलाफ आवाज़ बुलंद की, जिसपर यज़ीद ने इमाम हुसैन और उनके पूरे कुनबे को भूखा प्यासा शहीद किया था, जिसमें छोटे छोटे बच्चे भी थे.
अकीदतमंदों के अनुसार, तब से ही इमाम हुसैन और शोहदाए कर्बला के मानने वाले मुहर्रम के महीने को ग़म के महीने के रूप में मनाते चले आ रहे हैं.
ADVERTISEMENT