Varanasi Tak: काशी और तमिलों का DNA एक समान, BHU के जीन वैज्ञानिक का दावा
वाराणसी में काशी-तमिल संगमम कार्यक्रम के दौरान BHU के एक जीन वैज्ञानी का एक दावा भारत के उत्तर और दक्षिण के राज्यों के संबंधों को…
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वाराणसी में काशी-तमिल संगमम कार्यक्रम के दौरान BHU के एक जीन वैज्ञानी का एक दावा भारत के उत्तर और दक्षिण के राज्यों के संबंधों को…
वाराणसी में काशी-तमिल संगमम कार्यक्रम के दौरान BHU के एक जीन वैज्ञानी का एक दावा भारत के उत्तर और दक्षिण के राज्यों के संबंधों को और मजबूती देने वाला है, बल्कि यह भी दावा करता है कि भले ही हमारा रंग-रूप अलग हो, लेकिन हमारे पूर्वज एक ही हैं. पूर्वज के एक होने के दावे के पीछे काशी और तमीलनाडु के लोगों का DNA एक जैसा जीन वैज्ञानी ने बताया है.
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काशी विश्वनाथ की धरती से रामेश्वरम की भूमि का नाता कोई नया नहीं है. इस बात को अब और बल मिल चुका है, क्योंकि BHU में चल रहे रिसर्च के दौरान यह बात निकलकर आई है कि काशी और तमिलों के पूर्वज एक ही हैं. ऐसा दावा इसलिए किया गया है क्योंकि दोनों ही जगहों के DNA एक समान पाए गए हैं.
रिसर्च को लीड करने वाले काशी हिंदू विवि के जंतु विज्ञान विभाग के जीन विज्ञानी प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि यह शोध कोई नया नहीं है, बल्कि 2006 से यह चल रहा है और अबतक 35 हजार सैंपल को जुटाया जा चुका है.
इस शोध में यह खोजा जा रहा है कि भारत की जातियां-जनजातियां आपस में कितनी भिन्न या समान हैं. इसी कड़ी में काशी के 100 लोगों और तमिलनाडु के 200 लोगों का भी सैंपल लिया गया और रिसर्च करके चौकाने वाले नतीजे आए कि काशी के लोगों के चार जीनोम तमीलनाडु के जीनोम की तरह थे.
सवाल यह होता है कि चारों जीनोम एक जैसा होने के बावजूद काशी और तमिल के लोगों दिखने में अलग कैसे? तो इसकी वजह है कि जीनोम के कमपोनेंट कहीं कम तो कहीं ज्यादा थे. लेकिन हमारे पूर्वजों की तरफ से बना बेसिक कंपोनेंट एक ही है और हमारे पूर्वज भी एक ही रहे.
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उन्होंने बताया कि इस शोध में कुल 75 वैज्ञानिक लगे हुए हैं और कई विवि, कॉलेज और स्कूल के साथ कोलाबरेशन भी किए हुए हैं. आणविक जीवविज्ञान केंद्र (CCMB) हैदराबाद और BHU की टीम इस शोध में मुख्य रूप से है. यह रिसर्च वर्ष 2006 से शुरू हुआ है और अभी भी जारी है.
उन्होंने आगे बताया कि योजना है कि पूरे भारत से एक लाख सैंपल कलेक्ट किए जा सके. आगे जाकर इस डेटा का फोरेंसिक में बहुत बड़ा इस्तेमाल भी होगा. इससे सबसे ज्यादा लाभ क्राइम के विश्लेषण में होगा और पता चल सकेगा कि अपराध करने वाला कहा का है या विक्टिम किस जगह का है?
वहीं इस शोध टीम के सदस्य प्रज्जवल प्रताप सिंह ने बताया कि यह रिसर्च पापुलेशन बेस्ड रिसर्च है. साउथ इंडियन और नार्थ इंडियन गंगेटिक प्लेन के DNA का एनालिसिस किया और पाया कि दोनों ही जगहों के पूर्वज एक समान थे और पाया गया कि बेसिन जेनेटिक सेम है.
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इस मामले से जुड़ी वीडियो रिपोर्ट को खबर की शुरुआत में शेयर किए गए Varanasi Tak के वीडियो पर क्लिक कर देखें.
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