ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी केस: 12 सितंबर को पोषणीयता पर कोर्ट सुनाएगा फैसला, आदेश सुरक्षित
वाराणसी (Varanasi News) के चर्चित ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) और श्रृंगार गौरी (Shringar Gauri) मामले में जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में सभी…
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वाराणसी (Varanasi News) के चर्चित ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) और श्रृंगार गौरी (Shringar Gauri) मामले में जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद गुरुवार को ऑर्डर सुरक्षित कर लिया है. अब 12 सितंबर, 2022 को कोर्ट मेंटेनेबिलिटी यानी पोषणीयता के सवाल पर ऑर्डर देगी कि यह केस आगे चुना जाएगा या नहीं.
लगातार आज मुस्लिम पक्ष की ओर से कोर्ट में तीसरे दिन अपना प्रतिउत्तर यानी रेजॉइंडर पेश करके बहस पूरी की गई, जिसके बाद हिंदू पक्ष से भी याची महिलाओं के वकीलों ने अपनी बहस पूरी की. अब कोर्ट ने ऑर्डर 12 सितंबर तक सुरक्षित कर लिया है.
आगामी 12 सितंबर को यह फैसला आ जाएगा कि वाराणसी के जिला जज की अदालत में ज्ञानवापी मस्जिद और श्रृंगार गौरी का मामला सुनने योग्य है कि नहीं. आज जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में लगभग चली 3 घंटे की बहस में तीसरे दिन भी मुस्लिम पक्ष ने अपना रेजॉइंडर यानी प्रतिउत्तर जारी रखते हुए बहस पूरी की, तो वहीं हिंदू पक्ष के वकीलों ने भी अपने प्रतिउत्तर को पूरा किया. उसके बाद केस की मेंटेनेबिलिटी पर कोर्ट ने 12 सितंबर तक के लिए फैसला रिजर्व कर लिया है.
खास बातचीत में वादी संख्या 2 से 5 के वकील हरिशंकर जैन ने बताया कि औरंगजेब ने किसी तरह का वक्फनामा नहीं किया था और ना ही जमीन मुस्लिमों को मस्जिद बनाने के लिए दी थी. हां, लेकिन मंदिर जरूर तोड़ा गया था, जिसको कालांतर में मुसलमानों ने कब्जा करके मस्जिद बना दिया. मस्जिद सिर्फ एक हिस्से पर बनी है, बाकी हिस्से पर हिंदू अपनी पूजा कर रहे थे. साल 1993 में मुलायम सिंह की सरकार में वह पूजा भी बंद कर दी गई.
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उन्होंने बताया कि जिस औरंगजेब के द्वारा दी गई जमीन पर आलमगीर मस्जिद का दावा मुस्लिम समाज कर रहा है, वह वाराणसी के पंचगंगा घाट पर बिंदु माधव मंदिर को तोड़कर बनाई गई मस्जिद है ना कि ज्ञानवापी मस्जिद. उन्होंने बताया कि मुस्लिम पक्ष बहुत बड़ा फर्जीवाड़ा कर रहा है और इन सारी बातों से उन्होंने कोर्ट को अवगत करा दिया है.
उन्होंने बताया कि कोर्ट में उन्होंने सारे डॉक्यूमेंट भी दिखा दिया कि आलमगीर मस्जिद और ज्ञानवापी मस्जिद, दोनों अलग-अलग हैं. उन्होंने मुस्लिम पक्ष के गजट के पेपर पर भी सवाल खड़े किए हैं, जिसको लेकर मुस्लिम पक्ष दावा कर रहा है कि वह संपत्ति वक्फ की है.
हरिशंकर जैन ने कहा कि वह गजट नॉन मुस्लिम पर अप्लाई नहीं होता है. उन्होंने वक्फ की संपत्ति के सूची में ज्ञानवापी मस्जिद के शामिल होने वाले मुस्लिम पक्ष के दावे पर कहा कि मुस्लिम पक्ष ने कहीं भी भूमि संख्या 9130 का जिक्र नहीं किया है.
वहीं वादी संख्या 1 रखी सिंह के वकील मान बहादुर सिंह ने बातचीत में बताया कि उन्होंने ऑर्डर 7 रूल 11 यानी मेंटेनेबिलिटी के सवाल पर अपनी बहस पूरी की और यह दावा किया कि यह केस चलने योग्य है.
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औरंगजेब के द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद के लिए जमीन दिए जाने के सवाल के जवाब में वकील मान बहादुर सिंह ने कहा कि उन्होंने कोर्ट में बताया है कि औरंगजेब को लेकर इतिहास है कि औरंगजेब ने मंदिरों को ध्वस्त किया है, जहां तक ज्ञानवापी की बात है वह फाउंडेशन मंदिर के आर्किटेक्ट के अनुसार है और ऊपर के निर्माण को मस्जिद का है, इसलिए प्रीवेल कौन करेगा नीचे का फाउंडेशन या ऊपर का निर्माण?
इसके अलावा उन्होंने बताया कोर्ट में यह भी कहा गया कि क्या यह संपत्ति औरंगजेब की और इंसेन्टर प्रॉपर्टी थी आखिर औरंगजेब और संपत्ति को लाया कहां से था? और वक्फ को देने को लेकर संपत्ति के संबंध में कोई डीड है क्या? उन्होंने संपत्ति से संबंधित मुस्लिम पक्ष के कागजात पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि वह कहीं से संतोषजनक नहीं है, क्योंकि कागजात प्रॉपर प्रक्रिया को अडॉप्ट करके नहीं तैयार किया गया है. किसी चीज की एंट्री के लिए जिस रूल को फॉलो करना चाहिए उसको नहीं किया गया है. उन सारे कागजात की एंटिटी को चैलेंज किया गया है. उन्होंने बताया कि आगे रिटन स्टेटमेंट बनेगा, यीशु बनेगा और एविडेंस आएगा. उन्होंने बताया कि मेंटेनेबिलिटी पर निर्णय सुरक्षित कर लिया गया है, जो 12 सितंबर को सुनाया जाएगा.
वहीं दूसरी ओर इस पूरे केस को लेकर मुस्लिम पक्ष ज्ञानवापी मस्जिद के संपत्ति को लेकर किए जा रहे दावे पर अडिग नजर आया. आज जिला जज की अदालत में मुस्लिम पक्ष की तरफ से बहस पूरी करने वाले वकील शमीम अहमद ने बातचीत में बताया कि 1938 में एक फैसला हुआ था दीवानी न्यायालय में दीन मोहम्मद के केस में और इस फैसले में कोर्ट ने ज्ञानवापी को वक्फ की संपत्ति माना है. यह मुस्लिम पक्ष की तरफ से सबसे बेहतर सबूत है. उस वक्त का आदेश आज तक कायम है, इसलिए जब सिविल कोर्ट ने एक बार निर्णय कर लिया तो दोबारा उस पर वह निर्णय नहीं कर सकती है.
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उन्होंने बताया है कि उनकी तरफ से एक खसरा भी दाखिल किया गया है कोर्ट में, इसके अलावा साल 1944 का वक्फ बोर्ड का गजट भी दाखिल किया गया है. साथ ही वक्फ बोर्ड का एक रजिस्टर भी कोर्ट में दाखिल किया है. यह सारी चीजें शो कर रही हैं कि यह संपत्ति वक्फ की है. इसमें सबसे अहम बात यह है कि सरकार ने खुद वक्फ की संपत्ति का एक्सचेंज वर्ष 2021 में किया था. यह संपत्ति को मस्जिद इंतजामिया कमेटी की संपत्ति मानकर सरकार ने एक्सचेंज किया था. इन सारे बातों से साफ होता है कि यह मस्जिद आज की नहीं है, बल्कि हजारों साल पुरानी है.
उन्होंने हिंदू पक्ष की ओर से मुस्लिम पक्ष पर औरंगजेब के नाम से जमीन को लेकर बरगलाने का आरोप लगाने के सवाल में कहा कि वह वादी पक्ष बरगला रहा है, क्योंकि माधवराव धरारा मस्जिद से ज्ञानवापी मस्जिद दो ढाई किलोमीटर दूर है. वह कोतवाली वार्ड में पड़ता है जबकि ज्ञानवापी मस्जिद चौक वार्ड में पड़ता है.
उन्होंने बताया कि सारे पक्षों को कोर्ट ने सुन लिया है और पत्रावली ऑर्डर में रिजर्व हो गई है. 12 सितंबर 2022 को आदेश के लिए लगा हुआ है. उन्होंने बताया कि उनके आगे दो चुनौती है, पहला तो यह पूरा मुकदमा 1991 वर्शिप एक्ट के तहत बाधित है और चलने योग्य नहीं है और दूसरा यह मुकदमा वक्फ ट्रिब्यूनल में चलाया जाना चाहिए.
वाराणसी: ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की सम्पत्ति, मस्जिद समिति ने अदालत को बताया
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