सजा मिलते ही आजम की विधायकी तो चली गई पर BJP MLA की बरकरार रही, क्यों हुआ ऐसा, यहां जानिए
UP Political News: भड़काऊ भाषण मामले में तीन साल की सजा सुनाए जाने के एक दिन बाद शुक्रवार को समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम…
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UP Political News: भड़काऊ भाषण मामले में तीन साल की सजा सुनाए जाने के एक दिन बाद शुक्रवार को समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान की उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई थी. इसे लेकर अब राजनीति तेज हो गई है. राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) प्रमुख जयंत चौधरी ने विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना को पत्र लिखकर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि जब 2 साल की सजा होने पर विधायकी खत्म होने का प्रावधान है, तो विधानसभा अध्यक्ष ने जितनी जल्दबाजी आजम खान की विधानसभा की सीट रिक्त करने में दिखाई, उतनी ही तत्परता मुजफ्फरनगर के खतौली से बीजेपी विधायक विक्रम सैनी की सदस्यता खत्म करने में क्यों नहीं दिखाई?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि 2 साल की सजा पाए किसी भी जनप्रतिनिधि की सदस्यता स्वतः खत्म मानी जाएगी और जैसे ही यह सूचना विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय को मिलती है, तो विधानसभा अध्यक्ष उस विधायक की सीट खाली होने अधिसूचना जारी कर देते हैं.
यही इस मामले में पेच है कि आजम खान को जैसे ही 3 साल की सजा का ऐलान हुआ तो रामपुर जिलाधिकारी के कार्यालय ने इसकी सूचना राज्य निर्वाचन आयोग कार्यालय को दी और राज्य निर्वाचन कार्यालय ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में वह पत्र विधानसभा सचिवालय को भेजा. इसके बाद विधानसभा सचिवालय को जैसे ही 3 साल की सजा की चिठ्ठी मिली, तुरंत विधानसभा स्पीकर ने आजम खान के सीट की रिक्तता की घोषणा कर दी.
मगर विधायक विक्रम सैनी के मामले में ऐसा नहीं है, अदालत ने उन्हें 2 साल की सजा सुनाई है लेकिन ना तो जिलाधिकारी के तरफ से राज्य निर्वाचन आयोग को इस फैसले के आलोक में सदस्यता खत्म करने की कोई सूचना भेजी गई और ना ही राज्य निर्वाचन आयोग ने विक्रम सैनी की सदस्यता समाप्ति को लेकर कोई चिट्ठी विधानसभा कार्यालय को भेजी है. अब जबकि जयंत चौधरी ने यह सवाल विधानसभा अध्यक्ष से पूछा है, उसके बाद इस बारे में विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से जानकारी मांगी गई है कि बीजेपी विधायक विक्रम सैनी को जो अदालत ने सजा दी है उसकी उसकी स्टेटस रिपोर्ट क्या है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में क्या यह मामला भी सीट रिक्तता का बनता है या नहीं.
यूपी तक से बात करते हुए सतीश महाना ने कहा कि जब तक किसी भी जनप्रतिनिधि के 2 साल से अधिक की सजायाफ्ता होने की कोई आधिकारिक सूचना उनके दफ्तर को नहीं दी जाती तब तक वह किसी सदस्य की सीट की रिक्तता की घोषणा नहीं कर सकते. विक्रम सैनी के अदालती फैसले की कोई सूचना विधानसभा कार्यालय को आधिकारिक तौर पर नहीं भेजी गई है. ऐसे में अब विधानसभा की तरफ से विक्रम सैनी के सजा को लेकर सूचना मांगी गई हैं. विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में इस मामले को देखने के बाद इस पर फैसला लिया जाएगा.
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दरअसल, जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 धारा 8(3) के तहत यह प्रावधान है कि अगर किसी को भी 2 साल से अधिक की सजा होती है तो सजा की तारीख से उसकी सदस्यता स्वता ही समाप्त मानी जाएगी और अगले 6 साल के लिए वह चुनाव नहीं लड़ पाएगा.
विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना के दावे के अनुसार, आजम खान के मामले में सरकार की तरफ से सूचना उन्हें मिल गई थी, जबकि विक्रम सैनी के मामले में कोई सूचना नहीं दी गई.
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