मधुमिता शुक्ला मर्डर की पूरी कहानी, 7 महीने की प्रेगनेंट थी जब दो हमलावरों ने मारी गोली

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तारीख थी 9 मई 2003, लखनऊ के निशातगंज स्थित पेपर मिल कॉलोनी में ताबड़तोड़ गोलियां चली और उस जमाने की मशहूर कवयित्री मधुमिता शुक्ला (Madhumita Shukla) की हत्या कर दी गई. जिस समय मधुमिता की हत्या हुई, उस समय उसकी उम्र 22 साल थी. पुलिस अधिकारियों को गोली चलने की जानकारी मिली. पुलिस अधिकारी जैसे ही घटना स्थल पर पहुंचे, मृतका को देखते ही सभी सन्न रह गए. माना जाता है कि पुलिस अधिकारियों को पहले से ही बाहुबली नेता अमरमणि त्रिपाठी (Amarmani Tripathi) और मृतका मधुमिता शुक्ला के संबंधों की जानकारी थी. उस जमाने में अमरमणि कद्दावर मंत्रियों में शुमार थे. ऐसे में पुलिस अधिकारियों ने अपने उच्च अधिकारियों को मामले की सारी जानकारी दे दी. मगर इस केस में फिर जो सामने आया, उसने सभी को सकते में डाल दिया.

आखिर थी कौन मधुमिता शुक्ला?

दरअसल, मधुमिता शुक्ला उस जमाने की प्रसिद्ध कवयित्री थी. कविताओं की दुनिया में वह अपना बड़ा नाम बना चुकी थी. मधुमिता शुक्ला का संबंध लखीमपुर खीरी के एक कस्बे से था. वह अपनी वीर रस की कविताओं से जानी जाती थी. मिली जानकारी के मुताबिक, 15 से 16 साल की उम्र से ही मधुमिता शुक्ला ने मंच से काव्य पाठ करना शुरू कर दिया था. वह अपने काव्य पाठ से अपने क्षेत्र में पहचान बना चुकी थी. 

वीर रस की कविता पाठ करती थी मधुमिता

बताया जाता है कि उस दौर में वीर रस की कविताओं के मामले में मधुमिता अपना नाम बना चुकी थी. वह आगे बढ़ने लगी थी और अब अपने क्षेत्र से निकलकर पूरे यूपी में नाम बनाने के लिए निकल चुकी थी. बताया जाता है कि मधुमिता अपने कविता पाठ के दौरान देश के प्रधानमंत्री तक की आलोचना कर देती थी. उसका ये अंदाज लोगों को काफी पसंद आता था. 

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लखनऊ आकर हुआ अमरमणि त्रिपाठी से संपर्क

 

लखीमपुर खीरी से निकलकर मधुमिता यूपी की राजधानी लखनऊ आ गई. इस दौरान उन्होंने लखनऊ में कविता पाठ करना शुरू कर दिया. जल्द ही उन्होंने यहां भी अपनी अलग पहचान बना ली. बताया जाता है कि इसी दौरान उसकी मुलाकात बाहुबली और उस समय के बड़े नेताओं में शुमार अमरमणि त्रिपाठी से हो गई.

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लव हुआ शुरू और गोलियों से हुआ इस कहानी का अंत

बताया जाता है कि अमरमणि त्रिपाठी के परिजनों को भी मधुमिता शुक्ला का कविता पाठ पसंद आता था. परिवार के कुछ सदस्य मधुमिता को सुनने भी जाते थे. इसी दौरान मधुमिता की दोस्ती अमरमणि के परिजनों से हो गई थी. धीरे-धीरे मधुमिता का अमरमणि के घर आना-जाना भी शुरू हो गया. इसी बीच मधुमिता और अमरमणि त्रिपाठी के बीच इश्क हो गया. 

ऐसे खुला हत्याकांड का राज

बता दें कि उस समय अमरमणि यूपी सरकार के कद्दावर मंत्रियों में शुमार थे.  इस हत्याकांड की जांच उस समय की सीएम मायावती ने सीबीसीआईडी को सौंप दी थी. मिली जानकारी के मुताबिक, मधुमिता के शव का पोस्टमॉर्टम हुआ और उनके शव को उनके गृह जनपद लखीमपुर भेज दिया गया. 

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मधुमति के पेट में पल रहा था अमरमणि का बच्चा

शव अभी रास्ते मे ही था कि अचानक एक पुलिस अधिकारी की नजर पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट पर लिखी एक टिप्पणी पर पड़ी, जिसने ये पूरा केस खोल कर रख दिया. दरअसल रिपोर्ट में लिखा हुआ था कि मधुमिता गर्भवती थी. अधिकारीयों ने शव को फौरन रास्ते से वापस मंगवाकर उसकी दोबारा जांच करवाई. डीएनए जांच में सामने आया कि मधुमिता के पेट मे पल रहा बच्चा अमरमणि त्रिपाठी का था. 

ये बात सामने आते ही यूपी में हड़कंप मच गया. मामले की निष्पक्ष जांच के लिए विपक्ष ने मोर्चा संभाल लिया. बढ़ते दबाव की वजह से बसपा सरकार ने मामले की जांच सीबीआई को दे दी. मिली जानकारी के मुताबिक, सीबीआई जांच के दौरान भी गवाहों को धमकाने के आरोप लगे तब इस केस को देहरादून की फास्ट ट्रैक कोर्ट भेज दिया गया. जांच के दौरान इस केस में अमरमणि की पत्नी का भी नाम सामने आया.  देहरादून की विशेष कोर्ट ने अमरमणि और उनकी पत्नी मधुमणि समेत 4 लोगों को दोषी माना और उम्र कैद की सजा सुना दी. माना जाता है कि अमरमणि को चाहे उम्र कैद की सजा मिली हो. मगर सियासी गलियारों से अमरमणि का दबदबा कभी कम नहीं हुआ.

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