युवा मानस बहुत नाज़ुक होता है…NEET पेपर गड़बड़ी को लेकर अखिलेश ने सरकार से बड़ी गहरी बात कह दी

यूपी तक

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Akhilesh Yadav on NEET Exam
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UP News: नीट (NEET Exam) एग्जाम विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है. देश की सबसे बड़ी मेडिकल परीक्षा में से एक नीट के पेपर में भी गड़बड़ी की बात सामने आई है. इसके बाद सरकार एक्शन में आ गई है. मामले की जांच के लिए गठित एसआईटी टीम ने अभी तक इस पूरे मामले में 14 लोगों को अरेस्ट किया है. इसी बीच अब उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने नीट समेत पेपर्स में होने वाली धांधली को लेकर अपने सोशल मीडिया X पर ट्वीट किया है और इस पूरे मामले पर अपनी बात खुल कर रखी है. 

क्या बोले अखिलेश यादव?

सोशल मीडिया X पर अखिलेश ने पेपर्स में गड़बड़ी और पेपर लीक को लेकर खुलकर अपनी बात रखी है. अखिलेश ने कहा है कि पेपरों में धांधली होना एक मानसिक त्रादसी है. इससे छात्र के साथ-साथ उसके माता-पिता भी प्रभावित होते हैं. अखिलेश ने आगे कहा है कि अगर फिर से ये एग्जाम लिए जाते हैं तो कौन इस बात की गारंटी लेगा कि पेपरों में फिर गड़बड़ी नहीं की जाएगी?

ये मानसिक त्रादसी है- अखिलेश यादव

सोशल मीडिया X पर पोस्ट करते हुए अखिलेश यादव ने लिखा, विभिन्न परीक्षाओं का पेपर लीक होना, परीक्षा में सेंटर से लेकर सॉल्वर तक की धांधली होना, परीक्षा करानेवाली एजेंसी का काम शक़ के घेरे में आना, रिज़ल्ट में ग्रेस मॉर्क्स की हेराफेरी होना, मनचाहे सेंटर मिलना, एक ही सेंटर से कई कैंडिडेट का सेलेक्ट होना और 100% आना केवल एग्ज़ाम मैनेजमेंट की समस्या नहीं है. इन सबसे बढ़कर ये एक मानसिक त्रासदी है जिससे न केवल परीक्षा देनेवाले युवा बल्कि उनके माता-पिता भी ग्रसित हो रहे हैं. 

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उन्होंने आगे लिखा, ‘अगर पुलिस भर्ती, एआरओ, नीट जैसी धांधली की शिकार अन्य परीक्षाएं रद्द होकर दुबारा होती भी हैं तो इस बात की गारंटी कौन लेगा कि अगली बार परीक्षा आयोजित किये जाने पर ऐसा कुछ भी घपला-घोटाला नहीं होगा. जब सरकार वही है और उसकी व्यवस्था भी वही है तो ये सब धाँधलियाँ कहीं फिर से सरकार संरक्षित ‘परीक्षा माफ़ियाओं’ के लिए पैसा कमाने का ज़रिया न बन जाएं.

ये देश के भविष्य का सवाल- अखिलेश

अखिलेश यादव ने ट्वीट किया, ‘युवा मानस वैसे ही बहुत नाज़ुक होता है, ऐसे में उनको सँभालना माता-पिता के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती होता है. ऐसी घटनाओं से हताश-निराश होकर, जब माता-पिता ख़ुद व्यवस्था पर भरोसा खो देते हैं और उन्हें अपने बच्चों का भविष्य अंधकारमय दिखने लगता है तो भला वो क्या अपने बच्चों का सहारा बनेंगे. इसीलिए सरकार इस संकट को एक मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी देखे और कम-से-कम युवाओं के मामलों को अपने चौतरफ़ा भ्रष्टाचार से मुक्त रखे. ये देश के भविष्य का सवाल है. 
 

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