क्या दलित छोड़ रहे BJP का दामन? मैनपुरी-खतौली उपचुनाव की हार ने बढ़ाई टेंशन! पढ़ें रिपोर्ट

कुमार अभिषेक

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UP Byelection: उत्तर प्रदेश उपचुनाव के नतीजों ने बीजेपी को परेशान कर दिया है. बीजेपी के बड़े नेताओं तक को यह उम्मीद नहीं थी कि खतौली में बीजेपी हार जाएगी. साथ ही मैनपुरी में बीजेपी की इतनी बड़ी हार होगी इसका अंदाजा बीजेपी के शीर्ष नेताओं तक को नहीं था. उन्हें उम्मीद थी कि यह चुनाव कांटे का हो सकता है. बीजेपी अगर नहीं जीती तो कम से कम हार-जीत का अंतर कुछ हजार का होगा. मगर लगभग 3 लाख वोटों से डिंपल यादव की जीत ने बीजेपी के कैंप में हड़कंप मचा दिया है.

रामपुर में पहली बार मिली जीत का जश्न भी बीजेपी नहीं मना पाई. पीएम नरेंद्र मोदी के रामपुर की जीत का जिक्र अपने भाषण में करने के बावजूद पार्टी के भीतर मायूसीयत का माहौल है. 2 सीटों की हार से बीजेपी में हड़कंप इस बात से मचा है कि पार्टी के उन वोटरों ने उसका साथ छोड़ दिया, जो पार्टी के कोर वोटर या तो बन चुके थे या धीरे-धीरे बन रहे थे. यानी वह दलित वोटर जो मायावती के ‘कमजोर’ पड़ने पर बीजेपी को लगातार वोट कर रहे थे, उन्होंने इस बार बेहिचक महागठबंधन को वोट किया.

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी जब प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आए तो उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही थीं. रामपुर चुनाव की खुशी से कहीं ज्यादा खतौली हारने का गम भूपेंद्र चौधरी को था. उन्होंने कहा कि अब नए सिरे से समीक्षा होगी- साफ इशारा था कि उनका कोर वोटर खिसक रहा है.

बीजेपी को सबसे बड़ा झटका यह लगा कि जाटव वोटर जो मायावती के चुनाव नहीं लड़ने पर आसानी से बीजेपी को वोट कर रहा था, वो वोटर अब महागठबंधन की तरफ शिफ्ट करता जा रहा है. खतौली में दलित वोटरों को महागठबंधन और आरएलडी की तरफ ले जाने का श्रेय चंद्रशेखर ‘रावण’ को दिया जा रहा है, जिन्होंने बड़ी तादाद में दलित वोटरों को आरएलडी की तरफ मोड़ दिया.

परंपरागत तौर पर भी देखें तो दलित आरएलडी का वोटर कभी नहीं रहा, लेकिन जयंत चौधरी और चंद्रशेखर आजाद ने मिलकर जिस तरीके से जमीन पर मेहनत की. जिस तरीके से गांव-गांव जाकर चंद्रशेखर आजाद ने यह संदेश भिजवाया कि अब दलितों के नए नेता वह हैं और दलितों का हित उनके साथ सुरक्षित है.

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मैनपुरी में भी बीजेपी का पूरा दारोमदार दलित वोटों पर था और बीजेपी इस बात से आश्वस्त थी कि दलितों का बहुत बड़ा तबका डिंपल के खिलाफ रघुराज शाक्य को वोट करेगा, लेकिन हुआ ठीक उल्टा. दलितों का बहुत बड़ा वोट बैंक अखिलेश यादव के साथ चला गया. इसके पीछे अखिलेश यादव की जमीनी मेहनत बताई जा रही है.

अपने चुनावी कैंपेन में अखिलेश और डिंपल यादव ने दलित वोटों पर खासी मशक्कत की. अखिलेश और डिंपल दलित गांव में जाना नहीं भूले और लगातार दलितों के बीच कैंपेन करते रहे, जिसका असर यह हुआ कि मैनपुरी उपचुनाव में दलितों ने सपा को इतना वोट दिया, जितना मायावती के 2019 में मुलायम सिंह के लिए वोट मांगने पर भी नहीं दिया था.

चर्चा तो यह है कि रामपुर में भी दलित वोटरों में सेंध लगाने की एक सीरियस कोशिश चंद्रशेखर ने की. समाजवादी पार्टी नेता आजम खान के साथ मंच शेयर करते हुए चंद्रशेखर ने रामपुर में भी दलितों को सपा के पक्ष में वोट करने की जोरदार अपील की. कई दिनों तक चंद्रशेखर ने वहां कैंपेन भी किया, लेकिन यहां बीजेपी और आकाश सक्सेना का इंपैक्ट दलित वोटरों पर ज्यादा रहा. हालांकि इसके बावजूद यह माना गया की गैर मुस्लिमों में दलितों का कुछ वोट आजम खान के प्रत्याशी को भी गया है.

दलित वोटों के बिखरने से बीजेपी के भीतर चिंता बढ़ी है और खतौली उपचुनाव में जिस तरीके से जाट, गुर्जर, मुसलमान और दलित एक साथ आए हैं, इसने बीजेपी के कान खड़े हो गए हैं.

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