सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे और लखीमपुर खीरी हिंसा मामले के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने का फैसला 18 अप्रैल को सुनाया. इस दौरान कोर्ट ने कई तल्ख टिप्पणियां भी कीं.
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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में हाईकोर्ट से कहा कि आशीष मिश्रा की जमानत अर्जी की मेरिट पर निष्पक्ष और संतुलित ढंग से विचार कर तीन महीने में फैसला करे. अगर पीड़ित पक्ष अपने लिए वकील करने में अक्षम है तो हाईकोर्ट का उत्तरदायित्व है कि वो उनके लिए राज्य सरकार के खर्चे पर अपराधिक कानून की विशेषज्ञता वाले उपयुक्त वकील का भी इंतजाम करे, ताकि उन्हें न्याय मिल सके.
कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान एफआईआर सहित कई अप्रासंगिक चीजों को महत्व दिया है. एफआईआर में दर्ज चीजों के मुकाबले साक्ष्य और तथ्य अलग भी हो सकते हैं. एफआईआर को घटनाओं का इनसाइक्लोपीडिया नहीं माना जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि एफआईआर में आग्नेयास्त्रों से गोलियां चलाने का जिक्र है लेकिन मारे गए लोगों की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में कहीं गोलियां नहीं मिलीं. मेरिट के आधार पर इसका फायदा आरोपी को नहीं दिया जा सकता. लेकिन हाईकोर्ट ने आरोपी आशीष मिश्रा को राहत दी. जमानत अर्जी पर फैसला करते समय कोर्ट को घटनाओं और साक्ष्यों का अवलोकन और मूल्यांकन करने से बचना चाहिए, क्योंकि ये काम ट्रायल कोर्ट का है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले से जुड़े गवाहों पर हमले के आरोपों पर भी अपने फैसले में जिक्र किया है. कोर्ट ने लिखा है कि अगर ये आरोप सही हैं तो अधिकारियों को सावधान हो जाना चाहिए, क्योंकि अब जागने का वक्त आ चुका है.
अमूमन सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के फैसलों पर इतनी तल्ख टिप्पणी नहीं करता है. मगर इस मामले में मेरिट बनाम कोर्ट का आदेश, इनमें विसंगतियों और कोर्ट के अपने अधिकार और न्याय दोनों सीमाओं के अतिक्रमण पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणियां की हैं.
लखीमपुर खीरी हिंसा: सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की बेल, आशीष मिश्रा को फिर जाना होगा जेल
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