Navratri Day 1: आश्विन शरद् नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है. नवरात्रि के 9 दिनों में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की यथोचित पूजा-उपासना की जाती है. नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है. आइए आपको विस्तार से मां शैलपुत्री की पूजा विधि, घट स्थापना का शुभ मुहूर्त, कथा और ध्यान मंत्र के बारे में विस्तार से बताते हैं.
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श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत रोहित शास्त्री (ज्योतिषाचार्य) के मुताबिक नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना/कलशस्थापना,ज्योति प्रज्वलन के साथ होनी चाहिए. इसके लिए शुभ मुहूर्त 3 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 30 मिनट से लेकर दोपहर 3 बजकर 32 मिनट तक है. वैसे तो सुबह-सुबह ही ये काम कर लेना चाहिए पर अगर नहीं कर पाएं हों तो इस शुभ मुहूर्त को फॉलो कर सकते हैं.
पूजा की तैयारी और पूरी पूजा विधि जानिए
सुबह सबसे पहले शुद्ध जल से स्नान करें. अखंड दीप प्रज्वलित करें. पूजा घर या पूजा के स्थल को स्वच्छ करें. गंगा जल का छिड़काव करें. साफ चौकी पर कलश रख उसमें सात प्रकारी की मिट्टी, सुपारी, मुद्रा रखें. पंच प्रकार के पल्लव से सुशोभित करें. कलश में शुद्ध जल भर उसपर नारियल रख इसकी स्थापना करें. कलश के नीते सात तरह के अनाज और जौ बोयें.
पूजा की चौकी पर अब आपको श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका और सप्त घृत मातृका की स्थापना करनी है. फिर व्रत पूजन का संकल्प लें. मां दुर्गा सप्तशती मंत्रों द्वारा मां शैलपुत्री समेत सारे स्थापित किए गए देवी-देवाओं की षोडशोपचार पूजा करें. आवाहन, आसन, पाद्य, अर्धय, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदिक्षणा, मंत्र, पुष्पांजलि से पूजा संपन्न करें. इसके बाद प्रसाद वितरण करें.
शैलपुत्री ध्यान मंत्र
वंदे वाद्द्रिछतलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम |
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम् ||
इस मंत्र का अर्थ: देवी वृषभ पर विराजित हैं. शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है. ये नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं. नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए.
शैलपुत्री नाम क्यों पड़ा?
मां के इस रूप के जन्म पर्वतराज हिमालय के घर बेटी के रूप में हुआ था. इस वजह से इन्हें शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है. इनका वाहन वृषभ है. इन्हें देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है. मां शैलपुत्री ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल है. यही देवी सती भी हैं. इसके पीछे की कहानी प्रजापति के यक्ष से जुड़ी है. प्रजापति दक्ष ने यक्ष किया और सारे देवताओं को निमंत्रण दिया लेकिन भगवान शंकर को नहीं. देवी सती यज्ञ में जाने को व्याकुल थीं. भगवान शंकर ने कहा कि बिना निमंत्रण जाना उचित नहीं. पर देवी का मन देखकर आखिरकार उन्होंने जाने की अनुमति दे दी.
सती जब घर पहुंचीं, तो सिर्फ मां का स्नेह मिला. बहनों, बाकी लोगों ने तिरस्कार भाव से देखा. भगवान शंकर को भी तिरस्कार मिला. दक्ष ने अपमानजनक बातें कहीं. इससे मां सती को दुख हुआ और अपमान सह न सकीं. उन्होंने योगाग्नि से खुद को भस्म कर लिया. इससे व्यथित होकर भगवान शंकर ने क्रुद्ध होकर तांडव किया. यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की बेटी के रूप में पैदा हुईं और शैलपुत्री कहलाईं. इन्हीं का नाम पार्वती और हेमवती भी है.
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