झांसी की रानी और उनके ऑस्ट्रेलियाई वकील की कहानी, जिसने बताया- कैसी दिखती थीं लक्ष्मीबाई

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• 09:43 AM • 29 Nov 2021

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 नवंबर को अपने रेडियो प्रोग्राम ‘मन की बात’ में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और उनके ऑस्ट्रेलियाई वकील जॉन लैंग का…

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 नवंबर को अपने रेडियो प्रोग्राम ‘मन की बात’ में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और उनके ऑस्ट्रेलियाई वकील जॉन लैंग का जिक्र किया था. पीएम मोदी ने कहा, ”ये भी एक दिलचस्प इतिहास है कि ऑस्ट्रेलिया का एक रिश्ता हमारे बुंदेलखंड की झांसी से भी है. दरअसल झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जब ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रही थीं तो उनके वकील थे- जॉन लैंग. जॉन लैंग मूल रूप से ऑस्ट्रेलिया के ही रहने वाले थे. भारत में रहकर उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई का मुकदमा लड़ा था.”

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रानी लक्ष्मीबाई ने साल 1854 में जॉन लैंग को नियुक्त किया ताकि वो झांसी के अधिग्रहण के खिलाफ ईस्ट इंडिया कंपनी के समक्ष याचिका दाखिल करें. जॉन लैंग ने अपनी किताब ‘वॉन्ड्रिंग्स इन इंडिया एंड अदर स्केचेज ऑफ लाइफ इन हिंदोस्तान’ में रानी लक्ष्मीबाई से अपनी मुलाकात और उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताई हैं, जिसे बीबीसी के एक आर्टिकल में पब्लिश किया गया है. इस पूरे आर्टिकल को यहां पर क्लिक कर पढ़ा जा सकता है.

किस मामले में रानी लक्ष्मीबाई से मिले थे जॉन लैंग?

जॉन लैंग ने लिखा है कि जब अंग्रेजों ने झांसी को अपने शासन में मिलाने का ‘समझौता’ किया था तब इसके मुताबिक रानी को साठ हजार रुपये सालाना की पेंशन मिलनी थी, जिसमें हर महीने भुगतान होना था.

इसके बाद रानी ने उन्हें झांसी बुलाया था. इस मुलाकात का मकसद झांसी को अंग्रेजी शासन में मिलाने के आदेश को रद्द किए जाने या वापस लिए जाने की संभावना को तलाशना था.

जॉन लैंग ने बताया है,

”इस मामले से जुड़े तथ्य इस तरह से थे- दिवगंत हुए राजा की अपनी इकलौती पत्नी से कोई विवाद नहीं था. राजा ने अपनी मौत से कुछ हफ्ते पहले अपने पूरे होशोहवास में सार्वजनिक तौर पर अपना वारिस गोद लिया था. उन्होंने इसके बारे में ब्रिटिश सरकार को सूचना भी दी थी. राजा ने सैकड़ों लोगों और गवर्नर जनरल के प्रतिनिधि की मौजूदगी में बच्चे को गोद लिया था.”

”लॉर्ड विलियम बैंटिक ने राजा के निधन के बाद उनके भाई को एक लेटर भी लिखा था, जिसमें उन्हें राजा कहा गया था और ये भरोसा दिया गया था कि उनके वारिस और गोद लिए वारिस के लिए, उनके राज और उसकी आजादी की गारंटी दी गई थी.”

लैंग के मुताबिक, कहा जाता है कि लॉर्ड विलियम बैंटिक के इस समझौते का बाद में उल्लंघन किया गया. उन्होंने बताया है कि पेशवा के समय में झांसी के दिवगंत राजा केवल एक बड़े जमींदार थे, वह केवल जमींदार ही रहते तो उनकी विरासत का मुद्दा कभी नहीं उभरता और ना ही उनकी अंतिम इच्छा की बात होती.

लैंग ने लिखा है कि राजा के तौर उनको स्वीकार किए जाने के चलते उनकी संपत्ति के कंपनी शासन में विलय की नौबत आई, इसके बदले उन्हें सालाना साठ हजार रुपये पेंशन देने की व्यवस्था की गई.

उन्होंने बताया है कि राजा ने जिस बच्चे को गोद लिया था, वह सिर्फ छह साल का था. उसके बालिग होने तक राजा की वसीयत के मुताबिक, रानी को बच्चे के अभिभावक होने के साथ साथ राजगद्दी भी संभालनी थी. ऐसे में खुद सैनिक रही किसी महिला के लिए कोई छोटी बात नहीं थी कि वह अपनी स्थिति को छोड़कर सालाना 60 हजार रुपये की पेंशनभोगी बन जाएं.

जब लैंग से ‘रानी से मुलाकात के वक्त जूते उतारने के लिए कहा गया’

लैंग ने लिखा है कि उनसे कहा गया था- ”रानी के कमरे में प्रवेश करने से पहले क्या दरवाजे पर आप अपने जूते उतार सकते हैं?”

इसे लेकर लैंग ने बताया है, ”मैं कुछ मुश्किल में आ गया था… कुछ समझ में नहीं आ रहा था. इससे पहले मैं दिल्ली के राजा से मिलने को इनकार कर चुका था, जो इस बात पर जोर दे रहे थे कि उनकी मौजूदगी में यूरोपीय लोगों को अपने जूते उतार लेने चाहिए. वह विचार मुझे भी जंच नहीं रहा था और यह मैंने (वित्त मंत्री) को भी बताया. फिर मैंने उससे पूछा कि क्या वह ब्रिटिश महारानी के महल में लगने वाले दरबार में शामिल हुए हैं, मैंने उनको बताया कि दरबार में हर किसी को अपने सिर पर कुछ नहीं पहनना होता है, सिर ढंका हुआ नहीं होना चाहिए और यह बात हर किसी को माननी पड़ती है. इस पर मंत्री ने कहा- आप अपना हैट पहन सकते हैं, रानी इसका बुरा नहीं मानेंगी और, बल्कि उन्हें यह अतिरिक्त सम्मान का भाव लगेगा.”

इसके आगे लैंग ने बताया है, ”मेरी इच्छा थी कि वह मेरे हैट पहनने को, जूते उतारने के बदले किए गए समझौते के तौर पर देखें. मगर इस समझौते ने मुझे एक अलग तरह की खुशी मिल रही थी. ऐसे में मैंने सहमति दे दी… मगर ऐसा मैंने रानी के पद और उनकी गरिमा के लिए नहीं किया था. बल्कि उनके महिला होने और केवल महिला होने के चलते ही किया था.”

और जब लैंग की रानी से मुलाकात हुई

लैंग ने लिखा है

  • ”मैं एक कमरे के दरवाजे पर था… मैंने जूते उतार लिए और मोजे पहने अपार्टमेंट में दाखिल हुआ. कमरे में कार्पेट बिछा हुआ था और कमरे के बीच में यूरोप की बनी एक कुर्सी रखी थी और उसके पास काफी सारे फूल बिखरे हुए थे. कमरे के आखिरी हिस्से में पर्दा लगा हुआ था और उसके पीछे लोग बात कर रहे थे.”

  • ”मैं उस कुर्सी पर बैठ गया और सहज भाव से अपना हैट उतार लिया लेकिन मुझे अपना संकल्प याद आया और मैंने अपना हैट फिर से पहन लिया और अच्छे तरीके से उसे जमाया.”

  • ”मुझे महिलाओं की आवाज सुनाई पड़ रही थी जो किसी बच्चे से साहिब के पास जाने के लिए कह रही थीं और बच्चा इससे इनकार कर रहा था. मगर वह कमरे में आ गया और मैंने उससे प्यार से जब बात की तो वह मेरी ओर बढ़ा.”

  • ”जब मैं बच्चे से बात कर रहा था तभी पर्दे के पीछे से एक तेज पर बेसुरी आवाज ने बताया कि ये बच्चा झांसी का महाराजा है जिसके अधिकारों को भारत के गवर्नर जनरल ने लूट लिया है.”

  • ”मैंने सोचा कि यह आवाज किसी बूढ़ी महिला की है, जो शायद गुलाम हो या फिर उत्साही सेविका, लेकिन बच्चे ने आवाज को सुनने के बाद कहा- महारानी और मुझे अपनी गलती का पता हो चुका था.”

  • ”मैंने वकील से सुना था कि रानी बेहद खूबसूरत महिला हैं जो छह से सात फीट के बीच लंबी और करीब 20 साल की हैं, मैं उनकी एक झलक पाने के लिए उत्सुक था. चाहे दुर्घटनावश हो या फिर रानी की तरफ से योजना का हिस्सा रहा हो, मुझे उनकी झलक देखने को मिल गई क्योंकि उस बच्चे ने पर्दे को एक तरफ खिसका दिया और इस दौरान मुझे रानी को पूरी तरह से देखने का मौका मिल गया.”

लैंग ने बताया- कैसी दिखती थीं रानी

लैंग के मुताबिक, रानी लक्ष्मीबाई मिडिल साइज की औरत थीं, भारी भरकम लेकिन बहुत ज्यादा नहीं. उन्होंने लिखा है,खूबसूरती को लेकर जो मेरा विचार है उसके मुताबिक उनका चेहरा कुछ ज्यादा ही गोल था. चेहरे पर उभरने वाले मनोभाव में अच्छे और उम्दा मालूम हो रहे थे. खासतौर पर उनकी आंखें खूबसूरत थीं, नाक भी आकर्षक थी. उनका रंग बहुत साफ तो नहीं था लेकिन काले रंग की तुलना में वह बहुत साफ थीं. उन्होंने कोई आभूषण नहीं पहना हुआ था.”

इसके आगे लैंग ने बताया है, ”हालांकि, उन्होंने कान में सोने की बालियां पहन रखी थीं… उनकी आवाज अच्छी नहीं थी, जो कर्कश थी, जिसे फटी हुई आवाज कह सकते हैं.”

लैंग के मुताबिक, उन्होंने रानी को बताया कि गवर्नर जनरल के पास इंग्लैंड से संपर्क किए बिना किसी राज्य को वापस लौटाने, गोद लिए बैठे को वारिस के तौर पर मान्यता देने का अधिकार नहीं है, ऐसे में उनके सामने सबसे बेहतर विकल्प यही है कि राजगद्दी के लिए याचिका दाखिल करने के साथ साठ हजार सालाना की पेंशन लेना शुरू कर दें क्योंकि पेंशन लेने से इनकार करने पर गोद लिए बैठे के बेटे के अधिकार को हासिल करने पर प्रतिकूल असर पड़ेगा.

लैंग ने लिखा है, ”पहले तो रानी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया और उत्साह से कहा- अपनी झांसी नहीं दूंगी. तब मैंने हरसंभव तरीके से उन्हें बताया कि विरोध करना कितना नुकसानदायक हो सकता है. मैंने उन्हें बताया कि ईस्ट इंडिया कंपनी की एक टुकड़ी और तोपखाना उनके महल से बहुत दूर नहीं है.”

जॉन लैंग ने आगे लिखा है कि रानी ब्रिटिश सरकार से पेंशन लेने की बात पर सहमत नहीं हुई थीं, ”उसी दिन मैं आगरा के लिए ग्वालियर के रास्ते लौटने लगा. रानी ने मुझे तोहफे में एक हाथी, एक ऊंट, एक अरबी घोड़ा और एक जोड़ी शिकारी कुत्ते दिए.”

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