इटावा: बंजर जमीन पर इस फल की खेती कर किसान ने किया कमाल, अब तैयार हुई लाखों की फसल

अमित तिवारी

09 Feb 2023 (अपडेटेड: 14 Feb 2023, 08:56 AM)

इटावा जनपद यमुना नदी और चंबल नदी के किनारे बसा हुआ है. नदियों के किनारे पर जंगल की बंजर कंक्रीट भूमि बड़ी संख्या (क्षेत्रफल) में…

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इटावा जनपद यमुना नदी और चंबल नदी के किनारे बसा हुआ है. नदियों के किनारे पर जंगल की बंजर कंक्रीट भूमि बड़ी संख्या (क्षेत्रफल) में मौजूद है. जहां मिट्टी में कंक्रीट बड़ी संख्या में पाया जाता है और उन जगहों पर जंगली बबूल साथ ही साथ कटीले पौधे उत्पन्न होते हैं. लेकिन इस बंजर और जंगली कंक्रीट भूमि पर शहर के निवासी राम सिंह राठौर ने किसानों के लिए एक प्रेरणात्मक संदेश दिया है. राम सिंह राठौर उम्र 70 वर्ष की हैं, लेकिन इनका जज्बा और इनकी लगन मेहनत से जंगल में मंगल कायम कर दिया.

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राम सिंह राठौर ने अपने जीवन के बड़े पैमाने पर शहर में दुकान चलाई और व्यापारी बन कर रहे, किसी के कहने पर इन्होंने कामेत गांव के जंगल की भूमि खरीद ली. लेकिन उसकी देखरेख ना हो पाने के कारण भू माफिया सक्रिय हो गए और जंगली भूमि पर कब्जा करने लगे.

राम सिंह राठौर ने शहर छोड़कर अपनी भूमि की रक्षा के लिए वह जंगल में कमरा बनाकर रहने लगे और चारों तरफ तार खींचकर खेती की ठानी. किसानों की तरह उन्होंने अपने कुछ भूमि पर सरसों की फसल पैदा की लेकिन उनके मन में फलों के पौधे उगाने का दृढ़ संकल्प था. इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क किया, जिला उद्यान विभाग में पहुंचे उनको किसी ने अमरूद, नींबू और अनार की फसल का सुझाव मिला. उन्होंने भी अपनी मेहनत से थाई अमरुद जिसको ताइवानी अमरुद भी कहा जाता है, उसके 200 पौधे अनार के लगभग 190 और नींबू के 100 पौधे खरीद लाए और अपने यहां लगभग डेढ़ एकड़ भूमि में वृक्षारोपण कर दिया.

सबसे बड़ी चुनौती सिंचाई की थी, भूमि ऊंची नीची होने और पानी की कमी थी ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री सिंचाई योजना के अंतर्गत उद्यान विभाग की तरफ से उनको ड्राप विधि के द्वारा सिंचाई की ट्रेनिंग दी गई. अपने खेतों में उन्होंने उस तकनीक का इस्तेमाल करते हुए बूंद बूंद पानी से पौधों का विकास किया. एक वर्ष तक लगातार देखरेख की तो लगभग 2 फुट ऊंचाई के पौधों से ही थाई अमरूद की पैदावार होने लगी.

थाई अमरूद बहुत पौष्टिक होता है, यह बात उनको पता थी तो गरीबों को बीमार मरीजों को और आसपास अपने इष्ट मित्रों को पहली फसल निशुल्क बांटने की ठानी. इस समय बड़ी तादाद में थाई अमरूद की पैदावार हुई, पौष्टिक अमरूद होने की वजह से कई बीमारियों में लाभकारी होने से वह क्षेत्र में अमरूद अपने यहां निशुल्क वितरित करते हैं. जिससे चर्चा का विषय बना हुआ है. जिस प्रकार से जंगल में केवल कांटे वाले पौधे ही उगते हैं उस स्थान पर फलदार पौधे उगाने से किसानों को एक अच्छा संदेश भी पहुंचा और उनकी मेहनत रंग लाई है.

राम सिंह राठौर बताते हैं कि हमारा अमरूद गुलाबी रंग का है, इसको ताइवानी कहा जाता है. सामान्य अमरुद से सर्वाधिक पौष्टिक होता है. पानी की सिंचाई के लिए उद्यान विभाग ने प्रेरित किया उनका सहयोग मिला है. थाई अमरूद के पौधों में बहुत अच्छे फल आ रहे हैं. सभी मिलाकर लगभग 500 पौधे यहां लगे हुए हैं. यह पहली फसल गरीबों, मरीजों, मित्रों और जरूरतमंदों को निशुल्क बांटने की ठानी है. इसलिए सभी को निशुल्क वितरित कर रहे हैं. अगली बार से डेढ़ एकड़ से लगभग तीन लाख रुपए के फल प्रति वर्ष बिक्री कर सकेंगे.

जिला उद्यान अधिकारी सुनील कुमार का कहना है कि कामेट गांव में राम सिंह राठौर ने अपने यहां जंगली भूमि पर थाई अमरुद लगा रखा है. उन्होंने प्लांटेशन करने के बाद सबसे बड़ी समस्या सिंचाई की हुई. जंगल की भूमि ऊंची नीची होने की वजह से सिंचाई की बड़ी समस्या बन गई थी, हम लोगों ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के बारे में उनको बताया ड्रिप विधि से उनको प्रशिक्षण दिया. जिससे कि आसानी से वह पौधों तक पानी पहुंचा सके. उसके बाद से पौधे इनके स्वस्थ स्थिति में है और फल दे रहे हैं. थाई अमरुद एक वर्ष में ही फल देने लगता है, सामान्य फल से यह बड़ा होता है और गुणवत्ता युक्त होता है. इसकी बाजार में ज्यादा डिमांड होती है. इतनी कम जगह में इनको लगभग ढाई लाख रुपए की आमदनी होगी, जो कि किसी फसल में संभव नहीं है.

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